[ ब्रह्मा चेलानी ]: जो बाइडन उस दौर में अमेरिकी राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं, जब भारत को अपने साथ लाने में अमेरिका के लंबे समय से किए जा रहे प्रयास रंग लाते दिख रहे हैं। हाल में नई दिल्ली ने वाशिंगटन के साथ कुछ ऐसे अहम समझौते किए हैं, जो अमेरिका अपने करीबी सामरिक साथियों के साथ ही करता है। दरअसल चीन के साम्राज्यवादी तेवर ही मुख्य रूप से भारत को अमेरिका के साथ करीबी रिश्ते बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इस साल हिमालयी क्षेत्र में चीन की बदनीयती और भारतीय सैन्य बलों के साथ टकराव को लेकर भारत कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। ऐसे में चीन से मुकाबले के लिए वह अमेरिकी साथ चाहता है।

चीन से मुकाबले के लिए भारत अमेरिका का साथ चाहता

चूंकि हिमालयी क्षेत्र में 1962 जैसे टकराव की आशंका बढ़ रही है तो भारत ने भी अमेरिका के साथ गलबहियां करने की अपनी हिचक तोड़ी है। दोनों देश चीन को साझा चुनौती भी मानते हैं। इस बीच भारत चार प्रमुख लोकतांत्रिक देशों के संगठन क्वाड में खासा सक्रिय हुआ है। क्वाड अमेरिका की ‘मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत रणनीति’ के मूल में है। इसके सदस्य देशों का पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास बीते दिनों बंगाल की खाड़ी में संपन्न भी हुआ। अमेरिका, जापान और भारत की नौसेना के साथ ऑस्ट्रेलियाई नौसेना भी इस अभियान में शामिल हुई।

बाइडन के नेतृत्व में भारत-अमेरिकी सहयोग की मूलभूत दिशा में बदलाव के आसार नहीं

तमाम आशंकाओं के बावजूद बाइडन के नेतृत्व में भारत-अमेरिकी सहयोग की मूलभूत दिशा में बदलाव के आसार नहीं है। फिर भी भारत के लिए चिंता का सबब यही है कि बाइडन चीन के साथ तनाव घटाकर सहयोग बढ़ाने की राह पर आगे बढ़ सकते हैं। ऐसी किसी भी पहल का भारत के साथ रिश्तों पर असर पड़ेगा। खास तौर से नई दिल्ली के वाशिंगटन पर भरोसे को लेकर संदेह पैदा हो सकता है। चूंकि अमेरिका की चीन के साथ सीमा नहीं लगती तो उसे र्बींजग से कोई तात्कालिक सुरक्षा खतरा नहीं, लेकिन भारत की स्थिति अलग है। इस साल की शुरुआत में जब भारत में वुहान से निकले वायरस से निपटने के लिए दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन लगा था, उसी दौर में चीनी सेना लद्दाख के भारतीय इलाके में दुस्साहस दिखा रही थी।

निक्सन से लेकर ओबामा तक चीन के उभार में मददगार बने रहे

रिचर्ड निक्सन से लेकर बराक ओबामा तक एक के बाद एक अमेरिकी राष्ट्रपति चीन के उभार में मददगार बने रहे। दक्षिण चीन सागर में बीजिंग द्वारा कृत्रिम द्वीप के निर्माण और उसका सैन्यकरण करने के बावजूद ओबामा ने यही कहा कि हमें समृद्ध चीन के बजाय कमजोर आक्रामक चीन से कहीं अधिक खतरा है। ऐसे में यह डोनाल्ड ट्रंप ही थे, जिनके राष्ट्रपति काल में अमेरिका ने चीन के प्रति अपनी नीति एकदम पलट दी। इस पहलू ने भी भारत को अमेरिका के करीब लाने में अहम भूमिका निभाई।

चीन-पाक की धुरी का मजबूत होना भारत की सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी

यदि बाइडन चीन और उसके बिगड़ैल सहयोगी पाकिस्तान के प्रति नीति में नरमी बरतते हैं तो भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर पुनर्विचार के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। चीन-पाक की धुरी का मजबूत होना भारत की सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। इससे देश के समक्ष दो मोर्चों पर युद्ध की स्थिति बन सकती है।

बाइडन ने मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत के बजाय ‘सुरक्षित एवं समृद्ध हिंद -प्रशांत’ की बात कही

