धर्मेंद्र प्रधान : प्रशंसक हो या आलोचक हो या फिर तटस्थ, यह बात सभी मानते हैं कि नरेन्‍द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के उपरांत राजनीतिक विमर्श में एक मौलिक परिवर्तन आया है। देश के मानस को बदलने के लिए आज से सौ वर्ष पहले गांधी जी ने राजनीति में कुछ स्वदेशी शब्द गढ़े थे, जैसे कि सत्याग्रह, असहयोग, अनशन आदि। स्वदेशी का ऐसा ही आग्रह डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चिंतन में दिखाई पड़ता है। जम्मू-कश्मीर की समस्या के निस्तारण के लिए उन्होंने पुरजोर आवाज उठाई। उन्‍होंने ‘एक निशान, एक विधान, एक प्रधान’ का सपना देखा था। डा. मुखर्जी की इस वैचारिक विरासत को प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी नीतियों से साकार किया है। प्रधानमंत्री भी नए शब्द एवं बिंब के माध्यम से विमर्श को बदल रहे हैं। भारत के उत्तर-पूर्व के लिए "सेवेन सिस्टर्स" के स्थान पर "अष्टलक्ष्मी", स्वतंत्रता के 75 वर्ष के लिए "आजादी का अमृत महोत्सव", देश की एकता के लिए "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" तथा "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास" आदि देश के चित्त को बदल रहे हैं।

हमने मोदी जी को रामलला की मूर्ति के सामने साष्टांग प्रणाम करते हुए एवं विश्व के दरबार में सिर ऊंचा करके खड़ा रहते देखा है। उन्होंने छह बार केदारनाथ के दर्शन किए, काशी में गंगा आरती की, पावागढ़ के महाकाली मंदिर पर 500 वर्ष के उपरांत ध्वजारोहण किया। अयोध्या में रामलला के मंदिर का शिलान्यास करने वाले एवं उज्जैन में महाकाल मंदिर में "महाकाल लोक" के गलियारे के उद्घाटन करने वाले मोदी 20वीं सदी में भी 21वीं सदी की सोच लेकर चलते थे। आज से दो दशक से भी पहले उनकी अपनी वेबसाइट थी, जिससे वे अपने समर्थकों से संपर्क में थे। डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, स्मार्ट इंडिया इन सभी पर उनकी कार्यशैली के हस्ताक्षर साफ दिखाई देते हैं। वह सनातन भारत के प्रतीक भी हैं, भविष्योन्मुख भारत के भी। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि देश में एक तरह की सजीवता आई है, जो मोदी जी की ऊर्जा, कार्यशैली, राष्ट्रप्रेम, दूरगामी सोच का नतीजा है। वह पेशेवर राजनीतिज्ञ नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान प्रचारक रहे। वह राजनीति में बाहरी हैं, इसलिए अपने विचारों को दृढ़ता एवं बिना किसी बनावटीपन के रखते हैं।

हाल में मुझे इस विषय पर एक नई दृष्टि प्राप्त हुई। मुझे मोदी जी की जन्मस्थली वडनगर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने वडनगर का रेलवे स्टेशन भी देखा, जहां कभी मोदी जी के पिताजी की चाय की दुकान थी। वडनगर शहर मेरे लिए एक विशिष्ट अनुभव था। अभी तक प्राप्‍त पुरातात्‍विक प्रमाण इस ओर संकेत करते हैं कि 2750 साल पूर्व वडनगर में पहली मानव बस्‍ती बसी, उसके बाद यहां रिहायश की निरंतर परंपरा चली आ रही है। ऐसे नगर जो 2000-2500 वर्षों से लगातार आबाद हैं, उन्हें पुरातात्विक रूप से जीवंत शहर की संज्ञा देते हैं। समूचे भारत में इनकी संख्या नगण्य होगी - काशी, उज्जैन, पटना, कुरुक्षेत्र, मदुरै, तंजावुर आदि। हम वडनगर को इस तालिका में शामिल कर सकते हैं। जलवायु में परिवर्तन प्राचीन सभ्यताओं के अंत का एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है। आज कच्छ के रण क्षेत्र में जहां पीने योग्य पानी की कमी है, वहां जनसंख्या भी कम है, लेकिन वहीं आज से 5000-5500 वर्ष पूर्व के हड़प्पाकालीन बहुत से प्रमाण मिलते हैं। यह इसकी ओर संकेत है कि उस काल में जलवायु काफी अनुकूल थी। उसमें आए परिवर्तन के कारण आज से करीब 4000 वर्ष पूर्व इस सभ्यता का अंत हो गया।

शहरीकरण की दूसरी लहर के दौरान वडनगर में आज से लगभग 2750 वर्ष पूर्व लोगों का आगमन हुआ। इसके उपरांत यहां शहरीकरण का क्रमिक विकास हुआ, जिसका कभी ह्रास नहीं हुआ। यहां के बाशिंदे प्रकृति को अपने अनुरूप ढालते हुए जीवन व्यतीत करते रहे। उनकी सामूहिक जीवेषणा ने यहां की सभ्यता को कभी खत्म नहीं होने दिया। वडनगर के चारों ओर तालाबों की एक श्रृंखला का निर्माण किया गया, जो एक दूसरे से जुड़े हुए थे ताकि बारिश की प्रत्येक बूंद को संचित किया जा सके। आज भी यहां 36 मानव निर्मित तालाबों के प्रमाण मिलते हैं, जिसमें सबसे प्राचीन तालाब शर्मिष्ठा लगभग 2200 वर्ष से भी पुराना है। 13वीं शताब्दी के बाद जब अधिक सूखा पड़ने लगा तो वडनगर के लोगों ने एक नई तकनीक का आविष्कार किया। इसके तहत तालाब के चारों ओर बावड़ी और कुएं खोदे गए। तालाब के भीतर भी कुओं का खनन हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन वडनगर की यह जल संरक्षण प्रणाली ही मोदी जी की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘जल जीवन मिशन’ की प्रेरणा बनी है। वडनगर के लोगों ने सूखा, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं को हराकर मुश्किल स्थितियों के बीच भी जीवन की स्वाभाविक लय को बनाए रखा। कहते हैं कि याज्ञवल्‍क्य स्मृति के रचयिता याज्ञवल्क्य का जन्म भी वडनगर में हुआ था।

मनुष्य के व्यक्तित्व में जन्मस्थली की भूमिका आधारशिला जैसी होती है। वह जिस स्थान पर पला-बढ़ा होता है, वहां की पीढ़ी-दर-पीढ़ी के संस्कार उसके चरित्र पर अंकित हो जाते हैं। वडनगर की ऐतिहासिक जिजीविषा एवं समस्याओं के निदान करने की क्षमताओं को देखकर मोदी जी के व्यक्तित्व का यह आयाम समझ में आता है। वह उस भारत के प्रतिनिधि हैं जो दृढ़ता से अपनी जड़ों से जुड़ा रहकर भी 21वीं सदी में दुनिया को अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाने के लिए व्यग्र है। वे उस भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हजारों मुश्किलों के बावजूद डटा रहा, जिसने हर मुश्किल का समाधान करने का अनूठा रास्ता निकाला है। इसीलिए मोदी जी देश की जनता को इतना भाते हैं।

(लेखक केंद्रीय शिक्षा मंत्री हैं)