[अश्विनी लोहानी]। रेलवे को इसका अहसास हुआ है कि उसे सुधार, पुनर्गठन और नई ऊर्जा से लबरेज होने की जरूरत है। यात्री सेवाओं के साथ-साथ माल ढुलाई के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे से जुड़ी जरूरतों को पूरा किया जा रहा है। जहां सुरक्षा पर पर्याप्त रूप से ध्यान दिया जा रहा है वहीं कार्यसंस्कृति, प्रक्रिया और ढांचागत सुधारों को लेकर भी सही दिशा में कदम बढ़े हैं। रेल तंत्र में सुधार को लेकर इतिहास में शायद पहली बार इतने बड़े कदम उठाए जा रहे हों। फिलहाल रेलवे का पूरा ध्यान अपेक्षित नतीजे देने पर केंद्रित है। सुरक्षा की दृष्टि से वर्ष 2017-18 रेलवे के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा। इस दौरान 73 रेल हादसे ही दर्ज किए गए। यह पहला ऐसा साल रहा जब इन हादसों की संख्या ने सौ का आंकड़ा पार नहीं किया और वे दहाई अंकों में ही सिमट गए। इस उपलब्धि के पीछे समूचे संगठन की सक्रियता है। इस दौरान 4,405 किलोमीटर पुरानी और खतरनाक हो चुकी रेल लाइनों की मरम्मत का काम किया गया। यह किसी भी साल का सबसे ऊंचा आंकड़ा है। 2016-17 के 2,597 किमी के आंकड़े से यह काफी अधिक रहा। बीते चार वर्षों के दौरान 5,469 मानवरहित क्रासिंग से भी निजात मिली है जहां अक्सर हादसे होते रहते थे।

यह भी ध्यान रहे कि रेलवे ने अरसे से लंबित और सुरक्षा से जुड़े तकरीबन एक लाख पदों पर भर्तियां की हैं। सुरक्षा के मोर्चे पर खर्च के लिए भी एक लाख करोड़ रुपये का विशेष कोष भी बनाया है। बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर खाई को पाटने के लिए उठाए गए कदमों के फायदे भी दिखने शुरू हो गए हैं। पिछले चार वर्षों के दौरान औसतन वार्षिक पूंजीगत व्यय 98,000 करोड़ रुपये से अधिक रहा जो उससे पिछले पांच वर्षों में इस मद में हुए व्यय का दोगुना है। पिछले चार वर्षों में रेलवे ने 9,528 किमी लंबी नई ब्रॉड गेज लाइन बिछाई है जो उससे पिछले पांच वर्षों के 7,600 किमी के आंकड़े से अधिक है। यह बुनियादी ढांचे के तेजी से निर्माण की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। विद्युतीकरण भी तरक्की का एक प्रमुख पैमाना है। बीते वित्त वर्ष 4,300 किलोमीटर लाइन का विद्युतीकरण किया गया। विद्युतीकरण के अभियान को आगे और तेजी दी जाएगी। रेल डिब्बों और इंजनों के निर्माण में भी खासी तेजी आई है। वर्ष 2017-18 के दौरान इंटीग्रेटेड कोच फैक्ट्री में 2,397 नए कोच बने तो चितरंजन लोकोमेटिव वक्र्स ने 350 इलेक्ट्रिक इंजन और डीजल लोकोमेटिव वक्र्स ने 321 डीजल इंजन बनाए। 14 सितंबर 2017 भारतीय रेल के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया, क्योंकि इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जापानी समकक्ष शिंजो आबे के साथ गुजरात में देश की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना की आधारशिला रखी।

भारत के नागरिक और रेलवे से जुड़े होने के कारण यह मेरे लिए बेहद गौरव का क्षण था। रेलों की रफ्तार के मामले में यह परियोजना मील का पत्थर साबित होगी। अहमदाबाद और मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन के जरिये यात्रा में वायु मार्ग से भी कम समय लगेगा। 2023 में पूरी होने वाली इस परियोजना के साथ ही भारत उन खास देशों की सूची में शामिल हो जाएगा जो तेज गति वाली रेलगाड़ियों के संचालन में सक्षम हैं। इससे न केवल रेल सफर के मोर्चे पर क्रांतिकारी बदलाव आएगा, बल्कि पर्यटन को भी तेजी मिलेगी। इसका तमाम काम ‘मेक इन इंडिया’ के दायरे में होने से अर्थव्यवस्था को भी बहुत फायदा होगा। भारत और जापान के बीच हुए करार में मेक इन इंडिया और तकनीकी हस्तांतरण का स्पष्ट रूप से उल्लेख है। इससे दूरदराज के इलाकों को भी प्रमुख शहरों से जोड़ने की संभावनाएं बढ़ेंगी और इस तरह बुलेट ट्रेन नए भारत के निर्माण में एक अहम पड़ाव साबित होगी।

यह भी उल्लेखनीय है कि डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का निर्माण भी गति पकड़ रहा है। इस राह में प्रबंध, अनुबंध और कानूनी मोर्चे पर आ रही तमाम अड़चनों को सुलझा लिया गया है और मार्च 2020 में ईस्टर्न एवं वेस्टर्न, दोनों कॉरिडोर एक साथ तैयार हो जाएंगे। रेलवे के लिए यह ऊंची छलांग होगी। हाल के दौर में शुरू किए गए कुछ अभियानों में से एक स्वच्छता की दिशा में भी काफी प्रगति हुई है। हालांकि इस मोर्चे पर अभी भी बहुत सुधार किए जाने की जरूरत है, फिर भी स्टेशनों और रेलगाड़ियों में स्वच्छता के पैमाने पर बड़ी उपलब्धियां हासिल हुई हैं। इनके अलावा कैर्टंरग, रेलगाड़ियों की देरी पर यात्रियों को सूचना, ई-टिकटिंग और पीओएस मशीनों जैसी सुविधाओं को भी तेजी से सिरे चढ़ाया जा रहा है। यात्रियों को बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए तेजस, अंत्योदय और हमसफर जैसी रेलगाड़ियों में नई किस्म के डिब्बे लगाए गए हैं। रेलवे ने उपनगरीय रेल सेवाओं को भी उन्नत बनाने का फैसला किया है। मुंबई उपनगरीय रेल सेवा पर 51,000 करोड़ रुपये और बेंगलुरु उपनगरीय रेल सेवा पर 17,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जाएगी ताकि करोड़ों मुसाफिरों को उसका फायदा मिल सके। राष्ट्रीय एकीकरण में रेलवे की प्रतिबद्धता को कभी भी कम करके नहीं आंका जा सकता। पिछले चार वर्षों के दौरान 970 किमी गेज रूपांतरण हुआ है और पूर्वोत्तर भारत उस ब्रॉड गेज के साथ जुड़ा जो पूरे देश में फैला है। मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम जैसे राज्य भी अब रेल संपर्क से जुड़ गए हैं। इसके साथ ही अरुणाचल में ईटानगर और असम में सिल्चर से नई दिल्ली के बीच सीधी रेल सेवा भी शुरू हो गई है।

भारतीय रेल असल में वह पहिया है जो पूरे देश को गति देता है। इसे देश की आर्थिक जीवनरेखा भी कहा जा सकता है। यह आम आदमी की पहुंच वाला आवाजाही का सबसे किफायती माध्यम तो है ही। वर्ष 2014 में नई सरकार के कमान संभालने के बाद से रेलवे के कायाकल्प की दिशा में जो अनेक कदम उठाए गए हैं उनके मूल में सुधार ही हैं, फिर भी इस हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि रेलवे आंतरिक विरोधाभासों को बयान करने वाला संस्थान है, क्योंकि एक ओर यह कारोबारी उद्यम है तो दूसरी ओर एक मंत्रालय भी। ऐसे में यह अपनी पूरी संभावनाओं को नहीं भुना पाता। इसे नए क्षितिज पर ले जाने के लिए ढांचागत सुधार करने ही होंगे और यह जितना जल्दी हो, उतना बेहतर। परिवर्तन हमेशा कुछ परेशानी पैदा करता है, लेकिन किसी भी संस्थान को इसके लिए तैयार रहना चाहिए। अगर यह बेहतर भविष्य के लिए हो तो वर्तमान में कुछ तकलीफ झेलने में कोई बुराई नहीं। हाल के दौर में हुई प्रगति खासी उल्लेखनीय है, लेकिन इससे भी इन्कार नहीं कि हम अपनी अपेक्षाओं से पीछे हैं। अपेक्षाओं और परिणामों में चौड़ी होती खाई से यह अंतर और बढ़ता जाएगा। दरअसल स्थिति तब तक नहीं सुधरेगी जब तक रेलवे को पूरी तरह पेशेवर ढंग से चलाने के लिए हो रहे बड़े ढांचागत सुधार आकार नहीं ले लेते। सुधार प्रक्रिया को लेकर जताई गई प्रतिबद्धता से यह स्पष्ट है कि रेलवे देश के आर्थिक विकास में हमेशा एक प्रमुख किरदार बना रहेगा।

(लेखक रेलवे बोर्ड के चेयरमैन हैं)