पूरी सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं जो स्थाई हो। जड़-पदार्थों का अस्तित्व बनता-बिगड़ता रहता है। तब जीव भी कुछ काल तक अस्तित्व में रहकर समाप्त हो जाता है। जीवों में एकमात्र मनुष्य ही है, जो स्वर्ग-नर्क की धारणाओं से बंधा हुआ है। धर्मग्रंथों से लेकर सत्संगों तक में यह कहा जाता है कि अच्छे काम करने चाहिए ताकि स्वर्ग मिले, बुरे काम करने पर नर्क मिलता है। यहीं यह विषय बहस का मुद्दा बन जाता है कि किसने स्वर्ग-नर्क देखा है। इस धारणा के मानने वाले भी सिर्फ यही कहते हैं कि अनेक ग्रंथों में इसका उल्लेख है। मृत्यु के बाद क्या होता है, किसके साथ क्या होता है, यह आस्था पर ही निर्भर है, लेकिन यदि गहराई से मनन किया जाए तो स्वर्ग-नर्क धरती पर ही दिख जाएगा। स्वर्ग व नर्क को मृत्यु के दिन ही नहीं, बल्कि हर घड़ी इसे देखा जा सकता है। प्रथमदृष्टया स्वर्ग-नर्क को क्रमश: सकारात्मकता और नकारात्मकता की छाया प्रति मान कर चिंतन करना चाहिए। जब व्यक्ति सकारात्मक कार्य करता है, तब उसे प्रसन्नता होती है, बस यही स्वर्ग है। स्वर्ग का जीवन आनंददायी बताया गया है। जहां आनंद वहां परमानंद स्वरूप नारायण मौजूद हैं, जबकि नकारात्मक जीवन से भय, ग्लानि, चिंता मन में आती है। हर पल अज्ञात भय बेचैन किए रहता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि नकारात्मक कार्य करने पर दुनिया भले न जाने व्यक्ति का मन तो किए गए नकारात्मक कार्य को जानता है। फिर उसका पर्दाफाश कहीं न हो जाए, इसको लेकर संशय और तनाव बना रहता है। नींद गायब हो जाती है।
यदि भय, तनाव से भूख और नींद गायब हो जाए तो फिर जीवन का एक बड़ा सुख गायब हो जाता है। इस संबंध में अकबर-बीरबल की एक कथा समीचीन है कि जब अकबर ने बीरबल से पूछा कि कैसे जान लेते हो कि कोई मरता है तो वह स्वर्ग गया या नर्क गया। बीरबल ने कहा कि जब कोई मरता है और उसके इलाके में लोग मृतक के मरने से अंदर से दुखी दिखते हैं और बोलते हैं कि जब तक जीया लोगों की मदद की, तब जान लेते हैं कि वह स्वर्ग गया और जब मरने वाले की निंदा के साथ उसके कर्मों को कोसते हैं, तब मान लेता हूं कि नर्क गया। यह कहना कि मृत्यु के बाद स्वर्ग-नर्क का निर्धारण होगा, यह व्यक्ति को शिक्षा देने के लिए ग्रंथों में कहा गया है।
[ सलिल पांडेय ]