सीएए का विरोध प्रदर्शन: आखिर पुलिस को क्यों सहन करनी पड़ रही है अराजकता की मार
अहमदाबाद में साहसी मुस्लिम युवकों ने दंगाइयों से घिरे पुलिसकर्मियों को बचाया। ऐसे युवाओं का सार्वजनिक अभिनंदन किया जाना चाहिए।
[ विक्रम सिंह ]: नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन और उसके साथ ही अराजकता का दौर थमने का नाम न लेना चिंताजनक है। इस कानून के विरोध में बंगाल के उपरांत दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच जो हिंसक झड़प हुई उसके बाद से हिंसा का सिलसिला तेज हुआ है। इस विश्वविद्यालय की घटना को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर अभी तक चल रहा है। कुलपति नजमा अख्तर का आरोप है कि पुलिस ने बिना अनुमति विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। कानूनी स्थिति के बारे में बौद्धिक जमात द्वारा भी जमकर भ्रम फैलाया जा रहा है।
पुलिस को किसी विश्वविद्यालय में बिना अनुमति के प्रवेश का अधिकार नहीं- बॉलीवुड कलाकार
इसमें हमारे बॉलीवुड के कलाकार भी पीछे नहीं हैैं। वे कह रहे हैैं कि पुलिस को किसी विश्वविद्यालय में बिना अनुमति प्रवेश का अधिकार नहीं है। इस कोरी कल्पना भरी बयानबाजी से असमंजस की स्थिति उत्पन्न हुई, जिसका बेजा लाभ उठाया गया। लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि सीआरपीसी की धारा 41, 46, 47, 48 में स्पष्ट वैधानिक प्रावधान है कि हिंसा और अपराध की स्थिति में पुलिस किसी भी क्षेत्र में प्रवेश करने और वैधानिक कार्रवाई कर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए स्वतंत्र है।
प्रदर्शनकारियों पर पुलिस बल का प्रयोग
देश में जहां-जहां हिंसा हो रही है वहां-वहां पुलिस पर यह आरोप भी चस्पा किया जा रहा है कि प्रदर्शनकारियों पर उसने अनुपात से कहीं अधिक बल का प्रयोग किया। आखिर पुलिस तब क्या करे जब कोई उस पर पेट्रोल बम फेंके, पत्थर बरसाए, घटनास्थल पर गीले बोरों को इस उद्देश्य से जमा करे कि जब आंसू गैस छोड़ी जाए तो उसे निष्प्रभावी किया जा सके? इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रदर्शनकारी पुलिस से सीधा मुकाबला करने की मंशा से आ रहे हैैं। ऐसी हालात में पुलिस हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठ सकती।
अराजक प्रदर्शन की तैयारी से पुलिस अनभिज्ञ
इसके बावजूद पुलिस के स्तर पर भी कुछ कमियां जाहिर होती हैैं। कोई घटना अकस्मात नहीं होती। यदि अराजक प्रदर्शन की तैयारी हो रही हो तो पुलिस को पहले से कुछ जानकारी होनी चाहिए। तदनुसार तैयारी होनी चाहिए। ऐसा न हो पाने के भी कुछ कारण हैैं। समस्त पुलिस बलों के साथ केंद्रीय पुलिस बलों में भी 30 प्रतिशत से ऊपर पद रिक्त हैं। पुलिस बल में महिलाओं की संख्या भी न के बराबर है। इसके अलावा आधुनिक उपकरणों की भी कमी है।
बेकाबू भीड़ पर नियंत्रण के लिए स्टन गैस काफी सफल
कई देशों में ऐसे उपकरण आ गए हैं जिनके प्रयोग से हिंसक प्रदर्शनों पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे फेस रिकगनिशन और ड्रोन टेक्नोलॉजी। बेकाबू भीड़ पर नियंत्रण के लिए स्टन गैस काफी सफल रहा है। अनियंत्रित भीड़ पर छिड़काव से असहनीय दुर्गंध आती है। इससे केवल कुछ ही देर के लिए व्यक्ति मूर्छा की स्थिति में आता है, लेकिन उसे कोई शारीरिक क्षति नहीं पहुंचती। हमारी पुलिस को ऐसे उपकरणों और तकनीक की सख्त दरकार है। यदि पुलिस इनसे लैस होकर मैदान में उतरें तो बलवाई उस पर भारी नहीं पड़ेंगे। अभी वे भारी पड़ जा रहे हैैं।
सोशल मीडिया में फेक न्यूज फैलाने वालों पर पाबंदी लगनी चाहिए
देश में एक दंगा नियंत्रण योजना पहले से मौजूद है। इसके प्रभावी इस्तेमाल से भी हिंसक भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता है। बस जरूरत है कि सभी पुलिस कर्मी उसके बारे में जानकारी रखें। इसके लिए पुलिसकर्मियों को समय-समय पर प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। आजकल सोशल मीडिया के कई प्लेटफॉर्म फेक न्यूज फैलाने के बड़े माध्यम बन गए हैैं। इस पर किस तरह से नियंत्रण किया जाए, इसके बारे में गहन चिंतन की आवश्यकता है।
