राजीव सचान: पिछले दिनों जब ब्राजील के राष्ट्रपति चुनाव में पराजित प्रत्याशी जायर बोल्सोनारो के समर्थकों ने लोकतंत्र के तीन प्रतीकों-राष्ट्रपति भवन, सर्वोच्च न्यायालय और संसद पर धावा बोल दिया तो दुनिया को जनवरी 2021 में अमेरिकी संसद में ट्रंप समर्थकों और देश को तथाकथित किसानों की ओर से लाल किले में मचाया गया उत्पात याद आ गया। जिन्हें न याद आया हो, वे याद कर लें, क्योंकि इसी 26 जनवरी को लाल किले में की गई भीषण गुंडागर्दी के तीन साल पूरे हो जाएंगे। इस गुंडागर्दी के गुनहगारों के बारे में चर्चा करने से पहले यह जानना जरूरी है कि ब्राजील में हिंसा के बाद राष्ट्रपति भवन के 40 सुरक्षा गार्डों को बर्खास्त कर दिया गया है। इनमें अधिकांश सैनिक हैं।

हिंसा में शामिल रहे 1,500 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। ये सभी बोल्सोनारो के समर्थक हैं। बोल्सोनारो की तरह उनके समर्थकों का मानना है कि चुनाव में उनकी हार के पीछे धांधली है। इस धारणा की एक बड़ी वजह चुनाव के पहले दिया गया बोल्सोनारो का यह कथन था कि यदि वह हारते हैं तो इसके पीछे चुनावी धांधली ही जिम्मेदार होगी। हिंसा के लिए जिम्मेदार माने जा रहे लोगों में पूर्व न्याय मंत्री एंडरसन टोरेस भी हैं। उन पर हिंसा की साजिश रचने के साथ दंगा भड़काने का भी आरोप है। उनकी भी गिरफ्तारी हो गई है। टोरेस पूर्व राष्ट्रपति बोल्सोनारो के करीबी माने जाते हैं। जांच के दायरे में बोल्सोनारो भी हैं। फिलहाल वह अमेरिका में हैं। वहां से आने पर उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। हिंसा रोक पाने में नाकाम रहे ब्राजीलिया के गवर्नर को हटा दिया गया है।

अब यह जान लेते हैं कि अमेरिकी संसद यानी कैपिटल हिल में ट्रंप समर्थकों की हिंसा के खिलाफ अभी तक क्या हुआ है? इस हिंसा के बाद अमेरिका में एक हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से साढ़े नौ सौ से अधिक लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाया जा रहा है। अब तक तीन सौ से अधिक लोगों को सजा सुनाई जा चुकी है। इनमें सबसे अधिक दस साल की सजा न्यूयार्क शहर के पूर्व पुलिस अधिकारी थामस वेबस्टर को सुनाई गई है। दर्जनों दोषियों को सामुदायिक सेवा करने की सजा दी गई है। हिंसा के दोषियों पर अब तक पांच लाख 21 हजार डालर का जुर्माना लगाया जा चुका है। कठोर सजा से राहत पाने की आशा में कई अभियुक्तों ने अपना दोष स्वीकार कर लिया है।

स्पष्ट है कि कैपिटल हिल में उत्पात मचाने वाला कोई बच नहीं पाएगा। कैपिटल हिल हिंसा की जांच कर रही एक कमेटी ने डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की सिफारिश की है। अब न्याय विभाग को यह फैसला करना है कि ट्रंप के खिलाफ मुकदमा चलाया जाए या नहीं? विगत छह जनवरी को अमेरिका में कैपिटल हिल हिंसा की दूसरी बरसी मनाई गई। इस अवसर पर राष्ट्रपति बाइडेन ने हिंसा में उपद्रवियों का सामना करने वालों को राष्ट्रपति नागरिक मेडल से सम्मानित किया।

अब यह जानते हैं कि दो साल पहले 26 जनवरी को लाल किले में दंगा करने वालों के खिलाफ अब तक क्या हुआ है? इस हिंसा में शामिल करीब 150 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें से सभी को जमानत मिल चुकी है। जब यह स्पष्ट है कि ब्राजील में हिंसा के लिए जिम्मेदार तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के हरसंभव जतन किए जा रहे हैं और अमेरिका में कैपिटल हिल हिंसा के दोषियों को कड़ी सजा देने का काम लगभग पूरा हो चुका है, तब दुर्भाग्यपूर्ण यही है कि यह प्रश्न अनुत्तरित है कि भारत में गणतंत्र दिवस पर लाल किले और दिल्ली के अन्य हिस्सों में भयावह गुंडागर्दी कर देश को शर्मिंदा करने वाले गुनहगारों को सजा कब मिलेगी?

यह गुंडागर्दी ट्रैक्टर रैली निकालकर गणतंत्र दिवस मनाने की आड़ की गई थी। हालांकि कथित किसान नेताओं ने दिल्ली पुलिस से यह वादा किया था कि वे तय मार्ग पर ही अपनी ट्रैक्टर रैली निकालेंगे, लेकिन 26 जनवरी के दिन अपने वादे को तोड़कर उनके ट्रैक्टर मनचाहे रास्तों पर निकल लिए और उन्होंने जहां-तहां उत्पात मचाकर दिल्ली एवं देश को आतंकित किया। इसकी आशंका पहले से थी, क्योंकि ट्रैक्टर रैली को लेकर उकसावे वाले बयान दिए जा रहे थे। राकेश टिकैत ट्रैक्टर रोकने वालों के बक्कल उतारने की खुली धमकी दे रहे थे।

अफसोस की बात केवल यह नहीं कि लाल किले में अराजकता के नंगे नाच के लिए जिम्मेदार किसी किसान नेता की गिरफ्तारी नहीं की गई, बल्कि यह भी है कि राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव समेत 20 किसान नेताओं को दिल्ली पुलिस ने जो नोटिस जारी किया, उसकी उन्होंने ठसक के साथ अनदेखी कर दी और फिर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया। ऐसा तब हुआ, जब दिल्ली पुलिस के तत्कालीन आयुक्त ने कहा था कि 26 जनवरी की हिंसा में किसान नेता शामिल थे। इससे भी खराब बात यह हुई कि पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने लाल किला हिंसा में गिरफ्तार किए गए 83 उपद्रवियों को मुआवजा देने की घोषणा की।

हैरानी नहीं कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में जो किसान नेता नजर आए, उनमें राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव भी थे। जिन्हें देश को नीचा दिखाने वाली हिंसा के लिए कठघरे में खड़ा होना चाहिए था, वे देश जोड़ने का नाटक कर रहे थे। एक लज्जाजनक बात यह भी हुई कि राजमार्गों पर कब्जा करने के आरोप में जो अनेक मामले दर्ज किए गए थे, उन्हें वापस लेने की घोषणा कर दी गई। दिल्ली सरकार ने तो लाल किला हिंसा से जुड़ा एक मामला भी वापस लेने का फैसला किया। इसे अराजकता के सामने शर्मनाक आत्मसमर्पण न कहा जाए तो क्या कहा जाए?

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)