[रामनाथ कोविंद]। संक्रामक रोग और महामारी मानवजाति के लिए कोई नई बात नहीं है, फिर भी इतने बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस का प्रकोप हम सबके जीवनकाल में एक नई घटना है। मेरी संवेदना उन डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिक्स, स्वास्थ्यकर्मियों तथा उन अन्य सभी लोगों के साथ भी है जो अपने जीवन को जोखिम में डालकर मानवजाति की सेवा कर रहे हैं। गंभीर संकट की इस घड़ी में देशवासियों ने जिस समझदारी और परिपक्वता का परिचय दिया है, उसकी मैं सराहना करता हूं। उनके सहयोग से सभी संस्थाओं के लिए समन्वय के साथ मिल-जुलकर काम करना संभव हो पा रहा है।

एकजुट होकर कर सकेंगे संकट का सामना 

हमारे स्वास्थ्यसेवा संस्थानों ने इस असाधारण और निरंतर बढ़ती हुई चुनौती से निपटने में बहुत मुस्तैदी दिखाई तथा अपनी दक्षता का परिचय दिया है। हमारे नेतृत्व और प्रशासन ने परीक्षा की इस घड़ी में अपनी क्षमता सिद्ध की है। मैं आश्वस्त हूं कि हम एकजुट होकर इस संकट का सामना कर सकेंगे। इस महामारी ने हमें अन्य लोगों के साथ सम्मानजनक दूरी बनाए रखने के लिए विवश कर दिया है। अपने विवेक से अथवा चिकित्सकों द्वारा अनिवार्य किया गया एकांतवास हमारी अब तक की यात्रा और हमारे भविष्य के मार्ग पर चिंतन-मनन करने के लिए एक आदर्श अवसर सिद्ध हो सकता है। आज के इस कठिन दौर से गुजरते हुए हमें इस चुनौती को एक अवसर में बदलना चाहिए और यह विचार करना चाहिए कि इस संकट के जरिये प्रकृति हमें क्या संदेश देना चाहती है? प्रकृति से हमें अनेक प्रकार के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन मैं केवल कुछ ही पहलुओं पर प्रकाश डालना चाहूंगा।

लोग साफ-सफाई पर दें ध्यान

हम जानते हैं कि इस संकट का सबसे स्पष्ट और पहला सबक है साफ-सफाई। एहतियात बरतना ही कोरोना से निपटने का एकमात्र तरीका है और इसके लिए डॉक्टर यही सलाह दे रहे हैं कि ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के अलावा सभी लोग साफ-सफाई पर ध्यान दें। स्वच्छता अच्छे नागरिक के मूलभूत गुणों में शामिल है। इन गुणों को कम महत्व दिया जाता रहा है। स्वयं महात्मा गांधी ने इन गुणों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए हमें प्रेरित किया था। यह दक्षिण अफ्रीका और भारत में उनके ऐतिहासिक अभियानों का महत्वपूर्ण अंग रहा। वर्ष 1896 में गांधी जी भारत यात्रा पर आए हुए थे। उसी समय बंबई में प्लेग फैल गया। प्लेग की रोकथाम के लिए एक स्वयंसेवी के रूप में उन्होंने शौचालयों की स्थिति देखी और लोगों को प्रेरित किया कि वे स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें।

प्रकृति का करना चाहिए सम्मान

हमें अपने दैनिक जीवन में गांधी जी की शिक्षाओं को आत्मसात करने की आवश्यकता है और उनकी 150वीं जयंती वर्ष में हम सभी स्वयं को निजी और सार्वजनिक साफ-सफाई के लक्ष्य के प्रति नए उत्साह के साथ समर्पित कर सकते हैं। हमारे लिए अगला सबक यह है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। मनुष्य ही एकमात्र ऐसी प्रजाति है जिसने अन्य सभी प्रजातियों पर आधिपत्य जमाकर पूरी धरती का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया है। उसके कदम चांद तक पहुंच गए हैं, लेकिन विडंबना देखिए कि इतनी शक्तिशाली मानवजाति अभी एक वायरस के सामने लाचार है। हमें इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि आखिर हम सभी मनुष्य जीवधारी मात्र हैं और अपने जीवन के लिए अन्य जीवधारियों पर निर्भर हैं। प्रकृति को नियंत्रित करने और अपने लाभ के लिए सभी प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की तैयारियां छोटे से विषाणळ् के एक ही प्रहार से तहस-नहस हो सकती हैं।

हमें याद रखना चाहिए कि हमारे पूर्वज प्रकृति को मां का दर्जा देते थे। उन्होंने हमें सदैव प्रकृति का सम्मान करने की शिक्षा दी, लेकिन इतिहास के किसी मोड़ पर, हम उनके दिखाए मार्ग से हट गए और हमने अपने परंपरागत विवेक का परित्याग कर दिया। अब महामारियां और असामान्य मौसमी घटनाएं आम होती जा रही हैं। समय आ गया है कि हम थोड़ा ठहरकर विचार करें कि हम कहां भटक गए और यह भी कि सही रास्ते पर कैसे लौट सकते हैं?

जाति भेद-भाव को नहीं मानता वायरस

विश्व समुदाय के लिए समानता का सबक उतना स्पष्ट नहीं रहा है, लेकिन प्रकृति यह संदेश देती रही है कि उसके सामने हम सभी बराबर हैं। जाति, पंथ, क्षेत्र या अन्य किसी मानव निर्मित भेदभाव को वायरस नहीं मानता। तरह-तरह के भेदभाव और अपने-पराये के झगड़े में दुनिया लिप्त रहती है, फिर अचानक एक दिन कोई गंभीर जानलेवा खतरा हमारे समक्ष आ खड़ा होता है। तब हमें समझ में आता है कि मनुष्य के रूप में हमारी एक ही पहचान है कि हम सब हर स्थिति में केवल और केवल इंसान हैं।

हर व्यक्ति एक दूसरे से है जुड़ा 

सामान्य परिस्थितियों में हम परस्पर निर्भरता के जीवन मूल्य की भी प्राय: अनदेखी करते हैं। अपने संबोधनों और वक्तव्यों में प्राय: मैं ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सद्विचार का उल्लेख करता हूं। इसका अर्थ है कि संपूर्ण विश्व एक ही परिवार है। यह कथन आज के संदर्भ में जितना सार्थक है उतना पहले कभी नहीं रहा। आज हमारे सामने यह स्पष्ट है कि हर व्यक्ति एक दूसरे के साथ बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है। हम सब वहीं तक सुरक्षित हैं जहां तक हम दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं। हमें केवल मनुष्यों की ही नहीं, अपितु पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों की सुरक्षा भी करनी है।

दूसरों की भी करनी चाहिए चिंता 

असाधारण संकट आने पर अधिकांश लोग स्वार्थी हो जाते हैं, लेकिन मौजूदा संकट यही सिखाता है कि हमें अपने समान ही दूसरों की भी चिंता करनी चाहिए। यह महामारी अति-संक्रामक है इसलिए लोगों को एकजुट करके, स्वैच्छिक सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है। फिर भी, वायरस की रोकथाम और उन्मूलन के काम में लोग कई तरीकों से सहायता कर सकते हैं। जागरूकता बढ़ाने और घबराहट से बचाने में प्रत्येक नागरिक अपना योगदान दे सकता है। जो समर्थ हैं वे अपने संसाधनों को साझा कर सकते हैं, विशेषकर कम सुविधासंपन्न पड़ोसियों के साथ।

मौजूदा संकट से शीघ्र आएंगे बाहर 

प्रकृति हमें यह स्मरण कराना चाहती है कि हम पूरी विनम्रता के साथ, समानता और परस्पर-निर्भरता के मूलभूत जीवन मूल्यों को स्वीकार करें। यह सबक हमें भारी कीमत चुकाकर प्राप्त हुआ है, लेकिन जलवायु संकट जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करने और बेहतर साझा भविष्य के निर्माण में यह सबक हमारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। मैं आप सबके साथ इस सामूहिक संकल्प को दोहराता हूं कि हम सभी मौजूदा संकट से शीघ्रातिशीघ्र बाहर आएंगे और एक राष्ट्र के रूप में अभूतपूर्व शक्ति के साथ आगे बढ़ेंगे।

 

(लेखक भारत के राष्ट्रपति हैं)