[ मुकेश मोहन गुप्त ]: सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों यानी एमएसएमई भले ही आकार में छोटे हों, लेकिन देश की तरक्की में उनकी बड़ी अहमियत है। वे आर्थिक विकास, नवाचार और रोजगार सृजन के सबसे बड़े संवाहक हैं। मौजूदा कोरोना संकट का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव भी उन पर ही पड़ता दिख रहा है, क्योंकि उनके पास बड़ी कंपनियों जितने संसाधन नहीं हैं। चूंकि मांग में लगातार गिरावट जारी है और हाल-फिलहाल सुधार के आसार नहीं दिखते इसलिए इन उद्यमियों के लिए कर्ज की अदायगी से लेकर कर्मचारियों को वेतन देने जैसी जिम्मेदारियों को पूरा करना भी मुश्किल होगा।

छोटे उद्यमियों के समक्ष वेतन, बिजली बिल, किराया, कर्ज जैसी समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं

उन समस्याओं का खाका खींचा जाना बेहद आवश्यक है जिनसे एमएसएमई करीब साल भर तक जूझने को मजबूर होंगे। नकदी की किल्लत के कारण छोटे उद्यमियों के समक्ष वेतन, बिजली बिल, किराया, टेलीफोन बिल, ब्याज, कर्ज की मूल किस्त और अन्य अनेक खर्चों के लिए वित्तीय बंदोबस्त की समस्या मुंह बाएं खड़ी हैं। लॉकडाउन समाप्ति के कम से कम तीन महीने तक तो ये दुश्वारियां बहुत परेशान करने वाली हैं। तमाम छोटे उद्यमों को इस संकट से भी दो-चार होना पड़ सकता है कि उनके ऑर्डर निरस्त हो जाएं।

कामगारों के गांव-घर जाने से कंपनियों के लिए यह समस्या और विकराल हो सकती है

छोटे उद्यम पीएसयू और बड़ी दिग्गज कंपनियों से भुगतान में लेटलतीफी जैसी समस्याएं भी झेलते हैं। आने वाले महीनों में यह समस्या और विकराल हो सकती है। चूंकि इन इकाइयों में काम करने वाले अधिकांश कामगार अपने गांव-घर की ओर कूच कर गए हैं ऐसे में उन्हेंं सामान्य कामकाज बहाल करने में लंबा समय लग सकता है।

ऑर्डर निरस्त होने, श्रम विवादों, कर्ज की अदायगी न होने से मुकदमों की बाढ़ आ सकती है

इसी तरह ऑर्डर निरस्त होने, श्रम विवादों, कर्ज के मूल और ब्याज की अदायगी न होने जैसे तमाम कारणों के चलते मुकदमों की भी बाढ़ आ सकती है। मुश्किलों के ऐसे भंवर में फंसे एमएसएमई को उबारने में बैंक और एनबीएफसी भी हिचक दिखाएंगे। ऐसी स्थिति में सरकार से अपेक्षाएं बढ़ना स्वाभाविक है। भारत सरकार को कई मोर्चों पर सक्रियता के साथ कदम उठाने होंगे।

एमएसएमई को उचित रियायत दी जाए

जैसे कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड संहिता, 2016 यानी आइबीसी के तहत ऋणदाताओं द्वारा एमएसएमई को उचित रियायत दी जाए ताकि उन्हें संपदा बिक्री में बेहतर हिस्सा मिल सके। उनके खिलाफ आइबीसी में मामला भी दर्ज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे अधिकांश मामलों में अभी तक समाधान नहीं निकल सका है और अंतत: वे संपदा बिक्री की ओर ही बढ़ रहे हैं। एक लाख या उससे अधिक के डिफॉल्ट के मामलों में एमएसएमई को इस संहिता के उपयोग की अनुमति दी जानी चाहिए जैसा कि हालिया अधिसूचना से पहले सौ लाख तक के मामले में था।

बिजली के मामले में किसी भी सूरत में कनेक्शन न काटा जाए

एमएसएमई से जुड़े मामलों में त्वरित फैसलों के लिए सरकार को अलग ट्रिब्यूनल्स गठित करने चाहिए। सराफेसी एक्ट को भी एक साल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए। लॉकडाउन के दौरान दिए गए वेतन और मजदूरी के 50 प्रतिशत हिस्से को कैरी फारवर्ड प्रावधान के साथ आयकर में छूट दी जानी चाहिए या फिर उसका भुगतान ईएसआइसी-सरकार द्वारा किया जाए। बिजली के मामले में भी किसी सूरत में कनेक्शन न काटा जाए। इसके साथ ही भुगतान परिदृश्य के आधार पर ही एमएसएमई को उनका जीएसटी बकाया अदा करने की अनुमति दी जाए।

एमएसएमई की समस्याएं केवल सरकार ही नहीं, अपितु रिजर्व बैंक को भी समाधान खोजना होगा

चूंकि एमएसएमई की समस्याएं इतनी व्यापक हैं कि केवल सरकार के भरोसे ही उनका समाधान संभव नहीं, इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक जैसे संस्थान की भी अहम भूमिका है। एमएसएमई ने किसी न किसी बैंक या वित्तीय संस्थान से मियादी कर्ज लिया होता है। ऐसे में उन्हें राहत देने के लिए लॉकडाउन हटाए जाने के छह महीने तक इनकी किस्तों की मियाद नए सिरे से तय की जाए। इन मियादी कर्जों के तीन वर्षों में पुनर्भुगतान के प्रावधान के साथ ही उसमें छह महीनों की स्थगन अवधि की भी गुंजाइश हो।

रिजर्व बैंक को लॉकडाउन के दौरान सभी कर्जों पर ब्याज माफ कर देना चाहिए

रिजर्व बैंक को लॉकडाउन के दौरान सभी कर्जों पर ब्याज माफ कर देना चाहिए। सभी एमएसएमई को एक बार कर्ज पुनर्गठन का मौका मिले जिसमें एनपीए खातों को भी शामिल किया जाए। पुनगर्ठन के बाद सभी एमएसएमई को स्डैंडर्ड रूप में वर्गीकृत करें। विल्फुल डिफॉल्टरों को इस योजना से अलग रखा जा सकता है। कार्यशील पूंजी के लिए आकलन अवधि का पैमाना 90 दिनों के बजाय 270 दिन किया जाना चाहिए। बाहरी क्रेडिट रेटिंग-सिबिल की आवश्यकता को भी अगले दो वर्षों के लिए खत्म कर देना चाहिए। मौजूदा इकाइयों के लिए अतिरिक्त तदर्थ कार्यशील पूंजी में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जाए। आरबीआइ और भारतीय बैंक संघ यानी आइबीए को चाहिए कि वे बैंकों से एमएसएमई के लिए एक साझा राहत योजना तैयार करने के लिए कहें।

पीएसयू और सरकार को एमएसएमई के बकाये का तत्काल भुगतान किया जाना चाहिए

चूंकि कोरोना के कहर के चलते इतनी दिक्कतें अचानक से आ गई हैं तो भुगतान के मोर्चे पर समस्याएं भी आएंगी। ऐसे में समय रहते उनके समाधान पर भी विचार किया जाए। इस स्थिति में पीएसयू और सभी सरकारी विभागों द्वारा एमएसएमई के बकाये का तत्काल भुगतान किया जाना चाहिए। यदि लॉकडाउन से पहले किसी ऑर्डर के मामले में आदेश एमएसएमई के पक्ष में आया हो तो उनके खिलाफ अपील की अनुमति न दी जाए। अपने सभी आर्पूितकर्ता एमएमएमई के लिए पीएसयू-सरकारी विभागों द्वारा लैटर ऑफ क्रेडिट जारी किया जाना चाहिए। उचित खरीदारों के साथ एमएसएमई के सभी लेनदेन केवल टीआरईडीएस के जरिये होने चाहिए।

संकट के दौर में हमें सूक्ष्म एवं लघु उपक्रम को सशक्त बनाना होगा

संकट के दौर में हमें सूक्ष्म एवं लघु उपक्रम सुविधा परिषदों यानी एमएसईएफसी को भी सशक्त बनाना होगा। प्रत्येक जिले में इसकी एक शाखा गठित की जाए जिनकी सुनवाई के लिए राज्य स्तर पर अपीलीय इकाई बने। इसमें सभी एमएसएमई को शामिल किया जाए। ऑनलाइन कॉज लिस्ट और आदेश एमएसईएफसी की एक साझा वेबसाइट पर उपलब्ध होने चाहिए। इसके फैसलों को राजस्व वसूली अधिनियम के तहत प्रर्वितत किया जाना चाहिए।

कोरोना वायरस के संक्रमण से उपजा संकट एक बहुत बड़ी आपदा है

निश्चित ही कोरोना वायरस के संक्रमण से उपजा संकट एक बहुत बड़ी आपदा है, फिर भी विश्वास है कि हम भारतीय इस आपदा को एक अवसर बनाएंगे। एमएमएमई मंत्री नितिन गडकरी ने भी बार-बार इस संकल्प को दोहराया है। सस्ते श्रम, युवा पीढ़ी और नई कंपनियों के लिए कर की न्यूनतम दर जैसे कई आकर्षक पहलू इस दौर में भारत को आकर्षक बनाते हैं। वहीं अमेरिका और चीन के बीच तनातनी भी भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है।

( लेखक चैंबर ऑफ इंडियन एमएसएमई के प्रेसिडेंट हैं )