[ सुरेंद्र किशोर ]: पटना की अदालत से मानहानि के मामले में जमानत मिलने के बाद राहुल गांधी ने कहा कि ‘मैं संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहा हूं।’ क्या किसी पर मानहानि का मुकदमा करना संविधान के खिलाफ है? इससे पहले मुंबई की एक अदालत ने भी मानहानि के एक अन्य मुकदमे में उन्हें हाल में जमानत दी है। पटना के मामले में जमानत मिलने के बाद छह जुलाई को राहुल गांधी ने कहा कि ‘भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग मुझे तंग कर रहे हैं।’ आप किसी की मानहानि करें और पीड़ित पक्ष मामला दायर कर दे तो यह कौन सा तर्क हुआ कि आपको तंग किया जा रहा है? यह तो वही बात हुई कि आप किसी की पिटाई भी कर दें और उसे रोने का भी अधिकार न दें।

राहुल समझौते के मूड में नहीं

मानहानि के ऐसे मुकदमों में होता यह है कि या तो आप अपने आरोपों को अदालत में सिद्ध करें या प्रार्थी से माफी मांग कर समझौता कर लें। अदालतें समझौते की अनुमति आसानी से दे देती हैं। उससे अमूमन मामला सुलझ जाता है, लेकिन माफी मांगने की जगह राहुल गांधी खुद को पीड़ित बता रहे हैं। अभी वह समझौते की मुद्रा में नहीं दिखते। संभवत: वह उसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं।

राहुल गांधी का राजनीतिक बयान

राहुल गांधी ने कहा है कि ‘जो लोग नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़े होते हैं, उन्हें फंसाया जाता है, परेशान किया जाता है। राहुल की मानें तो राजनीतिक कारणों से उन पर मुकदमे किए जा रहे हैं। आखिर इस बात में कौन सी होशियारी है कि किसी पर निराधार आरोप लगाकर आप देश की कचहरियों के चक्कर काटते रहें और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों से खुद को वंचित रखें? क्या राहुल गांधी देश में आपातकाल जैसी व्यवस्था की उम्मीद कर रहे हैं या उसकी इच्छा रखते हैं। या फिर वह किसी के खिलाफ कुछ भी आरोप लगाकर बच निकलना चाहते हैं?

सत्ता बचाने के लिए आपातकाल

कांग्रेस में ऐसी प्रवृत्ति आपातकाल में दिखती थी। तब अपनी गद्दी बचाने के लिए देश में आपातकाल लगा दिया गया था। जयप्रकाश नारायण सहित एक लाख से अधिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को विभिन्न जेलों में ठूंस दिया गया। उन्हें अदालत जाने से वंचित करने के साथ प्रेस का मुंह बंद कर दिया गया। यह कानूनी-प्रशासनिक प्रबंध भी कर दिया गया था कि कहीं से न तो कोई लोकतांत्रिक आवाज उठे और न ही किसी अखबार में सरकार की हल्की आलोचना भी छपे।

इंदिरा का संशोधन मोरारजी ने किया था निरस्त

इतना ही नहीं, तब इंदिरा गांधी सरकार ने 10 अगस्त 1975 को संसद से संविधान में 39 वां संशोधन पास करवा दिया। इसके तहत राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और स्पीकर के खिलाफ चुनाव याचिका की सुनवाई से अदालतों को वंचित कर दिया गया था। यह बिल्कुल असामान्य बात थी। याद रहे कि इसी अधिकार से 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के रायबरेली से चुनाव को अवैध करार दिया था। गनीमत रही कि बाद में मोरारजी देसाई सरकार ने इस संशोधन को निरस्त करा दिया।

इंदिरा की आपातकालीन मानसिकता

आपातकाल में चुपके-चुपके एक और संवैधानिक संशोधन का मसौदा तैयार हो रहा था। उसके तहत यह प्रावधान किया जाने वाला था कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसी कुछ बड़ी हस्तियों पर किसी भी तरह के मुकदमे नहीं चलाए जा सकेंगे, मगर बाद में इंदिरा सरकार ने वह विचार त्याग दिया। यह आपातकालीन मानसिकता ही है कि किसी बड़ी हस्ती को कानून के दायरे से ऊपर कर दिया जाए यानी उस पर किसी तरह का कोई कानून लागू ही न हो। किसी व्यक्ति की आप सार्वजनिक रूप से चाहे जितनी भी मानहानि कर दें, पर आपके खिलाफ कानून का सहारा न लिया जाए। लिया जाएगा तो आप आरोप लगाएंगे कि मुझे नाहक परेशान किया जा रहा है। क्या आप कानून से ऊपर हैं जिस तरह आपातकाल में इंदिरा गांधी ने खुद को कर लिया था?