पुलिस सुधार- चले बहुत, पहुंचे कहीं नहीं
बीते वर्षों में पुलिस सुधार के बारे में हमने बहुत चर्चा की है, लेकिन यही कहा जा सकता है कि चले बहुत, पहुंचे कहीं नहीं। सर्वोच्च न्यायालय की 2006 की व्यवस्था के उपरांत किसी भी राज्य सरकार द्वारा इस दिशा में गंभीरता नहीं दिखाई गई। पुलिस सुधार लागू करने के साथ ही इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति उनकी योग्यता के आधार पर ही की जाए।
हिंसा और आगजनी से सार्वजनिक संपत्ति की हानि की भरपाई उपद्रवियों से की जानी चाहिए
हालांकि वर्तमान समय में भी पुलिस के पास ऐसे कुछ उपाय हैैं जिसका इस्तेमाल कर वह हालात काबू में कर सकती है। जैसे पुलिस एक्ट 1861 की आलोचना होती रहती है, लेकिन इसकी धारा 15 और धारा 15ए काफी प्रभावी हैैं। धारा 15 के तहत हिंसक क्षेत्रों में अतिरिक्त पुलिस बल का नियुक्ति की जाती है। वहीं धारा 15ए के अंतर्गत ऐसे क्षेत्रों में पुलिस बल की नियुक्ति पर जो खर्च आता है उसकी पूरी भरपाई उपद्रवियों से की जाती है। अगर हिंसा और आगजनी से सार्वजनिक संपत्ति की हानि हुई हो तो यह प्रावधान कहता है कि गुंडा तत्वों को चिन्हित कर उनसे जुर्माना वसूला जाना चाहिए ताकि क्षति की भरपाई की जा सके।
कम्युनिटी पुलिसिंग और शांति समितियों से जनता को विश्वास में लेना चाहिए
हिंसा और दंगे के दौरान पुलिस के नेतृत्व का भी बड़ा महत्व है। जहां पुलिस अधिकारी खुद मौके पर जाते हैैं वहां कमोबेश स्थिति नियंत्रण में आ जाती है। जिस प्रकार लखनऊ में पुलिस अधिकारियों ने अंततोगत्वा घटनास्थल पर पहुंचकर पुलिस बल का नेतृत्व किया वह हर जगह होना चाहिए। उत्तेजना भरे माहौल में कम्युनिटी पुलिसिंग और शांति समितियों के माध्यम से जनता को विश्वास में लेने से भी फायदा होता है।
दंगाइयों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत चल अचल संपत्ति को कुर्क करके हिंसा का खतरा टल जाता है
हिंसक घटनाओं के दौर में पुराने क्रियाशील दंगाइयों की पहचान कर गैंगस्टर एक्ट के तहत उनकी चल अचल संपत्ति को कुर्क करने के बारे में भी विचार करना चाहिए। ऐसे लोग गिने चुने ही होते हैैं। इन पर प्रभावी कार्रवाई हो जाए तो हिंसा का खतरा टल जाता है।
हिंसा की एक वजह नागरिकता कानून को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति
पुलिस को सक्षम बनाने के उपायों पर अमल की जरूरत तो है ही, लेकिन विभिन्न दलों द्वारा नागरिकता कानून को लेकर जिस प्रकार भ्रम की स्थिति उत्पन्न की जा रही है वह भी मौजूदा हिंसा की एक वजह है। एक मुख्यमंत्री सुझाव दे रही हैं कि संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की आवश्यकता है। एक और राष्ट्रीय स्तर के नेता कहते हैं कि सरकार को धारा 144 लगाने का अधिकार नहीं। कुल मिलाकर हर कोई मनमाने बयान दे रहा है। इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि जिन नेताओं को समाज को सही जानकारी देनी चाहिए वही जनता और विशेषकर विद्यार्थियों को गुमराह कर रहे हैैं।
अहमदाबाद में साहसी मुस्लिम युवकों ने पथराव झेल रहे पुलिसकर्मियों को बचाया
अशांति और अराजकता के इस वातावरण में जब कई नेतागण गैर जिम्मेदारी का परिचय दे रहे हैैं तब कुछ अनुकरणीय दृष्टांत भी प्रकाश में आए हैं। अहमदाबाद में शाह आलम क्षेत्र में जब पुलिस को दंगाइयों ने घेर लिया तो सात मुस्लिम युवाओं ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पथराव झेल रहे पुलिसकर्मियों को बचाया। इन युवाओें ने जिस साहस का परिचय देकर अपने नागरिक उत्तरदायित्व का निर्वहन किया वह वास्तव में अनुकरणीय है। ऐसे युवाओं का सार्वजनिक अभिनंदन किया जाना चाहिए। समाज को ऐसे ही लोगों की जरूरत है, न कि उनकी जो मिथ्या जानकारी से जन सामान्य को उकसाकर पुलिस और साथ ही कानून एवं व्यवस्था को संकट में डाल रहे हैैं।
( लेखक उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजीपी रहे हैैं )