भरत झुनझुनवाला। तेल के वैश्विक दाम वर्ष 2016 की तुलना में आज लगभग तीन गुना हो गए हैं। भारत पर तेल के ऊंचे दाम की दोहरी मार पड़ती है, क्योंकि हम अपनी खपत का 85 प्रतिशत तेल आयात करते हैं। इससे घरेलू महंगाई के साथ-साथ हमारा रुपया कमजोर होता है। हमारी आर्थिक संप्रभुता भी प्रभावित होती है। यदि किसी परिस्थिति में तेल का आयात रुक गया तो हमारी पूरी अर्थव्यवस्था ठप हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सही कहा था कि हमें आयातित तेल पर निर्भरता को घटाकर 50 प्रतिशत पर लाना होगा। इस दिशा में तेल के ऊंचे दाम मददगार हो सकते हैं। तेल के ऊंचे दाम के लाभ और हानि, दोनों हैं। पहले हानि पर विचार करें। इसकी मुख्य हानि यह होती है कि हमारा व्यापार घाटा बढ़ता है।

दरअसल, आयातित तेल का भुगतान करने के लिए हमें डालर की जरूरत पड़ती है। इन डालर को अर्जित करने के लिए हमें अपने माल जैसे लौह खनिज को औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है। इससे बचने के लिए हमें सेवा क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए। सेवा क्षेत्र जैसे-सिनेमा, संगीत, लेखन इत्यादि में ऊर्जा की खपत कम होती है, जबकि विनिर्माण में ऊर्जा की खपत 10 गुना अधिक होती है। भारत में ऊर्जा के स्नेत कम हैं और हमारी अंग्रेजी शिक्षा की स्थिति भी बेहतर है। अत: ऐसा करने से हमारी आय बढ़ेगी और तेल की खपत कम होगी। बताते चलें कि चीन की आय में विनिर्माण का हिस्सा अधिक होने से एक किलो कच्चे तेल से चीन केवल 5.3 डालर की कीमत के माल का उत्पादन करता है। इसकी तुलना में भारत 8.2 डालर, अमेरिका 8.6 डालर और इंग्लैंड 16.2 डालर के माल का उत्पादन करते हैं। इंग्लैंड की आय में वित्तीय एवं शिक्षा सेवाओं का हिस्सा अधिक है। अत: यदि हम इंग्लैंड की तरह शिक्षा आदि सेवा क्षेत्रों में आगे बढ़ें तो एक किलो तेल से आज की तुलना में दोगुना उत्पादन कर सकते हैं।

हमें तेल के ऊंचे दाम के महंगाई पर प्रभाव को अधिक तूल नहीं देना चाहिए, क्योंकि वर्तमान महंगाई का प्रमुख कारण अर्थव्यवस्था की अच्छी चाल है। जैसे वर्ष 2018 में देश में 3.4 प्रतिशत की दर से मूल्य वृद्धि हो रही थी, वैसे ही वर्तमान में 6.2 प्रतिशत की दर से हो रही है। इसमें 2.8 प्रतिशत की अतिरिक्त वृद्धि हुई है, लेकिन देखा जाए तो साथ-साथ अर्थव्यवस्था भी द्रुत गति से चल रही है। जीएसटी की वसूली पूर्व के लगभग एक लाख करोड़ रुपये प्रति माह की तुलना में सितंबर 2021 में बढ़कर 1.17 लाख करोड़ रुपये हो गई है। यानी अर्थव्यवस्था में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हम मान सकते हैं कि इसी के समानांतर हमारे देश के नागरिकों की आय में भी वृद्धि हुई होगी। इसकी तुलना में तेल के मूल्य का महंगाई पर प्रभाव कम पड़ता है। एक अनुमान है कि पेट्रोल के दाम में 100 प्रतिशत वृद्धि होने पर देश में महंगाई एक प्रतिशत बढ़ती है। डीजल के दाम में 100 प्रतिशत वृद्धि होने पर महंगाई 2.3 प्रतिशत बढ़ती है। दोनों का सम्मिलित प्रभाव हम 1.5 प्रतिशत मान सकते हैं। इसलिए तेल के दाम में हुई 50 प्रतिशत की वृद्धि का महंगाई पर केवल 0.75 प्रतिशत प्रभाव पड़ा होगा, जबकि महंगाई 2.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। इसका अर्थ हुआ कि महंगाई अर्थव्यवस्था की बढ़ी चाल के कारण ज्यादा बढ़ी है। वर्तमान में तेल के दाम उछल रहे हैं, क्योंकि विश्व में उत्पादन बढ़ रहा है। इससे लोगों की आय भी बढ़ रही है। इस बढ़ी हुई आय से उपभोक्ता महंगा तेल खरीद सकते हैं।

तेल की मूल्य वृद्धि से तीसरा प्रभाव वित्तीय घाटे पर बताया जा रहा है। यह वास्तव में भ्रामक तर्क है। अपने देश में तेल पर आयात कर प्रतिशत के रूप में लगाया जाता है। तेल पर वसूली गई एक्साइज ड्यूटी यानी उत्पाद शुल्क लगभग 36 प्रतिशत होती है। इसलिए तेल के दाम बढ़ने के साथ टैक्स की वसूली भी बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप सरकार का राजस्व भी बढ़ता है। लिहाजा वित्तीय घाटा घटता है, न कि बढ़ता है। यदि केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी की दर में कटौती करे तब सरकार का राजस्व घटेगा और वित्तीय घाटा बढ़ेगा, लेकिन यह प्रभाव एक्साइज ड्यूटी की दर में कटौती का होगा, न कि तेल के दाम में वृद्धि का। हालांकि अभी न तो सरकार एक्साइज ड्यूटी की दर में कटौती कर रही है और न ही उसको ऐसा करना चाहिए, क्योंकि तेल के ऊंचे दाम के कई लाभ भी हैं जिन पर हमें विचार करना चाहिए।

पहला लाभ यह है कि तेल के ऊंचे दाम विश्व अर्थव्यवस्था की गति को दर्शाते हैं। इससे हमारे निर्यात में भी वृद्धि होती है, जिसका हमारी अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दूसरा, तेल निर्यातक देशों में कार्यरत भारतीय श्रमिकों द्वारा रेमिटेंस अधिक भेजी जाएगी। तीसरा, तेल के ऊंचे दाम से हमारी ऊर्जा उपयोग की कुशलता में सुधार होगा। जब तेल के दाम ऊंचे होते हैं तब हम अधिक एवरेज देने वाली बाइक या कार खरीदते हैं। इससे तेल की खपत कम होती है और हमारी आर्थिक संप्रभुता के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिग पर भी प्रभाव कम पड़ता है, जिसका संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ता है। ध्यान दें कि ग्लोबल वार्मिग के कारण तूफान, बाढ़, सूखा इत्यादि समस्याएं पैदा हो रही हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं। चौथा, सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है जिससे अंतत: हमारी आर्थिक संप्रभुता सुरक्षित होती है और ग्लोबल वार्मिंग कम होती है। इन लाभों को देखते हुए हमें तेल के ऊंचे दाम को सहन करना चाहिए।

बिजली उत्पादन के लिए जिम्मेदार ऊर्जा मंत्रलय में कार्यरत नौकरशाहों का एक वर्ग मानता है कि ऊर्जा की अधिक खपत ऊंचे जीवन स्तर का द्योतक है। ऐसा कहना तार्किक नहीं है। जानकारों का कहना है कि जीवन स्तर और ऊर्जा खपत का संबंध विच्छेद हो गया है। आज हम कम ऊर्जा में उत्तम जीवन जी सकते हैं। कम ऊर्जा से बाइक, रेफ्रिजरेटर आदि उपकरणों को चलाया जा सकता है। पानी गर्म करने के लिए सोलर पैनल लगाए जा सकते हैं। सुख आम के पेड़ के नीचे निद्रा में ज्यादा और एयरकंडीशन बंद कमरे में कम भी हो सकता है। इसलिए ऊर्जा की खपत बढ़ाने के स्थान पर कम ऊर्जा में उच्च जीवन स्तर हासिल करने के उपाय खोजने चाहिए। तेल के ऊंचे दाम को सहन और वहन करना चाहिए।

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)