डॉ. अश्विनी महाजन। भारत के पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय बजट में घोषणा की थी कि जो कंपनियां कॉरपोरेट कर में छूट नहीं लेंगी, उन पर कर की दर 30 प्रतिशत की बजाय 25 प्रतिशत ही होगी। गौरतलब है कि निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए पूर्व सरकारों ने भारी मात्र में करों में छूट का प्रविधान रखा हुआ था। ऐसे में हालांकि कॉरपोरेट टैक्स 30 प्रतिशत होने के बावजूद इसकी प्रभावी दर 23 प्रतिशत से ज्यादा नहीं थी। लिहाजा टैक्स को 25 प्रतिशत करने पर भी सरकार को नुकसान नहीं था। यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण माना गया था, क्योंकि ऐसे में भारत 30 प्रतिशत और अधिक कॉरपोरेट टैक्स के देशों की सूची में से निकल कर कम टैक्स की श्रेणी में आ गया। यह कदम निवेशकों को प्रोत्साहित करने वाला माना गया।

उसके बाद निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में यह घोषणा कर दी कि जो पुरानी कंपनियां छूट नहीं लेंगी, उन्हें मात्र 22 प्रतिशत कॉरपोरेट टैक्स देना होगा और नई कंपनियों को तो मात्र 15 प्रतिशत की दर से ही कॉरपोरेट टैक्स देना पड़ेगा। गौरतलब है कि इस टैक्स पर 10 प्रतिशत सरचार्ज और चार प्रतिशत स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेस लगता है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत के बारे में यह धारणा रही है कि यहां कॉरपोरेट टैक्स की दर बहुत अधिक है, जिसके चलते भारत में निवेशक कम आकर्षति होते हैं। वास्तव में यह बात कुछ हद तक सही हो सकती है, क्योंकि विदेशी निवेश आकर्षति करने वाले भारत के प्रतिस्पर्धी देशों में कॉरपोरेट टैक्स की दर भारत से कम थी। देखा जाए तो सिंगापुर में यह दर 17 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया में 25 प्रतिशत, वियतनाम में 20 प्रतिशत, अमेरिका में 21 प्रतिशत और हालांकि चीन में यह 25 प्रतिशत है, लेकिन हाईटेक उद्योगों में यह मात्र 15 प्रतिशत ही है। यानी भारत में कॉरपोरेट टैक्स की दर घटाना इसलिए औचित्यपूर्ण दिखा, क्योंकि अन्य देशों में यह भारत से काफी कम था।

यह दर घटाने से अब भारत दुनिया में सबसे कम कॉरपोरेट टैक्स लगाने वाले देशों में शामिल हो गया। वास्तव में पिछले कुछ समय से विदेशी निवेशकों को आकर्षति करने की होड़ के कारण कॉरपोरेट टैक्स दरों को घटाने का सिलसिला कुछ समय से चल रहा है। लेकिन कॉरपोरेट टैक्स की दर घटाने के साथ निजी आय पर कर की दरें बदस्तूर जारी रही। आज भी भारत में आयकर की सीमांत दर 30 प्रतिशत बनी हुई है। इसके साथ ही इस आयकर पर सरचार्ज भी लगाया जाता है।

गौरतलब है कि सरकारी खर्च का बहुत कम हिस्सा ही शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, महिला विकास, अनुसूचित जाति-जनजाति विकास समेत सामाजिक सेवाओं के लिए उपलब्ध होता है। पिछले बजटों में यह कुल सरकारी खर्च का महज 10 प्रतिशत ही रहा। इसी प्रकार देश को इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भी भारी खर्च करने की जरूरत होती है, ताकि भविष्य में विकास की राह आसान हो सके। लेकिन धनाभाव में सरकार चाहकर भी अधिक धन इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च नहीं कर पाती। लेकिन यदि सरकारी राजस्व ही कम होगा तो सरकार इन मदों पर खर्च कैसे बढ़ाएगी, यह समझ के परे है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कॉरपोरेट पर कर कम करने से न तो उपभोक्ताओं को लाभ होता है, न ही सरकार को, इससे सिर्फ कंपनियों के कर उपरांत लाभ बढ़ जाते हैं और कंपनियों के धनाढ्य स्वामियों की संपत्ति बढ़ती चली जाती है। यह तर्क दिया जा सकता है कि कंपनियों के पास ज्यादा पैसा होने पर वे निवेश बढ़ाएंगी, लेकिन पिछले 10 वर्षो का अनुभव यह बता रहा है कि आज कंपनियों के पास अकूत संपत्ति होने के बावजूद वे निवेश बढ़ाने के लिए तैयार नहीं हैं। यही नहीं, एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार बड़ी संख्या में अमीर लोग देश छोड़ विदेशों में अपनी संपत्ति स्थानांतरित कर रहे हैं। यह अत्यधिक चिंता का विषय है।

हालांकि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कॉरपोरेट टैक्स को घटाया था, नए राष्ट्रपति जो बाइडन को सरकार की उस गलती का अहसास हो गया और उन्होंने कॉरपोरेट टैक्स को 21 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत करने की घोषणा की है। लेकिन दुनिया में जहां देशों के बीच निवेश प्राप्त करने की जल्दबाजी के चलते प्रतिस्पर्धी रूप से कॉरपोरेट टैक्स को घटाने की होड़ लगी हुई है, अमेरिका को यह भी डर लग रहा है कि कहीं इससे निवेशक अमेरिका से बाहर न हो जाएं। हालांकि अमरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन यह कह तो रहे हैं कि कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाने से अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन साथ ही उनकी सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह प्रयास करने में जुट गई है कि पिछले 30 वर्षो से चल रही कॉरपोरेट टैक्स घटाने की इस प्रतिस्पर्धा पर विराम लग सके।

अमेरिका की राजस्व सचिव जैनेट येलेन ने हाल ही में कहा है कि वे जी-20 देशों के समूह के साथ बातचीत कर रही हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स के बारे में सहमति बन सके। अमेरिका के इस प्रयास में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि केवल टैक्स दर घटाकर निवेश प्राप्त करने की ये कोशिशें सामाजिक सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च को प्रभावित कर रही हैं, जिससे आम जनता और देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान ही होता है।

गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाने का यह प्रयास दो खरब डॉलर की महत्वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज जरूरत इस बात की है कि एक स्थायी कर व्यवस्था बने, जिससे सरकारों को राजस्व की कमी न रहे और आवश्यक सामाजिक सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में कोई बाधा न हो। अमेरिका ने यह भी साफ किया है कि सरकार यह भी व्यवस्था करेगी कि कर बढ़ने के बाद कंपनियां अपने लाभों को दूसरे देशों या ‘टैक्स हैवन’ देशों में न भेज सकें। इससे तमाम टेक कंपनियां भारत में लाभ न दिखा कर दूसरे देशों में लाभ दिखाकर टैक्स से बच जाती हैं, उन पर भी इससे अंकुश लगेगा।

(लेखक- प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय)