[ ब्रह्मा चेलानी ]: जैसे फासीवाद ने दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध की गर्त में धकेला उसी तरह साम्यवाद ने हम पर सबसे बड़ी स्वास्थ्य आपदा थोप दी है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वुहान से उपजे जिस वायरस पर पर्दा डाले बैठी रही उसने पूरी दुनिया को सबसे भयावह महामारी का शिकार बना दिया। यह दर्शाता है कि किसी एक देश में कायम तानाशाही कैसे समस्त संसार का बेड़ा गर्क कर सकती है? कुछ धार्मिक उन्मादी भी इस आपदा को और बढ़ाने में सहायक बने।

कोरोना: तब्लीगी जमात के चलते दुनिया के कई देशों में हालात और खराब हो गए

ऐसा ही एक तबका है तब्लीगी जमात का। यह सुन्नी इस्लाम की देवबंदी शाखा की एक मुहिम है जिसके दुनियाभर में आठ करोड़ से अधिक अनुयायी हैं। इस जमात के चलते दुनिया के कई देशों में हालात और खराब हो गए हैं। कहने को तो तब्लीगी जमात गैर राजनीतिक संगठन है, लेकिन उसका एकनिष्ठ लक्ष्य वैश्विक जिहाद ही है। अपने कुछ सहयोगी संगठनों की आतंकी गतिविधियों के बावजूद तब्लीगी जमात को आतंकी सगंठन नहीं कहा जा सकता। हालांकि अपने वैचारिक मुलम्मे से यह जिस तरह कम पढ़े-लिखे युवाओं को लुभाता है उससे आतंकी संगठनों को नए रंगरूट मिलने में मदद मिलती है।

तब्लीगी जमात ने आतंकी संगठनों के लिए अहम भूमिका निभाता रहा 

यह लंबे समय तक अल कायदा से लेकर ताबिलान जैसे संगठनों के लिए नई भर्तियों में अहम भूमिका निभाता रहा है। हरकत उल मुजाहिदीन और हरकत उल जिहाद ए इस्लामी जैसे अपने खुद के संगठनों के लिए भी उसने यह आपूर्ति की है। पाकिस्तान में तब्लीगी जमात के एक प्रमुख नेता मुफ्ती तकी उस्मानी ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर दावा किया पैगबंर मोहम्मद ने जमात के एक कार्यकर्ता के सपने में आकर कोरोना का उपचार बताया कि इसके लिए बस कुरान की कुछ आयतें पढ़नी होंगी। दुनिया के कई देशों में इस जमात के इज्तेमा यानी सम्मेलन बदस्तूर जारी रहे। यह सब इसके बावजूद चलता रहा जब सऊदी अरब ने उमरा और ईरान ने पवित्र शिया स्थलों को बंद कर दिया।

मुहम्मद साद ने तब्लीगियों को बरगलाकर उन्हें बीमारी के मुंह में धकेल दिया

भारत में तब्लीगी जमात के मुखिया मौलाना मुहम्मद साद कंधालवी ने मरकज की ताकत के नाम पर मासूम तब्लीगियों को बरगलाकर उन्हें बीमारी के मुंह में धकेल दिया। मरकज असल में इस संगठन का मुख्यालय है जो नई दिल्ली के निजामुद्दीन में है। साद का यह कहना कि ‘अल्लाह हम सभी की हिफाजत करेगा’, ईरान के शिया धर्मगुरुओं की गलती दोहराने जैसा ही था जिन्होंने अपने पवित्र शहर कोम को कोरोना वायरस का केंद्र बना दिया।

तब्लीगी जमात के इज्तेमाओं ने सुन्नी मुसलमानों वाले देशों की देहरी तक इस बीमारी को पहुंचाया

तब्लीगी जमात के इज्तेमाओं ने दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर पश्चिमी अफ्रीका तक सुन्नी मुसलमानों वाले देशों की देहरी तक इस बीमारी को पहुंचाया। कुआलालंपुर की पेटलिंग मस्जिद में 27 फरवरी से 1 मार्च के बीच 16,000 जमातियों के जमावड़े ने कोरोना संक्रमण के बीज छह दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में बोए। इनमें ब्रूनेई, कंबोडिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। कुआलालंपुर के बाद तब्लीगी जमात का और जलसा पाकिस्तान में हुआ। यह 11-12 मार्च को लाहौर के उपनगरीय इलाके रायविंड स्थित जमात के मुख्यालय में हुआ जिसमें करीब ढाई लाख लोग जुटे। इससे पहले कि पाक प्रशासन हरकत में आता, सैकड़ों लोग वायरस के संपर्क में आ गए। उन्होंने न केवल पाकिस्तान, किर्गिस्तान और नाइजीरिया तक संक्रमण फैला दिया।

दिल्ली में कोरोना के चलते आयोजनों पर पाबंदी लगी थी, फिर भी निजामुद्दीन में जुटान हुई

रायविंड के बाद अगला पड़ाव थी नई दिल्ली, जहां 13 मार्च से यह आयोजन होना था। हालांकि तब तक दिल्ली में कोरोना के मद्देनजर बड़े आयोजनों पर पाबंदी लगा दी गई थी, फिर भी निजामुद्दीन में जुटान हुई। इंडोनेशिया जैसे देश ने अंतिम क्षणों में अपने यहां इज्तेमा पर प्रतिबंध लगा दिया। वहां 18 मार्च को यह प्रस्तावित था जिमसें करीब 8,800 जमाती शिरकत करते। हमारी एजेंसियों ने नई दिल्ली में इज्तेमा होने दिया। महाराष्ट्र ने समझदारी दिखाते हुए वसई में ऐसे कार्यक्रम को दी गई मंजूरी रद कर दी।

नई दिल्ली में तब्लीगी जमात का आयोजन भारत के लिए बहुत भारी साबित हुआ

नई दिल्ली का जमावड़ा तो एक अप्रैल को तब तक रहा जब तक कि 2,346 जमातियों को वहां से निकाला नहीं गया। यह आयोजन भारत के लिए बहुत भारी साबित हुआ। इसने 22 मार्च से जारी राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की साधना में भी विघ्न डालने का काम किया।

पर्यटन वीजा का बेजा इस्तेमाल

इसमें जुटे तमाम विदेशी नागरिकों द्वारा अपने पर्यटन वीजा के बेजा इस्तेमाल ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की क्षमता पर भी सवाल खड़े किए। इस सबसे तब्लीगी जमात की प्रतिष्ठा को जो ठेस पहुंची उसकी भरपाई आसान नहीं होगी। इस आपदा के गुजर जाने के बाद यह संगठन इसे लेकर कुख्यात हो जाएगा कि उसके इज्तेमा के चलते कैसे कोरोना संक्रमण फैला, जो तमाम लोगों की मौत की वजह बना।

तब्लीगी जमात में वर्चस्व की लड़ाई और तेज हो सकती है

महामारी के दौरान अपनी संदिग्ध भूमिका से सुर्खियों में आने के चलते तब्लीगी जमात में बीते कुछ वर्षों से चली आ रही आंतरिक वर्चस्व की लड़ाई और तेज हो सकती है। उसकी कलह और हिंसक रूप ले सकती है। बांग्लादेश, पाकिस्तान और ब्रिटेन में जमात के कट्टर होते धड़े साद की सदारत को चुनौती दे रहे हैं।

तब्लीगी जमात का वैश्विक मुख्यालय नई दिल्ली में होना पाकिस्तानी सेना की आंखों में खटकता है

पाकिस्तान में सेना-मुल्ला गठजोड़ खासा पुराना है। इससे सेना को भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ आतंकी मोहरे तैयार करने में मदद मिलती है। ऐसे में तब्लीगी जमात का वैश्विक मुख्यालय नई दिल्ली में होना पाकिस्तानी सेना की आंखों में खटकता है, क्योंकि इस्लामिस्ट और आतंकी समूहों पर पूर्ण नियंत्रण ही जनरलों की घरेलू सत्ता और उनकी क्षेत्रीय रणनीति का अहम हिस्सा है। इसीलिए इस पर हैरानी नहीं कि ये जनरल पाकिस्तान में तब्लीगी जमात को नई दिल्ली समूह से इतर स्वतंत्र रूप से संचालन को उकसाते रहे हैं।

जमात और पाक फौज के गहरे संबंधों से ही आतंकी विषबेल फलती-फूलती है

वहां जमात और फौज के बड़े गहरे संबंध हैं। इनकी दुरभिसंधि से ही आतंकी विषबेल फलती-फूलती है। जमात के सबसे बेहतरीन शागिर्दों को फौज द्वारा चुना जाता है। उनका चयन भी अमूमन जमात के रायविंड स्थित मुख्यालय से होता है जहां से चुने गए अव्वल लड़कों को चार महीने के विशेष प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है।

ब्लीगी जमात सेक्युलरिज्म और लोकतंत्र ही नहीं, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता के भी खिलाफ है

समय आ गया है कि भारत तब्लीगी जमात की प्रतिगामी विचारधारा से उत्पन्न खतरे को पहचाने। यह न केवल सेक्युलरिज्म और लोकतंत्र, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता के भी खिलाफ है। चूंकि जमात राष्ट्रीय सीमाओं को भी नहीं मानती इसलिए यह राष्ट्र-राज्य तंत्र को भी चुनौती देती है। जमात ने जिस उन्माद के साथ कोरोना वायरस को फैलाने की करतूत की वह बताता है कि यह समूह राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है।

( लेखक सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं )