रसाल सिंह। जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर के परिसीमन को लेकर अपनी अंतिम रिपोर्ट दे दी। इस रपट के अनुसार अब जम्मू-कश्मीर में 87 के बजाय 90 विधानसभा सीटें होंगी। इनमें 43 जम्मू क्षेत्र में और 47 सीटें कश्मीर में होंगी। इन सीटों में से अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटें आरक्षित की गई हैं। आयोग ने एक महिला सहित कश्मीर घाटी के दो विस्थापितों के मनोनयन की सिफारिश भी की है। इसी प्रकार पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) के विस्थापितों के मनोनयन की भी सिफारिश की है, लेकिन उनकी संख्या स्पष्ट नहीं। जो भी हो, यह सराहनीय है।

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय भूभाग की 24 सीटों को खाली छोड़ा जाता रहा है। यह उचित अवसर था कि उस क्षेत्र से खदेड़े गए लोगों और उनके वंशजों के लिए 24 में से कम से कम आधी सीटें आवंटित कर दी जातीं। कश्मीर घाटी के साथ गुलाम कश्मीर के विस्थापितों के लिए सीटें आरक्षित करना इसलिए जरूरी था, क्योंकि इससे ही उनके दुख-दर्द, समस्याओं और मुद्दों की ओर देश-दुनिया का ध्यान आकर्षित हो सकेगा।

जम्मू-कश्मीर को लेकर गठित परिसीमन आयोग की रपट एक ऐसे समय सामने आई है, जब जम्मू-कश्मीर पीपुल्स फोरम द्वारा जम्मू में श्रद्धांजलि एवं पुण्यभूमि स्मरण जनसभा का आयोजन किया जा रहा है। इसका उद्देश्य पीओजेके के विस्थापितों की ओर से अपने पूर्वजों के त्याग और बलिदान का स्मरण करना है। इस कार्यक्रम का एक अन्य उद्देश्य पाकिस्तान, चीन और दुनिया को यह संदेश देना है कि प्रत्येक भारतीय पीओजेके के विस्थापितों के बलिदान और दुख-दर्द से अनजान नहीं है। पाक के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के प्रमुख क्षेत्र मीरपुर, भिंबर, कोटली, पुलंदरी, रावलकोट, मुजफ्फराबाद, पुंछ, गिलगित और बाल्टिस्तान आदि हैं। मां शारदा पीठ, मां मंगला देवी मंदिर और गुरु हरगोविंद सिंह गुरुद्वारा जैसे अनेक पवित्र स्थल भी पाकिस्तान के अवैध कब्जे में हैं। पीओजेके वासियों की भाषा, खान-पान, वेशभूषा और संस्कृति-प्रकृति पाकिस्तानी से अधिक भारतीय है। यह क्षेत्र न केवल भू-रणनीतिक दृष्टि से, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों और सांस्कृतिक समृद्धि के कारण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

आज वहां शिया मुसलमान बड़ी संख्या में बसते हैं। आजादी के समय हिंदू और सिख भी काफी संख्या में रहते थे। एक समय जितने अत्याचार हिंदू और सिखों पर हुए, लगभग उतने ही आज वहां के शिया मुसलामानों पर हो रहे हैं। इसके बारे में अमजद अयूब, शब्बीर चौधरी, जमील मकसूद, मंजूर अहमद पश्तीन, आरिफ अजाकिया, हाजी सैय्यद सलमान चिश्ती, जफर चौधरी और जावेद राही जैसे साहसी लोग अलग-अलग मंचों से लगातार पीओजेके के पीडि़तों की आवाज मुखर कर रहे हैं। उनकी आवाज सुनी जानी चाहिए। मानवाधिकारों का उल्लंघन, लोकतंत्र का पददलन, पाकिस्तानी सेना की देखरेख में फल-फूल रहे आतंकी संगठन और नशीले पदार्थों की खेती और तस्करी, पाकिस्तान के सिंधी-पंजाबी मुस्लिम समुदाय को बसाकर किए जा रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तन, मंदिरों एवं गुरुद्वारों को ढहाने, मूर्तियों को क्षतिग्रस्त करने आदि के किस्से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का रोजनामचा हैं। यह सब सह रहे लोगों का अपराध यह है कि वे महाराजा हरी सिंह द्वारा हस्ताक्षरित 26 अक्टूबर, 1947 के अधिमिलन-पत्र के अनुसार भारतीय गणराज्य का हिस्सा होना चाहते हैं और सुख-शांति चाहते हैं, जो वहां कभी मयस्सर नहीं होगी।

वर्तमान केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर समस्या के समाधान की दिशा में दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है। उसने पीओजेके विस्थापितों के प्रति पूरी संवेदनशीलता, सहानुभूति और सदाशयता दिखाते हुए दो हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज के साथ कुछ योजनाओं की शुरुआत की है, लेकिन इस राहत पैकेज में जम्मू-कश्मीर के बाहर बसे विस्थापितों को भी शामिल किया जाता तो बेहतर होता। ध्यान रहे कि जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन सरकार की सांप्रदायिक नीति और उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण तमाम विस्थापितों को दूसरे राज्यों में शरण लेनी पड़ी। हालांकि कश्मीर घाटी के विस्थापितों के लिए भी पैकेज दिए गए हैं, लेकिन राहत योजनाओं का दायरा बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 ऐसी ही एक उल्लेखनीय राहत योजना है। कश्मीर घाटी के विस्थापितों के लिए देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों और सरकारी सेवाओं में प्रवेश हेतु विशेष प्रविधान किए गए हैं। इसके दायरे में पीओजेके विस्थापितों को भी शामिल करने की आवश्यकता है। जिस भारत का नागरिक होने की वजह से पीओजेके से विस्थापितों के पूर्वजों को असहनीय अत्याचार और प्रताडऩा सहनी पड़ी, उस भारत की सरकार और नागरिक समाज को एकजुट होकर उनके साथ खड़े होने और उनके आंसू पोंछने की जरूरत है।

यहां बसने और काम-धंधा शुरू करने वाले देशवासियों को बसाने के लिए भूमि अधिगृहीत की जानी चाहिए। प्रवासी श्रमिकों और उद्यमियों के लिए सस्ते दाम पर आवासीय और व्यावसायिक भूखंड, आसान कर्ज, ब्याज दर में सब्सिडी, शस्त्र लाइसेंस और शस्त्र आदि की उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी चाहिए। ये लोग आतंकवाद से निपटने और खोई हुई भूमि को पाने में सेना और स्थानीय समाज के साथ प्रभावी भूमिका निभा सकेंगे। दहशतगर्दों के वर्चस्व को समाप्त करने की दिशा में ये उपाय प्रभावी साबित होंगे। आतंकवाद के शिकार निर्दोष नागरिकों को बलिदानी का दर्जा और उनके परिजनों को आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक सुरक्षा देकर आतंकवाद से निडरतापूर्वक लडऩे वाला नागरिक समाज तैयार किया जा सकता है। सामाजिक संकल्प और संगठन के सामने मुट्ठी भर भाड़े के आतंकी भला कब तक ठहर पाएंगे?

वर्तमान केंद्र सरकार ने 22 फरवरी, 1994 के भारतीय संसद के संकल्प की पृष्ठभूमि में अनुच्छेद 370 और 35 ए को निष्प्रभावी करते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्ण विलय की दिशा में बड़ी पहल की। परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव की तैयारियों के बीच इस संकल्प की सिद्धि की दिशा में भी सक्रिय रहा जाना चाहिए।

(लेखक जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)