नई दिल्ली [ राजनाथ सिंह ‘सूर्य’ ]। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मौलाना सैयद सलमान हुसैनी नदवी को संगठन से निकाल दिया है, क्योंकि उन्होंने यह सुझाव दिया था कि अयोध्या विवाद का समाधान अदालत के बाहर आपसी समझौते से कर लिया जाए और मुसलमान विवादित स्थल पर अपना दावा खत्म कर फैजाबाद और लखनऊ के बीच कहीं मस्जिद बनाने की बात मान लें। लखनऊ स्थित नदवा इस्लामी अध्ययन का एक बड़ा केंद्र है जिसके प्रमुख को कभी मक्का के इमाम के समान मान्यता मिली थी।

स्वतंत्रता आंदोलन में अन्य इस्लामी संगठनों से अलग हटकर नदवा ने कांग्रेस का साथ दिया और उसे कभी संदेह की निगाह से नहीं देखा गया। विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर ने गत दिनों लोकसभा में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मुस्लिम समुदाय का प्रवक्ता माने जाने पर सवाल उठाते हुए उसमें शामिल लोगों के प्रतिनिधित्व को चुनौती दी थी। अब मौलाना नदवी ने कहा है कि जो बोर्ड चरमपंथियों के कब्जे में चला गया है उसके मुकाबले वह एक नया संगठन खड़ा करेंगे और तीन महीने में उनके सुझाव के अनुरूप अयोध्या विवाद का समाधान निकल आएगा। जाहिर है श्रीश्री रविशंकर ने अदालत के बाहर आपसी सहमति से समाधान का जो प्रयास प्रारंभ किया था वह अब रंग लाने लगा है।

अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास ने अयोध्या के निकट ही अड़गड़ा मोहल्ले में स्थित आलमगीर मस्जिद और उसके परिसर को मस्जिद के लिए देने का प्रस्ताव किया था। आलमगीर मस्जिद और उससे लगी भूमि अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने लगभग 300 वर्ष पूर्व हनुमानगढ़ी को दी थी।

सर्वोच्च न्यायालय ने भावनात्मक मुद्दों पर नहीं देगा ध्यान

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने भावनात्मक मुद्दों के बजाय भूमि विवाद का ही निपटारा करने का फैसला लिया है। जहां हिंदू राम जन्मभूमि के रूप में मान्यता प्राप्त स्थल पर मंदिर बनाने के लिए दृढ़ संकल्प हैं वहीं मुस्लिम समुदाय में इसके लिए समझौतावादी रुख की भावना का प्रस्फुटन होने लगा है, क्योंकि उसे इस बात का संज्ञान है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उनके पक्ष में हो भी जाता है तो भी वहां से न तो रामलला को हटाया जा सकता है और न मस्जिद बन सकती है। हो सकता है कि टाट की जिस छाया में रामलला हैं उसकी यथास्थिति बनी रहे और हिंदू-मुस्लिम के बीच तनाव बरकरार रखकर जो राजनीतिक दल या निजी लोग अपना हित साधने पर आमादा हैं उनकी दुकानें चलती रहें। आम मुसलमान यह अनुभव करता है कि इस कलह से उसका पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है।

जो अतिवादी लोग मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर काबिज हो चुके हैं वे दकियानूसी आचरण से मुस्लिम समुदाय को निकलने देने के किसी भी प्रयास को सार्थक होते नहीं देखना चाहते। तीन तलाक के मामले में पर्सनल लॉ बोर्ड का रुख-रवैया इसकी पुष्टि करता है। फलत: उसने देशव्यापी आकांक्षा के अनुरूप मौलाना नदवी के सुझाव को सुनने और विचार करने के बजाय उन्हें ही संगठन से बाहर कर दिया। इस घटना को महज अयोध्या विवाद के हल होने या उसमें बाधक बनने के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि कोई दो दशक पूर्व लॉ बोर्ड के पूर्व कानूनी सलाहकार अब्दुल मन्नान ने मुझसे जो बातें कही थीं, मुसलमानों में वैसी भावना उभरने के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद हमारे लिए कोई मक्का-मदीना नहीं है।

...तो अन्य स्थानों पर हिंदू करेंगे दावा

हिंदुओं में राम जन्मभूमि को लेकर वैसी आस्था हो सकती है। जैसे तमाम मस्जिदें हैं वैसे ही बाबरी मस्जिद भी एक है। उस पर हक छोड़ देना गैर इस्लामी नहीं होगा, लेकिन हमें डर है कि उसे हासिल करने के बाद और स्थानों में जो तमाम इसी तरह के विवाद हैं उन स्थलों के लिए भी हिंदू दावा करेंगे। उनकी यह आकांक्षा बेबुनियाद नहीं थी, क्योंकि तब तक अयोध्या के साथ-साथ मथुरा और काशी को जोड़कर नारे लगाते थे, लेकिन संसद एक ऐसा कानून पास कर चुकी है जिसमें यह प्रावधान है कि 15 अगस्त, 1947 के पूर्व जो धर्मस्थल जिस स्वरूप में थे, वैसे ही वैध रहेंगे। चूंकि राम जन्मभूमि विवाद न्यायालय में लंबित था इसलिए उसे इस श्रेणी में नहीं रखा गया। इस ओर ध्यान दिलाने पर मन्नान ने इस तथ्य को स्वीकार किया था।

मुस्लिम समुदाय को वास्तविक स्थिति का अहसास

मुस्लिम समुदाय को वास्तविक स्थिति का अहसास है। यह अहसास उन मुस्लिम नेताओं में भी है जो पृथकतावादी भावना को जीवित रखकर अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं। यही कारण है कि जो पर्सनल लॉ बोर्ड बाबरी मस्जिद के लिए अड़ा हुआ था वह अब कहने लगा है कि उसे सर्वोच्च न्यायालय का फैसला स्वीकार होगा। वह ‘समझौता’ करने की मानसिकता तो रखता है, लेकिन उसे पूर्व में किए गए प्रयास के संदर्भ में मुंह दिखाने लायक न रह पाने का भय सता रहा है। अयोध्या विवाद का समाधान निकालने के लिए श्रीश्री रविशंकर के प्रयास और मौलाना सलमान हुसैनी नदवी की सोच में समानता है। दोनों का प्रयास यह है कि विवाद के पक्षकार मसविदे पर सहमत होने का दस्तावेज सर्वोच्च न्यायालय में पेशकर समाधान कर लें ताकि हिंदू और मुसलमानों के बीच कटुता का एक स्थाई समाधान हो सके। बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाशमी भी ऐसा ही चाहते थे। निधन के पूर्व उन्होंने यहां तक कहा था कि रामलला कब तक टाट में बैठे रहेंगे?

अयोध्या और फैजाबाद में नहीं है कोई तनाव

अयोध्या और फैजाबाद में अयोध्या विवाद के कारण कोई तनाव नहीं है। दोनों पक्षों के लोग परस्पर औपचारिक अनौपचारिक रूप से मिलते रहते हैं। सांसद असदुद्दीन ओवैसी और उनके जैसे लोग राजनीतिक लाभ के लिए मुसलमानों में पृथकता की भावना बनाए रखने के लिए विवाद बनाए रखना चाहते हैं। चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने मक्का के इमाम का एक फतवा प्राप्त किया था जिसमें मस्जिद हटाए जाने को गैर इस्लामी नहीं बताया गया था। सऊदी अरब को इस्लामी विचारधारा का केंद्र माना जाता है। वहां अनेक मस्जिदें और कब्रिस्तान हटाकर होटल और सड़कें बनाई गई हैं ताकि हज करने वालों को असुविधा न हो। अन्य देशों में भी कुछ मस्जिदें नागरिक सुविधाओं के लिए हटाई गई हैं। इसलिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का यह मत कि इस्लाम में मस्जिद हटाने का कोई प्रावधान नहीं है, दुराग्रह मात्र है। मौलाना नदवी ने जिस सुझाव के साथ आम मुस्लिम भावना के अनुरूप कदम बढ़ाया है और सफलता मिलने की जो उम्मीद जताई है उससे सौदेबाजी करने वालों को ठेस अवश्य लगी होगी। शायद यही कारण है कि उन पर तरह-तरह के आरोप मढ़े जाने शुरु हो गए हैं।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं स्तंभकार हैं)