पंकज चतुर्वेदी। Surya Grahan 2020: इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 21 जून को होगा और यह पूर्ण ग्रहण ‘रिंग ऑफ फायर’ की तरह लगेगा। इसमें चंद्रमा सूरज को पूरी तरह ढंक लेगा। चमकते सूर्य का केवल बाहरी हिस्सा दमकता दिखेगा। कुल मिलाकर यह मुद्रिका की भांति दिखेगा। हालांकि ‘रिंग ऑफ फायर’ का यह नजारा कुछ सेकेंड से लेकर 12 मिनट तक ही देखा जा सकेगा। यह ग्रहण भारतीय समयानुसार सुबह नौ बजे शुरू होगा और दोपहर तीन बजे तक रहेगा। पूर्ण ग्रहण 10 बजकर 17 मिनट पर होगा। यह ग्रहण अफ्रीका, पाकिस्तान के दक्षिण भाग में, उत्तरी भारत और चीन में देखा जा सकेगा। भारत में यह खंडग्रास चंद्र ग्रहण होगा। उल्लेखनीय है कि 21 जून का दिन, सबसे बड़ा दिन होता है और उस दिन इतने लंबे समय तक सूर्य ग्रहण का होना एक विलक्षण वैज्ञानिक घटना है। ऐसा अवसर लगभग सालों बाद आया है।

महज परछाइयों का खेल : इस दिन सूर्य और पृथ्वी के बीच 15,02,35,882 किमी की दूरी होगी। इस समय पर चांद अपने पथ पर चलते हुए 3,91,482 किमी की दूरी बनाए रखेगा। दुनिया के अधिकांश देशों में यह धारणा रही है कि पूर्ण ग्रहण कोई अनिष्टकारी घटना है। आज जब मानव चांद पर झंडे गाड़ चुका है तो ऐसे में ग्रह-नक्षत्रों की हकीकत सबके सामने आ चुकी है। सूर्य या चंद्र ग्रहण महज परछाइयों का खेल है। जैसाकि हम जानते हैं कि पृथ्वी और चंद्रमा दोनों अलग-अलग कक्षाओं में अपनी धुरी के चारों ओर घूमते हुए सूर्य के चक्कर लगा रहे हैं। सूर्य स्थिर है। पृथ्वी और चंद्रमा के भ्रमण की गति अलग-अलग है। सूर्य का आकार चंद्रमा से 400 गुणा अधिक बड़ा है। लेकिन पृथ्वी से सूर्य की दूरी, चंद्रमा की तुलना में अधिक है। इस निरंतर परिक्रमाओं के दौर में जब सूरज और धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है तो धरती से ऐसा दिखता है जैसे सूर्य का एक भाग ढंक गया हो। वास्तव में होता यह है कि पृथ्वी पर चंद्रमा की छाया पड़ती है। इस छाया में खड़े हो कर सूर्य को देखने पर पूर्ण ग्रहण सरीखे दृश्य दिखते हैं। परछाईं वाला क्षेत्र सूर्य की रोशनी से वंचित रह जाता है, सो वहां दिन में भी अंधेरा हो जाता है।

वैसे तो हर महीने अमावस्या के दिन चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है, लेकिन हर बार ग्रहण नहीं लगता है। ग्रहण तभी दिखाई देगा, जब चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के तल की सीध में आती है। चूंकि चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के तल की ओर पांच अंश का झुकाव लिए हुए है, अत: हर अमावस्या को इन तीनों का एक सीध में आना संभव नहीं होता। वैसे तो कई टीवी चैनल पूर्ण सूर्य ग्रहण का सीधा प्रसारण करेंगे ही, लेकिन अपने आंगन या छत से इसे निहारना जीवन की अविस्मरणीय स्मृति होगा। यह सही है कि नंगी आंखों से सूर्य ग्रहण देखने पर सूर्य की तीव्र किरणें आंखों को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकती हैं।

इसके लिए विशेष प्रकार के फिल्म से बने चश्मे ही सुरक्षित माने गए हैं। पूरी तरह एक्सपोज की गई ब्लैक एंड वाइट कैमरा रील या ऑफसेट प्रिंटिंग में प्रयुक्त फिल्म को इस्तेमाल किया जा सकता है। इन फिल्मों को दो-तीन बार फोल्ड कर लें यानी इसकी मोटाई को दोगुना-तिगुना तक कर दें। इससे 40 वॉट के बल्ब को पांच फीट की दूरी से देखें, और यदि बल्ब का फिलामेंट दिखने लगे तो समझ लें कि फिल्म की मोटाई को अभी और बढ़ाना होगा। वैसे वेल्डिंग में इस्तेमाल 14 नंबर का ग्लास या सोलर फिल्टर फिल्म भी सूर्य ग्रहण को देखने के सुरक्षित तरीके हैं। सूर्य ग्रहण को अधिक देर तक लगातार कतई न देखें। कुछ सेकेंड देख कर पलकों को झपकाएं जरूर। सूर्य ग्रहण के दौरान घर से बाहर निकलने में कोई खतरा नहीं है। यह पूर्ण सूर्य ग्रहण हमारे वैज्ञानिक ज्ञान के भंडार के कई अनुत्तरित सवालों को खोजने में मददगार होगा।

घटना की महत्ता : दिन में अंधेरा होने की प्राकृतिक घटना को भले ही कुछ लोग अनहोनी की आशंका मानते हों, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए तो यह बहुत कुछ खोज लेने का अवसर होता है। सूर्य एक दहकता हुआ गोला है, जिसमें 90 प्रतिशत हाइड्रोजन, हीलियम एवं कुछ अन्य गैस हैं। इसका प्रकाश और ऊष्मा 93 लाख मील का सफर तय कर धरती पर पहुंचती है। सूर्य की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने का सबसे सटीक समय होता है पूर्ण ग्रहण, क्योंकि इस दौरान सूर्य की तीव्रता सबसे कम होती है। 18 अगस्त, 1868 को हुए पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान पियरे जूल्स जान्सन नामक वैज्ञानिक बड़ी मुश्किलें झेल कर भारत आया और उसने ऐसी जानकारियां एकत्र कीं, जिनके आधार पर अंग्रेज खगोलविद लाकियर ने सूर्य पर हीलियम की मौजूदगी की पुष्टि की थी। इसके तीन दशक बाद धरती पर हीलियम मिलने की खोज हुई।

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