इस बीच चीन के प्रति बाइडन की नरमी के संकेत मिलने भी लगे हैं। बाइडन को फोन पर बधाई देने के बाद जापानी प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने कहा कि उन्हें बाइडन से आश्वासन मिला है कि अमेरिकी प्रत्याभूत सुरक्षा जापान प्रशासित सेनकाकू द्वीप पर भी लागू रहेगी, मगर जब चीन की बात आई तो बाइडन कैंप ने इस पहलू को अनदेखा कर दिया। बाइडन ने यह संकेत भी दिए हैं कि वह ट्रंप प्रशासन की ‘मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत’ रणनीति से किनारा करेंगे, जिसमें भारत को बहुत महत्ता मिली। भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं से फोन पर बातचीत में बाइडन ने मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत के बजाय ‘सुरक्षित एवं समृद्ध हिंद -प्रशांत’ की बात कही। ऐसे में मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत रणनीति के दिन अब गिने-चुने दिखते हैं। संभव है कि बाइडन इस क्षेत्र के लिए नई रणनीति का एलान करें।

भारत-अमेरिका के रिश्तों में कड़वाहट घुलने की आशंका

एक और मसले पर भारत-अमेरिका के रिश्तों में कड़वाहट घुलने की आशंका है। ट्रंप भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से सकुचाते थे कि कहीं इससे प्रधानमंत्री मोदी के घरेलू विरोधियों को कोई मुद्दा न मिल जाए। इसके उलट बाइडन खेमे की ओर से मोदी सरकार की कई मसलों पर खिंचाई हुई है। कश्मीर और नागरिकता संशोधन कानून जैसी मोदी सरकार की पहल को उन्होंने भारत की ‘सेक्युलरिज्म, बहुसांस्कृतिक एवं बहुधार्मिक लोकतंत्र की लंबी परंपरा’ के विपरीत बताया।

1992 में सीनेटर बाइडन के प्रस्ताव ने क्रायोजेनिक इंजन खरीदने की राह में रोड़ा अटका दिया था

आंतरिक मामलों में ऐसे दखल भारत को कुपित करते रहे हैं। भारत में अभी भी कई लोगों को याद होगा कि 1992 में सीनेटर बाइडन के एक प्रस्ताव ने रूस से क्रायोजेनिक इंजन खरीदने की हमारी राह में रोड़ा अटका दिया था। इससे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम कई वर्ष पिछड़ गया था। आज भारत और अमेरिका न केवल अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोगी हैं, बल्कि अमेरिकी स्ट्रैटेजिक कमांड के प्रमुख ने 2019 में सैटेलाइट को अंतरिक्ष में नष्ट करने की भारतीय क्षमता प्रदर्शन की आलोचना को खारिज भी किया था।

यदि बाइडन प्रशासन भारत को आईना दिखाएगा तो नई दिल्ली के मन में संशय पैदा होगा

ऐसे में यदि बाइडन प्रशासन तानाशाह चीन से संबंधों की बहाली पर जोर, आतंक को लेकर पाकिस्तान पर दबाव घटाने और कश्मीर से लेकर अल्पसंख्यक मामलों पर भारत को आईना दिखाने की कोशिश करेगा तो अमेरिका के साथ हाथ मिलाने में नई दिल्ली के मन में संशय जरूर पैदा होगा।

बाइडन भारत के साथ अमेरिकी सक्रियता बढ़ाने को प्राथमिकता में शामिल कर सकते हैं

ऐसा नहीं कि बाइडन को भारत की महत्ता नहीं पता। संभव है कि वह बराक ओबामा की तरह भारत को लेकर व्यावहारिक नीति अपनाएं। ओबामा ने अमेरिका-भारत रिश्ते को 21वीं सदी की सबसे निर्णायक साझेदारी बताया था। ऐसे में बाइडन भारत के साथ अमेरिकी सक्रियता बढ़ाने को प्राथमिकता में शामिल कर सकते हैं। ट्रंप जिस व्यापार संधि में नाकाम रहे, बाइडन उसे संभव कर सकते हैं। वैश्विक आपूर्ति शृंखला खासकर दवा जैसे क्षेत्र में चीन के दबदबे को तोड़ने के लिए भी बाइडन प्रशासन को भारत की जरूरत होगी, जो जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है। यदि उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भारतीय जड़ों के बावजूद बाइडन के दौर में भारत के साथ अमेरिकी रिश्ते और प्रगाढ़ नहीं होते तो यह वाकई एक बड़ी विडंबना होगी। दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु शक्ति रूस और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन पर ध्यान देने के बजाय भारत के साथ रिश्तों की पींगें बढ़ाना अमेरिका के लिए कहीं अधिक फायदेमंद होगा। हालांकि चीन और पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी नरमी भारत के साथ उसकी साझेदारी को पटरी से उतारेगी।

( लेखक सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं )