[ संजय गुप्त ]: राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने दोनों सदनों में विपक्ष और खासकर कांग्रेस के आरोपों की जिस तरह धज्जियां उड़ाते हुए उसके दुष्प्रचार को बेनकाब किया उसके बाद कम से कम उन लोगों को तो वास्तविकता का आभास हो ही जाना चाहिए जो नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर अंदेशे से ग्रस्त हैं या फिर उसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने न केवल यह नए सिरे से साफ किया कि इस कानून से किसी भारतीय नागरिक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला, बल्कि यह भी बताया कि इसमें संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी?

नेहरू-लियाकत समझौते ने भी अपने-अपने अल्पसंख्यकों की चिंता करने की हामी भरी थी

उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री के साथ अन्य अनेक नेताओं के उन बयानों का जिक्र किया जिनमें पूर्वी पाकिस्तान से परेशान होकर भारत में शरण लेने आए लोगों को राहत देने की जरूरत जताई गई थी। उन्होंने 1950 में असम के मुख्यमंत्री को लिखी गई नेहरू जी की उस चिट्ठी का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से आए शरणार्थियों और प्रवासियों में अंतर करना होगा। इसी के साथ उन्होंने नेहरू-लियाकत समझौते का भी उल्लेख किया, जिसमें दोनों देशों ने अपने-अपने यहां के अल्पसंख्यकों की चिंता करने की हामी भरी थी।

पाक ने समझौते का पालन नहीं किया और अल्पसंख्यक प्रताड़ित होकर भारत आते रहे

चूंकि पाकिस्तान ने इस समझौते का पालन नहीं किया इसलिए वहां के अल्पसंख्यक प्रताड़ित होकर भारत आते रहे। यह सिलसिला आज भी कायम है, लेकिन विपक्ष जानबूझकर इसकी अनदेखी करना पसंद कर रहा है। वह यह समझने को भी तैयार नहीं कि पाकिस्तान में दलितों के साथ किस तरह छल हुआ और उसके चलते वहां मंत्री रहे जोगेंद्र नाथ मंडल को किस तरह भारत आना पड़ा? पाकिस्तान में आज भी अल्पसंख्यक प्रताड़ित हो रहे हैं, लेकिन हमारे विपक्षी दल कुछ कहने को तैयार नहीं। आखिर क्यों?

कांग्रेस सीएए के प्रति अंध विरोध से ग्रस्त

कांग्रेस सीएए के प्रति किस तरह अंध विरोध से ग्रस्त है, इसका उदाहरण है उसके शासित राज्यों द्वारा इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया जाना। यह संविधान विरोधी आचरण तब किया गया जब नागरिकता के मामले में राज्य सरकारों की कहीं कोई भूमिका नहीं। नागरिकता कानून संबंधी संशोधन विधेयक पर लोकसभा और राज्यसभा में व्यापक बहस हुई थी। इसमें सभी दलों ने भाग लिया था।

कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने ऐसा माहौल बना दिया कि सीएए मुसलमानों के खिलाफ है

संसद से पारित कानून के खिलाफ सड़क पर उतरने का कोई मतलब नहीं होता, लेकिन कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने यही करना शुरू कर दिया। इन दलों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि यह कानून मुसलमानों के खिलाफ है। कुछ गैर राजनीतिक संगठन भी इसी काम में लग गए। इसी के चलते धरने-प्रदर्शन भी आयोजित होने लगे।

दिल्ली में शाहीन बाग इलाके में चल रहा धरना एक नाकाबंदी है, लाखों लोग परेशान

दिल्ली में शाहीन बाग इलाके में चल रहा धरना तो एक नाकाबंदी है। इस धरने से लाखों लोग परेशान हो रहे हैं, लेकिन उसे समर्थन दे रहे विपक्षी दलों को इसकी परवाह नहीं। उनके इसी रवैये को देखते हुए प्रधानमंत्री ने यह कहा कि यदि संसद से पारित कानून के खिलाफ जनता को भड़काया जाएगा और हिंसा को आंदोलन का अधिकार मान लिया जाएगा तो लोकतंत्र का चलना मुश्किल होगा।

धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों को राहत देने के लिए बनाए गए कानून का विरोध हो रहा

कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि आखिर नेहरू को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ समझौता क्यों करना पड़ा? इसी तरह लाल बहादुर शास्त्री को यह क्यों कहना पड़ा कि पूर्वी पाकिस्तान के पीड़ित अल्पसंख्यकों को राहत देने के लिए कुछ उपाय किए जाने चाहिए? क्या इससे खराब बात और कोई हो सकती है कि 1964 में तो पड़ोसी देशों में हो रहे धार्मिक उत्पीड़न पर चिंता जताई गई, लेकिन आज ऐसा करने से न केवल बचा जा रहा है, बल्कि इस उत्पीड़न के शिकार लोगों को राहत देने के लिए बनाए गए कानून का विरोध हो रहा है।

मोदी सरकार ने वही काम किया जैसा मनमोहन चाह रहे थे

प्रधानमंत्री ने यह सही सवाल पूछा कि क्या नेहरू और शास्त्री ने ऐसे बयान इसलिए दिए, क्योंकि वे देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते थे? कम से कम कांग्रेस को यह तो स्मरण ही होगा कि मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में नेता विपक्ष के तौर पर बांग्लादेश जैसे देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को लेकर क्या मांग की थी? कायदे से उन्हें प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी इस मांग के अनुरूप कदम उठाने चाहिए थे, लेकिन उन्होंने दस साल तक कुछ नहीं किया। इससे भी हैरानी की बात यह है कि अब जब मोदी सरकार ने वही काम किया जैसा वह चाह रहे थे तो कांग्रेस विरोध कर रही है। यह तो एक तरह से खुद के खिलाफ खड़ा होना है।

पीएम मोदी ने संसद में कांग्रेस के दोहरे मानदंडों को किया बेनकाब

हालांकि प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के दोहरे मानदंडों को बेनकाब करने में कोई कसर नहीं उठा रखी, लेकिन लगता नहीं कि उसके रवैये में कोई सुधार होगा। इसके भी आसार कम ही हैं, जो लोग सीएए के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं वे भी अपनी जिद छोड़ेंगे, क्योंकि उनका विरोध प्रायोजित है और उसका मकसद भी कुछ और है। शाहीन बाग और ऐसे ही जो धरने देश के अन्य हिस्सों में चल रहे हैं वे बिना किसी राजनीतिक छत्रछाया के चल ही नहीं सकते।

शाहीन बाग धरने को राजनीतिक दलों के साथ पीएफआइ का संरक्षण प्राप्त है

शाहीन बाग धरने को लेकर तो ऐसे प्रमाण भी सामने आ गए हैं कि उसे राजनीतिक दलों के साथ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआइ जैसे कुछ संदिग्ध किस्म के संगठन समर्थन और पैसा दे रहे हैं। इस तरह के धरनों में मुस्लिम समाज के मुट्ठी भर लोग ही शामिल हैं, लेकिन देश को यह दिखाया जा रहा है कि उसमें हर वर्ग के लोगों की भागीदारी है। यह निराशाजनक है कि चंद लोगों का रुख पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए कठिनाई का कारण बन गया है।

विपक्षी दल सीएए विरोधी राजनीति पर इतना आगे बढ़ गए कि वहां से लौटना मुश्किल

विपक्षी दल सीएए विरोधी राजनीति पर इतना आगे बढ़ गए हैं कि उन्हें वापस लौटना मुश्किल हो सकता है। वे इस कानून के साथ ही एनपीआर को लेकर भी अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसा करके वे एक तरह से अपने ही बुने जाल में फंसते जा रहे हैं। कुछ समय बाद उनके लिए जनता को यह समझाना मुश्किल होगा कि वे सीएए और एनपीआर पर जो कुछ कह रहे थे उसका आधार और औचित्य क्या था? उन्हें यह बताने में भी मुश्किल होगी कि वे संसद से पारित कानून का विरोध कैसे कर सकते हैं?

प्रधानमंत्री मोदी के बार-बार स्पष्टीकरण के बाद भी मुसलमान समझने को तैयार नहीं

विपक्षी दलों न सही मीडिया के उन लोगों को तो यह समझ आना ही चाहिए कि वे सीएए पर लोगों को गुमराह कर एक तरह से आग लगाने का काम कर रहे हैं। जहां तक उन मुसलमानों की बात है जो प्रधानमंत्री के बार-बार के स्पष्टीकरण के बाद भी समझने को तैयार नहीं तो इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि वे गैर-कानूनी तरीके से देश में आ गए लोगों के हितैषी बन रहे हैं? समाज का कोई भी वर्ग हो, उसे सबसे पहले देश की चिंता करनी होगी और उसके बाद जाति-मजहब और समुदाय की।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]