[रविशंकर प्रसाद]। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से राम जन्मभूमि स्थल रामलला विराजमान को सौंपने का फैसला किया है। इसके साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह मंदिर निर्माण के लिए तीन महीनों के भीतर एक न्यास बनाए।

इसी न्यास को भारत सरकार वह 2.77 एकड़ जमीन भी सौंपेगी जिस पर फिलहाल रिसीवर के रूप में उसका नियंत्रण है। न्यास ही मंदिर निर्माण की पूरी व्यवस्था करेगा। यदि इसके लिए अतिरिक्त जमीन की आवश्यकता हुई तो वह भी उपलब्ध कराई जाएगी। इसे उस भूमि से दिया जाएगा जिसे केंद्र सरकार ने भू अर्जन के जरिये अपने नियंत्रण में लिया है।

राम कथा हजारों वर्षों से आम भारतीयों की प्रेरणा

फैसले में मुस्लिम पक्ष को भी मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन उपलब्ध कराने का आदेश दिया गया। अयोध्या की सीमा में यह जमीन भारत सरकार या उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जानी है। गरिमा और नैतिक आचरण मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम के व्यक्तित्व और जीवन दर्शन के प्रमुख तत्व हैं। राम कथा हजारों वर्षों से आम भारतीयों की प्रेरणा है। राम भारत की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और आध्यात्मिक विरासत के प्रमुख अंग हैं। इस लिहाज से अदालत का सर्वानुमति से आया फैसला देश की संवैधानिक मर्यादा का अप्रतिम उदाहरण है।

राम मंदिर भारत की न्यायिक और संवैधानिक मर्यादा के अनुरूप बनने जा रहा है। मेरा सौभाग्य है कि इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष मुझे भी रामलला विराजमान और हिंदू पक्ष की पैरवी का अवसर मिला।

फैसला रामलला विराजमान के पझ में

सुप्रीम कोर्ट को मुख्य रूप से चार मामलों में फैसला सुनाना था। पहला मामला रामलला के भक्त गोपाल विशारद से जुड़ा था। दूसरा निर्मोही अखाड़े का। तीसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड का। और चौथा रामलला विराजमान का जिसमें मांग थी कि विवादित जमीन का मालिकाना हक घोषित किया जाए और उनके भक्तों को पूजा का अधिकार मिले। इसमें अदालत ने निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज करते हुए फैसला रामलला विराजमान के पक्ष में सुनाया।

इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चली। 2003 में अदालत ने निर्देश दिया कि विवादित स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई द्वारा खोदाई की जाएगी। इससे हिंदू-मुस्लिम दोनों पक्ष आशंकित थे कि इसका क्या नतीजा निकले।

खुदाई में कमल का चिन्ह और गोल आकार की मूर्ति मिली

बहरहाल आदेश में अदालत ने यह भी तय किया कि उत्खनन में दो तिहाई मजदूर हिंदू और एक तिहाई मजदूर मुसलमान होंगे। उत्खनन के बाद एएसआइ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि विवादित ढांचे के नीचे दसवीं शताब्दी से निर्माण की प्रक्रिया के संकेत मिले हैं। इसमें कमल का चिन्ह, गोल आकार की मूर्ति जिसमें प्रणाला भी था, जैसे कई पुरातात्विक साक्ष्य मिले जो उत्तर भारतीय मंदिर निर्माण परंपरा के अभिन्न अंग माने जाते हैं। इसके मुताबिक विवादित बाबरी मस्जिद पुराने अवशेष की दीवारों पर बनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निर्णय में इसका संज्ञान लिया। उसने माना कि जहां से पुरातात्विक अवशेष मिले वहीं विवादित मस्जिद के आधारभूत स्तंभ हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि खोदाई में मिली वस्तुएं हिंदू धार्मिक भावनाओं की प्रतीक हैं।

अब दूसरे पहलू पर दृष्टि डालते हैं। 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने से जुड़े मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही है। इसमें साक्ष्यों के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन यदि ढांचा नहीं गिरता तो क्या अदालत खोदाई के आदेश देती। तब क्या जमीन के भीतर दफन भारत की सैकड़ों वर्ष पुरानी शाश्वत, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा सामने आ पाती। 

विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांत का भी उल्लेख

इस मामले में हजारों पन्नों के सुबूत उपलब्ध हैं। दस्तावेजी साक्ष्य भी थे। दोनों पक्षों की ओर से गवाहियां भी थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी का बहुत विस्तार से विश्लेषण किया। इसमें कई विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांत का उल्लेख बहुत आवश्यक है। जोसफ ट्राइफेनथेलर एक जेसुएट मिशनरी थे। उन्होंने 1740 ई. में भारत की यात्रा की। वह अयोध्या भी गए। इस पड़ाव को उन्होंने अपने वृतांत में ‘अजुध्या’ कहा। उनके अनुसार अयोध्या पवित्र नगरी है जहां एक वेदी है। वहां बेशचन (विष्णु) राम के रूप में पैदा हुआ थे। 

भक्तों ने सैकड़ों वर्षों तक विशेष धार्मिक संतोष प्राप्त किया

एएसआइ के महानिदेशक रहे अलेक्जेंडर कनिंघम ने भी 1862 की अपनी रिपोर्ट में अजुध्या को राम का जन्म स्थान बताया। फैजाबाद के आयुक्त और सेटलमेंट अधिकारी पी कनिंघम ने 1870 की रिपोर्ट में यह कहा, ‘अयोध्या का हिंदुओं के लिए वही महत्व है जो महत्व मुसलमानों के लिए मक्का का है।’ इन साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि राम जन्मस्थान पर प्रार्थना करते हुए उनके भक्तों ने सैकड़ों वर्षों तक विशेष धार्मिक संतोष प्राप्त किया। अदालत के अनुसार उक्त स्थान पर एक इस्लामिक ढांचे का निर्माण भी भक्तों के इस विश्वास को नहीं हिला पाया कि यह भगवान राम का जन्मस्थान नहीं है। अदालत के अनुसार मुस्लिम पक्ष द्वारा कोई भी ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह सिद्ध हो सके कि 1857 के पहले विवादित भूमि पर उनका एकाधिकार या नियंत्रण था।

मुस्लिम गवाहों ने भी स्वीकार किया ढांचे के धार्मिक चिन्ह

ऐसा भी कोई सुबूत पेश नहीं किया जिससे साबित हो कि बाबरी मस्जिद बनने के बाद उन्होंने वहां सवा तीन सौ साल तक नमाज अदा की। अदालत ने यह भी पाया कि मुस्लिम गवाहों ने भी स्वीकार किया कि ढांचे के ऊपर वराह, जय विजय और गरुड़ आदि धार्मिक चिन्ह थे। उसके अनुसार ये आस्था और विश्वास का संकेत नहीं, बल्कि सैकड़ों वर्षों से होने वाली पूजा को भी स्पष्ट करता है। 

हर्ष एवं संतोष का विषय

यह विवाद लंबे अर्से से कायम था। इसमें आस्था और भावनाओं का टकराव था। कई बार हिंसा भी हुई। मगर सत्य में इतनी शक्ति होती है कि वह उजागर होता ही है, भले ही इसमें कुछ समय लगे। यह सच न्यायिक मर्यादा के जरिये सामने आया। यह हर्ष एवं संतोष का विषय है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का विशेष अभिनंदन भी आवश्यक है। उनकी अपील ने देश में शांति, सद्भाव और भाईचारा बनाने में बहुत मदद की। यह एक नए आशावान, ऊर्जावान और भाईचारे की भावना से प्रेरित भारत के उदय का समय है। 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में भारत की समावेशी और आत्मसात करने वाली परंपरा का उल्लेख किया है जो धर्म पूजा और उपासना पद्धति को भी संस्कृति, समाज के युगानुकूल ढलने की प्रेरणा देती है। इस्लाम सहित कोई भी धर्म या पूजा पद्धति इसका अपवाद नहीं है, बल्कि यह भारतीय परंपराओं की विशेषता भी है जो किसी धर्म को कमजोर नहीं करती। संभवत: यह कबीर, रहीम और रसखान की विरासत की विजय है। न यह किसी की हार है और न किसी की जीत है, बल्कि यह भारत की विजय है।

(लेखक केंद्रीय कानून एवं न्याय, संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री हैं। वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में रामलला और हिंदू पक्ष के वकील भी रह चुके हैं)