सुरेश प्रभु और पार्थो कर : वर्ष 1600-1700 के दौरान वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में भारत की हिस्सेदारी 25 से 30 प्रतिशत के बीच थी। तब भारत एक बड़ी विनिर्माण अर्थव्यवस्था थी, जिसमें कपड़ों, मसालों और नील इत्यादि का उत्पादन शामिल था। ये सब बुनकरों, किसानों और कारीगरों द्वारा उत्पादित किए जाते थे। भारत के शहरों और गांवों में आज भी ऐसे उत्कृष्ट कारीगरों की संख्या बहुत अधिक है, जो पारंपरिक कौशल को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जा रहे हैं। आज जब रोजगार का सृजन हमारे लिए एक चुनौती से कम नहीं है, तब यदि हम विनिर्माण करना चाहते हैं तो हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। चूंकि पारंपरिक कौशल से जुड़े उत्पादों का एक बड़ा बाजार है, अतः हमें इनके उत्पादन पर ध्यान देना होगा। यह आने वाले समय में बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।

वंशानुगत कौशल के दम पर आजीविका के अधिक अवसरों का सृजन किया जा सकता है, जबकि इसमें बहुत कम पूंजीगत व्यय की आवश्यकता होती है। इसके लिए सरकार द्वारा कारीगरों को कार्यशील पूंजी, बाजार से जुड़ाव, आधुनिक उत्पाद डिजाइन के साथ कारीगरों की मदद, ब्रांडिंग और उन्हें बड़ी वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनने में मदद करने की पहल की जानी चाहिए। यदि इस क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाए तो लोगों को गांवों में भी रोजगार मिल सकेगा, जिससे शहरों पर दबाव कम करने में मदद मिलेगी। इस क्षेत्र के उत्थान के लिए एक योजनाबद्ध रणनीति की आवश्यकता है। यदि इन उत्पादों को आकर्षक ढंग से पैक किया जाए और इनकी ब्रांडिंग की जाए, तो इसका प्रभाव अद्भुत होगा।

समस्या आधारभूत ढांचे या कौशल की कमी की नहीं, बल्कि डिजाइन, बाजार से जुड़ाव, ब्रांडिंग, उत्पाद विकास और नकदी प्रवाह आदि से संबंधित है। छोटे ग्रामीण उद्यमियों के लिए आनलाइन प्लेटफार्म तक पहुंचना अव्यावहारिक है। उनके लिए 25 प्रतिशत या अधिक रिटर्न का हिसाब देना लगभग मुश्किल है। इस प्रक्रिया में नकदी प्रवाह असंभव हो जाता है। इन कारीगरों को एक स्थिर खरीदार खोजने की आवश्यकता होगी, जो उन्हें डिजाइन तथा वितरण कार्यक्रम उपलब्ध कराएगा ताकि वे उचित नकदी प्रवाह के साथ गुणवत्ता वाले उत्पादों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर सकें। प्रारंभिक स्तर पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत होगी। ग्राहकों में इन उत्पादों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए, जिससे उनकी इन उत्पादों के प्रति रुचि जाग्रत हो सके। विश्व स्तर पर यह बहुत प्रभावी होगा, क्योंकि कम संसाधनों के साथ बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाना सभी के लिए आश्चर्य का विषय होगा। स्थानीय आपूर्ति शृंखला विशेष रूप से गांवों में छोटे स्थानीय वितरकों तथा रिटेलर्स को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

भारत सरकार द्वारा प्रचारित की जा रही डिजिटल बैंकिंग प्रणाली आधारभूत स्तर पर बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक लेन-देन की सुविधा प्रदान करेगी। वन प्वाइंट सेलिंग कांटैक्ट इन कारीगरों को व्यावसायिक रूप से अधिक कुशल बनाने एवं आजीविका के नए अवसर उपलब्ध कराके जीवन को बेहतर बनाने में सहायता प्रदान करेगा। इन कारीगरों को बड़ी आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनने के लिए कम से कम पांच वर्ष तक सहायता की आवश्यकता होगी। इन परियोजनाओं के लिए प्रारंभिक धन आंशिक रूप से कौशल विकास तथा मनरेगा बजट से आवंटित किया जा सकता है। कुछ राज्यों ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। जैसे उत्तर प्रदेश सरकार ओडीओपी यानी एक जिला-एक उत्पाद नीति को बढ़ावा दे रही है। राज्य को आपूर्ति शृंखला तथा उत्पाद को डिजाइन करने एवं पैकेजिंग करने के लिए हस्तक्षेप की जरूरत है। इससे लाभ भी बढ़ेगा और कारीगर उत्पाद की गुणवत्ता तथा विनिर्माण पर ध्यान दे सकेंगे। नई सहकारी नीति अलग-अलग संगठनों तथा स्वयं सहायता समूहों के गठन और कार्यशैली में सुधार लाएंगी। महिलाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। वे अपने घरों से ही इसमें भाग ले सकेंगी।

उत्तर प्रदेश में ‘टांडा जामदानी’ जैसे विस्मृत उत्पादों को पुनर्जीवित किया जा सकता है, जिसका पूरे भारत में बड़ा बाजार है। इन उत्पादों में भारत और विश्व के उपभोक्ताओं द्वारा उपभोग की जाने वाली अधिकांश वस्तुओं जैसे खाद्य उत्पाद, शिल्प, वस्त्र और सजावटी सामान इत्यादि को सम्मिलित किया जा सकता है। उत्पादों को बेहतर बनाने के लिए नई तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है। अधिकांश घरों में कांसे के बर्तनों का प्रयोग अब इसलिए नहीं किया जाता, क्योंकि उन्हें साफ करने में अधिक मेहनत और समय लगता है, परंतु आआइआइटी खड़गपुर ने एक नई तकनीक ईजाद की है, जिससे इन बर्तनों को साफ करना बहुत सरल हो गया है।

कोविड काल के पश्चात हम सभी अच्छी तरह जान गए हैं कि कांसा हमारे लिए कितना उपयोगी है! बंगाल ने एक कारपोरेशन बनाकर रिटेल, मार्केटिंग चैनल्स तथा उत्पाद डिजाइन के निर्माण से उत्पादों को बढ़ावा देने की पहल की है। यह एक सफल माडल है, जिसका पूरे भारत में अनुकरण किया जा रहा है। यदि केंद्र तथा राज्य सरकारें एक हाइब्रिड संरचना का निर्माण करें और कारीगर आधारित माडल को बढ़ावा दें तो अगले पांच वर्षों में पांच करोड़ रोजगार सृजित किए जा सकते हैं और वंशानुगत कौशल का दोहन किया जा सकता है। इसके साथ ही हमारी उन परंपराओं और संस्कृति को कायम रखा जा सकता, जो विस्मृत होती जा रही हैं।

(सुरेश प्रभु पूर्व रेल एवं वाणिज्य मंत्री और ऋषि हुड विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं तथा पार्थो कर अर्थशास्त्री एवं कारीगर आजीविका विशेषज्ञ हैं)