डा. विजय अग्रवाल : इन दिनों संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा हो रही है। यह 25 सितंबर तक चलने वाली है। यह परीक्षा तीन चरणों में होती है-प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार। इस अवसर पर यह स्मरण रखना आवश्यक है कि पिछले वर्ष की प्रारंभिक परीक्षा का कट आफ मार्क्स 43.77 प्रतिशत रहा था। ध्यान देने की बात यह है कि 2016 में यह 58 प्रतिशत था, जो क्रमशः गिरते-गिरते इस दयनीय दशा को प्राप्त कर चुका है। इस वर्ष इसमें और भी गिरावट आने की आशंका है। पांच जून को हुई प्रारंभिक परीक्षा यदि सामान्य रूप से हुई होती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन इस बार की परीक्षा में जिस तरह के अनसुने, अनजाने और अनपढ़े प्रश्नों का ढेर लगा दिया गया, उसने परीक्षार्थियों को बेहद निराश किया। पूछे गए प्रश्नों को देखकर इन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे अगले वर्ष की तैयारी कैसे करें? वे बुरी तरह भ्रमित हुए।

प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम की घोषणा से पता चला कि लगभग एक हजार पदों के लिए करीब 13 हजार उम्मीदवारों का चयन होना था, जो हुआ, लेकिन परिणाम आने के बाद अफरातफरी इस बात को लेकर मची कि बड़े-बड़े दिग्गज धराशायी हो गए। यह स्थिति प्रारंभिक परीक्षा के बारे में कुछ मूलभूत एवं अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करती है। पहला और सामान्य सा प्रश्न तो यही है कि क्या देश की इतनी प्रतिष्ठित उच्च स्तरीय प्रतियोगी परीक्षा का इतना कम कट आफ मार्क्स आना सम्मानजनक है? यह हास्यास्पद बात है कि इसी परीक्षा के सामान्य अध्ययन के द्वितीय प्रश्न पत्र को मात्र क्वालीफाई करना पड़ता है, जो सीसैट के नाम से अधिक जाना जाता है और ऐसा करने के लिए 33 प्रतिशत अंक की जरूरत होती है।

दूसरे प्रश्न के रूप में यह बात आती है कि क्या यह गिरावट इस परीक्षा में बैठने वाले युवाओं के गिरते हुए शैक्षणिक एवं प्रतिभा के स्तर के कारण है? यदि ऐसा है, तब तो यह अत्यंत चिंताजनक है। कोई भी राष्ट्र चाहेगा कि उसके सर्वोच्च स्तरीय प्रशासन में देश की अच्छी से अच्छी प्रतिभाएं आएं। इसलिए इन सेवाओं को इतना आकर्षक एवं प्रतिष्ठापूर्ण बनाया जाता है। यदि हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो हमें अपनी प्रणाली पर पूरी गंभीरता से विचार करना होगा, लेकिन एक अच्छी बात यह है कि ऐसा है नहीं।

इसके प्रमाण के तौर पर मुख्य परीक्षा के कट आफ मार्क्स को देखा जा सकता है, जिसे प्रतिभा का संपूर्ण एवं वास्तविक परीक्षण करने वाली परीक्षा माना जाता है। 2016 में साक्षात्कार में जाने के लिए न्यूनतम 787 अंकों की जरूरत थी। यह पिछले वर्ष की परीक्षा में 745 (कुल अंक 1750) रही। 2016 में साक्षात्कार के अंकों को जोड़ने के बाद चयन के लिए न्यूनतम अंक थे-988, जो पिछले साल 944 रहे। साक्षात्कार 275 अंकों का होता है। ये आंकड़े बताते हैं कि यदि प्रतिभा में गिरावट आई होती तो उसका प्रभाव मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार, इन दोनों पर पड़ता।

आखिर प्रारंभिक परीक्षा के अंकों में इतनी कमी क्यों है? इसका उत्तर बहुत साफ है और वह यह कि पिछले कुछ वर्षों से सामान्य अध्ययन के रूप में जिस तरह के उलटे-पुलटे और कठिन प्रश्न पूछे जा रहे हैं, वे सामान्य न होकर विशेष से भी विशेष हो गए हैं। उदाहरण के रूप में इस वर्ष 2018 में अफ्रीका की एक शरणार्थी बस्ती बीडीबीडी के बारे में पूछा गया। जिन चार ग्रंथों में से जैन ग्रंथों का चयन करना था, उनके नाम थे- नेत्तिपकरण, परिशिष्टपर्वन, अवदानशतक और त्रिशिष्टलक्षण महापुराण। चाड, गिनी, लेबनान और ट्यूनीशिया की घटनाओं पर प्रश्न था। मध्यकालीन भारत से एक प्रश्न था कि कौन कुलाह-दान कहलाते हैं? चाय बोर्ड के विदेश में कहां-कहां कार्यालय हैं? प्रभाजी कक्षीय बमबारी प्रणाली क्या है? ऐसे अनेक प्रश्न हैं। यह पाया गया है कि इस बार के कुल सौ प्रश्नों में लगभग 55 प्रश्न अत्यंत कठिन श्रेणी के हैं। बहुत से प्रश्न तो ऐसे हैं कि उनके उत्तर के रूप में दिए गए विकल्पों के समूहों से भी सही उत्तर तक पहुंचने का कोई सूत्र नहीं मिलता। अधिकांश पूछे गए तथ्य भी ऐसे होते हैं कि उनका ज्ञान या सिविल सेवा के करियर से कोई संबद्धता नहीं होती।

प्रारंभिक परीक्षा के साथ एक दिक्कत यह भी है कि न तो इसका पाठ्यक्रम बहुत स्पष्ट है, और न ही इसके ज्ञान का स्तर। हालांकि यूपीएससी ने मुख्य परीक्षा के लिए इन दोनों का स्पष्ट प्रविधान किया हुआ है, लेकिन इस प्रारंभिक परीक्षा के लिए नहीं। यदि हम व्यावहारिक रूप में मुख्य परीक्षा के निर्देशों को प्रारंभिक परीक्षा के लिए मानकर चलें तो फिलहाल वह सुसंगत नहीं दिख रहा है।

मुख्य परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में आयोग ने कहा है कि ‘प्रश्न ऐसे होंगे कि कोई भी सुशिक्षित व्यक्ति बिना किसी विशेष अध्ययन के इनका उत्तर दे सके।’ सामान्य अध्ययन का सामान्य और एकमात्र अर्थ भी यही होता है, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा में यह बात दिखाई नहीं देती। यही कारण है कि इसमें अंकों का प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा है। जबकि मुख्य परीक्षा के अंतिम परिणाम के अंकों में एक प्रकार की स्थिरता बनी हुई है, सिवाय 2013 की मुख्य परीक्षा के। यूपीएससी को चाहिए कि वह इस स्थिति पर पूरी संवेदनशीलता के साथ विचार करके इसे प्रतियोगियों के स्तर के अनुकूल बनाए, ताकि एक तार्किक एवं व्यवस्थित रूप से उनका मानसिक परीक्षण हो सके। वर्तमान के ‘बौद्धिक अन्याय’ को उसे दूर करना ही चाहिए।

(लेखक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी हैं)