[राहुल लाल]। एलआइसी यानी भारतीय जीवन बीमा निगम में देश की अधिकांश जनता की जमा पूंजी है। जनता अपनी बचत इसकी पॉलिसी में जमा करती है। इस पैसे के सहारे उसके परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है। लेकिन अब एलआइसी पर दोहरी मार पड़ रही है। पहले तो आइडीबीआइ बैंक को कर्ज से उबारने में एलआइसी खोखली हुई और अब स्वयं सरकार इसमें अपनी हिस्सेदारी बेच रही है।

वहीं आइडीबीआइ में भी केंद्र अपनी हिस्सेदारी बेच रही है। इससे भी एलआइसी के दबाव में वृद्धि होगी, क्योंकि 1.25 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे आइडीबीआइ का स्वामित्व एलआइसी पर ही है। यानी आप प्रतिवर्ष जो पैसा बतौर प्रीमियम जमा करते हैं उसका इस्तेमाल बैंक को डूबने से बचाने के लिए किया जाएगा।

भारतीय संसद ने 1956 में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन एक्ट पास किया। एक सितंबर 1956 को भारतीय जीवन बीमा निगम नाम से बीमा कंपनी खड़ी हुई। 1956 से देश की अर्थव्यवस्था के साथ बीमा के क्षेत्र में कई चीजें बदली हैं। इस क्षेत्र में कई नई कंपनियां शामिल हुई हैं, लेकिन स्पर्धा के इस माहौल में भी एलआइसी सबसे आगे है।

कारोबार में 76.2 फीसद भागीदारी : बीमा कारोबार में कई बड़ी निजी कंपनियां भी उतरी हुई हैं, लेकिन उसका एलआइसी पर दूर-दूर तक कोई असर नहीं है। पूरे कारोबार में एलआइसी 76.28 प्रतिशत की भागीदारी रखती है। वित्त वर्ष 2017-18 में एलआइसी ने नए कारोबार में आठ प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त की है। वर्ष 2019 के वित्तीय वर्ष में एलआइसी को 3.37 खरब रुपये की कमाई ग्राहकों से मिलने वाले प्रीमियम से हुई, जबकि 2.2 खरब रुपये निवेश से रिटर्न के रूप में मिला।

एलआइसी का अब तक का सफर शानदार रहा है। सरकार के लिए एलआइसी ने सदैव संकटमोचक का कार्य किया है। वर्ष 2009 से 2012 तक सरकार ने विनिवेश से नौ अरब डॉलर हासिल किए, जिसमें एक तिहाई हिस्सा एलआइसी का ही था। वर्ष 2015 में ओएनजीसी के आइपीओ के वक्त एलआइसी ने 1.4 अरब डॉलर की रकम लगाई थी। लेकिन अब पांच वर्ष बाद स्थिति बदलती नजर आ रही है। अब सरकार इसमें अपनी हिस्सेदारी बेचकर अपने विनिवेश के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहती है। एलआइसी को एक्सचेंज में सूचीबद्ध करने की राह आसान भी नहीं है। आरंभिक सार्वजनिक निर्गम के जरिये इसको सूचीबद्ध कराने के फैसले पर सरकार, एलआइसी प्रबंधन और पूंजी बाजार व बीमा नियामकों के मध्य विभिन्न मामलों को लेकर तीव्र टकराव की भी संभावना है। यही कारण है कि वित्त सचिव भी इस प्रक्रिया को पूरा होने में एक वर्ष समय लगने का अनुमान लगा रहे हैं।

एलआइसी में केंद्र का 100 फीसद स्वामित्व है, जिसे उसकी पॉर्टफोलियो पर सॉवरिन गारंटी का संकेत माना जाता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार इसकी योजनाओं के लिए सॉवरिन गारंटी भविष्य में जारी रखेगी? यदि वह सॉवरिन गारंटी बरकरार रखती है, तो प्रशासन पर सवाल उठ सकते हैं, जबकि सूचीबद्ध होने के साथ ही सरकार विभिन्न संगठनों का वित्त पोषण नहीं कर सकती, जैसा एलआइसी अब तक करती रही है। इसको सूचीबद्ध करने की बात 2005 में एलआइसी बोर्ड के जरिये हुई थी, लेकिन सॉवरिन गारंटी प्रभावित होने के डर से तब इसके सूचीबद्ध होने की बात आगे नहीं बढ़ पाई। एलआइसी एक्ट की धारा-37 कहती है कि एलआइसी बीमाधारकों से जो भी वादा करती है, उसमें केंद्र सरकार की गारंटी होती है। प्राइवेट सेक्टर की बीमा कंपनियों को यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। सॉवरिन गारंटी खत्म होने से एलआइसी के बीमाधारकों की स्थिति अत्यंत कमजोर हो जाएगी।

एनपीए में वृद्धि : ‘भरोसे का प्रतीक’ माने जाने वाले एलआइसी के पिछले पांच वर्षों के आंकड़े बताते हैं इस दौरान इसका एनपीए दोगुने स्तर तक पहुंच गया है। मार्च 2019 तक एनपीए का आंकड़ा निवेश के अनुपात में 6.15 फीसद के स्तर तक पहुंच गया है, जबकि वर्ष 2014-15 में एनपीए 3.3 प्रतिशत के स्तर पर था। एलआइसी की 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2019 को कंपनी का सकल एनपीए 24,777 करोड़ रुपये था, जबकि कंपनी पर कुल देनदारी यानी कर्ज चार लाख करोड़ रुपये से अधिक का था।

एलआइसी की यह हालत इसलिए हुई है, क्योंकि जिन कंपनियों में उसने निवेश किया था, वे दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई हैं, इसमें दीवान हाउसिंग, रिलायंस कैपिटल, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस, पीरामल कैपिटल और यस बैंक शामिल हैं। एबीजी शिपयार्ड, एमटेक ऑटो और जेपी ग्रुप में भी इसका निवेश था, जो डूब गया। एनबीएफसी से वित्तीय सेक्टर में हुई तबाही का असर भी इस पर हुआ। एलआइसी ने इन कंपनियों में निवेश किया था।

निष्कर्ष: मौजूदा नियमों के अनुसार कोई भी बीमा कंपनी किसी भी अन्य कंपनी में 15 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं खरीद सकती है। लेकिन बीमा क्षेत्र के रेगुलेटर आइआरडीएआइ ने जून 2018 में हैदराबाद की बोर्ड बैठक में एलआइसी को विशेष अनुमति दी। इस अनुमति के बाद ही अब एलआइसी आइडीबीआइ में 51

प्रतिशत निवेश कर पाई। अभी तक किसी भी बीमा कंपनी को ऐसी अनुमति नहीं दी गई है, लेकिन अब एलआइसी ऐसी पहली कंपनी हो गई है। एलआइसी की इससे पूर्व आइडीबीआइ बैंक में 11 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जो 51 प्रतिशत हो चुकी है। इस घटनाक्रम से एलआइसी उबर भी नहीं पाई थी, इधर सरकार ने आइडीबीआइ बैंक की शेष हिस्सेदारी को बेचने का निर्णय लेकर एलआइसी को और झटका लगा दिया।

एलआइसी का सॉवरिन गारंटी ही बीमाधारकों को सबसे ज्यादा भरोसा उत्पन्न करता था, लेकिन आइपीओ जारी करने के बाद यह गारंटी कायम नहीं रह पाएगी और अगर कायम रहेगी, तो कई प्रकार की विसंगतियां उत्पन्न हो जाएगी। सूचीबद्ध होने के बाद यह सरकार के विभिन्न संगठनों का वित्त पोषण भी नहीं कर सकेगी, जैसा कि एलआइसी अब तक कर रही थी।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]