[ तसलीमा नसरीन ]: मैं हमेशा से दुनिया को अलग नजर से देखती आई हूं। स्वाभाविक है कि इस कारण तमाम सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों का विरोध ही किया है। इनके चलते ही समाज में आज भी असमानता की स्थिति कायम है। हाल के दौर में केरल के कोट्टयम स्थित मालाबार कैथोलिक चर्च के बिशप पर वहां की एक नन ने दुष्कर्म का आरोप लगाया है।

नन का आरोप है कि मई 2014 में पहली बार दुष्कर्म के बाद बीते चार वर्षों से यह सिलसिला कायम है। जब उसने चर्च प्रबंधन समिति से शिकायत की तब न तो किसी ने उसकी बातों पर विश्वास किया और न ही बिशप के खिलाफ ठोस कार्रवाई हुई। मजबूर होकर नन ने पुलिस में शिकायत की। किसी चर्च का बिशप बहुत प्रभावशाली होता है। उस पर ऐसे इल्जाम लगाना मामूली बात नहीं है। अगर किसी ने ऐसा करने की कोशिश की तो उसे तमाम हथकंडों से खामोश कर दिया जाता है। यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि इंसाफ की गुहार लगा रही पीड़िता के पक्ष में प्रभावशाली लोग खड़े क्यों नहीं हुए? लोग उसे दबाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? बिशप को धर्मगुरु मानने वाले ईसाई समुदाय के लोग इस कृत्य को कैसे स्वीकार कर सकते हैं? इसके उलट लोग नन पर ही मामला वापस लेने के लिए दबाव बनाने लगे।

चर्च की नन, धर्मगुरु व बिशप को ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। उन्हें विवाह की सख्त मनाही है। ऐसा सिर्फ ईसाई धर्म में ही नहीं, बल्र्कि हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मगुरुओं को भी इसका पालन करना पड़ता है, लेकिन जरूरी नहीं कि सभी एकनिष्ठ होकर इसका पालन करें। जापान के बौद्ध भिक्षुओं ने तो कई बार ब्रह्मचर्य के नियम को तोड़ा है। इसके कारण जापान में बौद्ध भिक्षुओं को विवाह की अनुमति मिल गई है। क्या इसे अन्य जगहों पर लागू नहीं किया जा सकता? इससे समाज में दुष्कर्म की घटनाओं में कमी आएगी। धर्मगुरुओं को ब्रह्मचर्य के पालन के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें इस पर स्वतंत्र निर्णय लेने की छूट मिलनी चाहिए। इससे समाज में व्यापक बदलाव देखने को मिलेगा। यौन हिंसा की घटनाओं में कमी आएगी। धर्म के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ेगा। मानव मन में यौन जिज्ञासा नैसर्गिक रूप से ही उत्पन्न होती है जिसे दबाने से मन में विकार ही उत्पन्न होते हैं। यह ईश्वरीय देन है तो फिर ईश्वर इससे क्यों नाराज होंगे?

महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ पश्चिमी देशों के ‘मी टू’ जैसे अभियान की तरह भारत में कभी कोई मुहिम नहीं चली। यहां तो किसी प्रभावशाली व्यक्ति के खिलाफ शिकायत करने से शिकायतकर्ता पर ही आफत आ जाती है। केरल का मामला इसकी जीती-जागती मिसाल है। यहां भी लोग बिशप के पक्ष में बोलते रहे और नन पर मामला वापस लेने का दबाव डाला जा रहा है। उसे तरह-तरह के प्रलोभन दिए। अब जालंधर में बिशप फ्रेंको मल्लकल के मामले में न्याय की जंग चल रही है। इसी बीच एक कांवेंट के कुएं से एक और नन की लाश मिली है। कुएं के आसपास खून के धब्बे थे। इससे पहले भी एक अन्य नन की लाश को कुएं से ही बरामद किया गया था। इससे प्रश्न उठता है कि क्या दोनों ने आत्महत्या की थी या फिर किसी ने उन्हें मारकर कुएं में फेंक दिया। इसकी गुत्थी सुलझना भी अभी शेष है।

असल में नारी द्वारा लगाए गए आरोप पुरुष वर्ग सहन नहीं कर पाता। इसकी अति तब देखने को मिली जब केरल के एक विधायक पीसी जॉर्ज ने आरोप लगाने वाली नन को अपशब्द तक कहे। विधायक ने कहा कि नन का आरोप है कि उसके साथ 13 बार दुष्कर्म किया गया तो उसने पहली बार दुष्कर्म होने के बाद ही शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई? खुद ही फैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा कि इससे साफ होता है कि मामला पूरी तरह बेबुनियाद है। इसके उलट हॉलीवुड में अभिनेत्रियों ने दिग्गज निर्माता हार्वे वींस्टीन के खिलाफ मोर्चा खोलकर उन्हें बैकफुट पर ला दिया। कई नामचीन अभिनेत्रियों और महिलाओं ने इस मामले में अपना दर्द बयां किया।

क्या किसी ने इस मामले में सुबूत मांगा था? नहीं। इसका नतीजा यही निकला कि वींस्टीन को अपना ऊंचा ओहदा गंवाना पड़ा। होना तो यही चाहिए कि नारी खुद कहे कि उसके साथ दुष्कर्म हुआ तो यही सबसे बड़ा प्रमाण माना जाना चाहिए। वैसे ‘मी टू’ की वजह से कुछ महिलाएं मुखर तो हुई हैं, लेकिन आज भी तमाम महिलाएं अपने शोषण की व्यथा को सीने में दबाए बैठी हैं। ‘मी टू’ जैसे अभियान ने पश्चिमी महिलाओं में आत्मविश्वास भरा है। वहीं भारत में आज भी ज्यादा तादाद उन्हीं महिलाओं की है जो ऐसे मामलों में चुप्पी साधे रखने को तरजीह देती हैं।

इस तरह देखें तो पीड़ित नन बहुत साहसी है। उन्होंने समाज की परवाह न करते हुए बिशप के खिलाफ आवाज उठाई। यह बहुत हिम्मत का काम है जो जज्बा कम ही महिलाओं में होता है। फिर भी हमारे समाज का रवैया बहुत खराब है कि जिस नन के साथ संवेदना दिखाई जानी चाहिए थी, समाज उसका ही सामाजिक बहिष्कार करने पर उतारू हो गया। कोई उसके पक्ष में लामबंद नहीं। अपनी लड़ाई उसे खुद ही लड़नी पड़ रही है। अगर यह मामला सार्वजनिक जानकारी में नहीं आता तो कौन जानता है कि शायद उसकी लाश भी किसी कुएं के पास मिलती।

तमाम लोग मानते हैं कि यदि बिशप और नन को अविवाहित होने की शर्त से मुक्त कर दिया जाए तो दुष्कर्म की घटनाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। ब्रह्मचर्य का नियम पूरी तरह विसंगतिपूर्ण है। इसमें बदलाव बहुत जरूरी है। साथ ही समाज में भी तमाम सुधार आवश्यक हैं। जो लोग नारी को अबला और कमजोर समझकर उसका शोषण अपना अधिकार समझते हैं अब उन्हें सबक सिखाने का समय आ गया है। यूरोप और अमेरिका के कैथोलिक चर्च में बच्चों के यौन शोषण से कुपित होकर समाज उनके खिलाफ आक्रोशित हो चुका है। वैसे इसमें केवल ईसाई धर्मगुरु ही नहीं शामिल हैं, बल्कि यह कुप्रथा मस्जिदों-मदरसों और हिंदू धर्मस्थलों में भी जारी है।

बिशप का मामला भी जब सार्वजनिक जानकारी में आया तो दबाव पड़ने के बाद ही इसमें जांच शुरू हुई। पुलिस ने पिछले महीने जालंधर जाकर उसका बयान रिकॉर्ड किया। जब वेटिकन को इस मामले की भनक लगी तो वहां से एक विशेष दल भारत आया। नन ने भी वेटिकन से मदद की गुहार लगाते हुए बिशप को प्रधान पद से हटाने की मांग की थी। फिर भी इस मामले को येन-केन-प्रकारेण रफा-दफा करने की साजिश होती रही है।

आयरलैंड के मेयो शहर में एक धर्मस्थल पर लोगों को संबोधित करते हुए पोप ने कहा कि चर्च में हो रही ऐसी घटनाओं से बच्चों के मन में विकार पैदा हो रहे हैं, जो काफी पीड़ादायक है। रोमन कैथोलिक चर्च के बारे में ये बातें समूची न्याय व्यवस्था को भी कठघरे में खड़ा करती है। पोप ने कहा, ‘इन सबसे वह बहुत शर्मिंदा हैं और इन घटनाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती। इससे बिशप से लेकर सभी धर्मगुरुओं पर अंगुली उठना स्वाभाविक है। मैं पीड़ितों का दर्द महसूस कर सकता हूं।’ पोप के स्तर से ऐसी बातें आश्वस्त तो करती हैं, लेकिन जब तक वास्तविकता के धरातल पर स्थिति नहीं बदलेगी तब तक संदेह के बादल गहराते ही रहेंगे।

[ लेखिका जानी-मानी साहित्यकार हैं ]