क्या राहुल का रुख आपातकाल का खुमार है?

आज देश में लोकतंत्र है। कानून का शासन है। लोगों को अपनी जान और प्रतिष्ठा की रक्षा का अधिकार है, लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि वे सरेआम किसी की इज्जत उतारते चलें और जिसका अपमान हो वह अदालत भी न जा सके। क्या राहुल यही चाहते हैं? आपातकाल में अटॉर्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यदि शासन किसी की जान ले ले तब भी उसके खिलाफ किसी अदालत में सुनवाई नहीं हो सकती। क्या राहुल का मौजूदा रुख आपातकाल का ही हैंगओवर यानी खुमार है? क्या इसे आपातकाल वाली मानसिकता नहीं कहा जाएगा?

राहुल ने मुंबई की अदालत में हाजिर होकर जमानत ली

गौरी लंकेश की हत्या की चर्चा करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि कोई जब भाजपा और संघ की विचारधारा के खिलाफ बोलता है तो उस पर दबाव डाला जाता है, उस पर हमला होता है। यहां तक कि उसकी हत्या भी हो जाती है। इस बयान के बाद मुंबई की अदालत में आरएसएस कार्यकर्ता और वकील धृतिमान जोशी ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और सीताराम येचुरी के खिलाफ 2017 में मानहानि का मुकदमा दायर किया। उसी सिलसिले में राहुल गांधी और सीताराम येचुरी ने 4 जुलाई को मुंबई की अदालत में हाजिर होकर जमानत ली।

सारे चोरों का नाम मोदी ही क्यों होता है?

आम चुनाव के दौरान 13 अप्रैल को कर्नाटक के कोलार की चुनाव सभा में राहुल गांधी ने कहा था कि ‘नीरव मोदी हो, ललित मोदी हो या नरेंद्र मोदी हो, सारे चोरों का नाम मोदी ही क्यों होता है?’ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को चौकीदार कहा तो राहुल गांधी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान लगातार यह कहते रहे, ‘चौकीदार चोर है।’ यही बात वह श्रोताओं से भी बुलवाते रहे। यह गनीमत है कि खुद प्रधानमंत्री ने उन पर मानहानि का मुकदमा नहीं किया। हां, देश के अधिकांश मतदाताओं ने राहुल गांधी के इस आरोप पर विश्वास नहीं किया, पर बिहार के उप-मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील मोदी ने पटना की अदालत में जरूर राहुल गांधी पर मानहानि का मुकदमा कर दिया। अब उसकी सुनवाई चलेगी। सुशील मोदी के अनुसार, ‘चुनाव जीतने के लिए राहुल ने सारी मर्यादाओं को तोड़ दिया। ईमानदार प्रधानमंत्री को चोर कहा। माफी मांगने के बदले खुद को पीड़ित बता रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा उन्हें परेशान कर रही है।’

चोर साबित करें या फिर माफी मांगें

अब राहुल गांधी के समक्ष विकल्प सीमित हैं। या तो वह मोदी उपनाम वाले सभी लोगों को अदालती सुनवाई के दौरान चोर साबित कर दें जो एक असंभव बात है या फिर सुशील मोदी से माफी मांग लें। यदि वह ऐसा नहीं करते तो अदालती फैसले का इंतजार करें, क्योंकि संकेत हैं कि माफी के बिना सुशील मोदी मुकदमा वापस लेने को तैयार नहीं हैं। इस मुकदमे के साथ एक बड़ा मुद्दा भी जुड़ा हुआ है।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का स्तर गिर गया

आज सार्वजनिक संवाद और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का स्तर काफी नीचे गिर गया है। विशेषकर चुनाव प्रचार के दौरान बड़े-बड़े नेता भी आए दिन मर्यादा लांघ जाते हैं। कई साल पहले एक बड़े नेता ने कहा था कि चुनाव प्रचार के दौरान के अशालीन आरोप-प्रत्यारोपों को होली की गाली मानकर भुला दिया जाना चाहिए। मगर लगता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के संवाद का स्तर उस सीमा रेखा को भी लांघ गया। अच्छा होगा यदि मौजूदा मुकदमा सार्वजनिक जीवन में बोली की मर्यादा कायम करने में मदद करे।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )