[ संजय गुप्त ]: दैनिक जागरण ने अपनी सृजन यात्रा के 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं। किसी संस्था के इतिहास में यह कालखंड मील का पत्थर होता है। यह हमारे लिए विशेष गौरव का भी क्षण है और गहराते कर्तव्य बोध का भी। आज अगर दैनिक जागरण विश्व के सर्वाधिक पठनीय अखबारों में शुमार है तो हम ऋणी हैं संस्थापक स्व. पूर्णचंद्र गुप्त जी व पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेन्द्र मोहन जी के, जिनकी निर्भीक पत्रकारिता और राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत संस्कारों ने हमें राह दिखाई। दैनिक जागरण के स्वर्णजयंती वर्ष के आसपास जब भारतीय अर्थव्यवस्था उदारीकरण को आत्मसात कर गतिशील बन रही थी और देश हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ से बाहर निकलकर आर्थिक मोर्चे पर छलांग लगा रहा था, तब दैनिक जागरण अपने गढ़ उत्तर प्रदेश से बाहर निकल देश के दूसरे हिस्सों में भी अपना प्रसार कर रहा था। लगभग इसी समय दैनिक जागरण के तत्कालीन प्रधान संपादक नरेन्द्र मोहन जी ने प्रिंट मीडिया में विदेशी निवेश की पुरजोर पैरोकारी की। अंतत: उस समय की वाजपेयी सरकार ने इसकी अनुमति दे दी।

हालांकि सरकारी घोषणा से पूर्व ही नरेन्द्र मोहन जी के आकस्मिक निधन ने जागरण समूह पर तुषारापात सा किया। यह हमारे लिए एक विपदा सरीखा था, लेकिन काल की इस नियति को स्वीकार कर हम आगे बढ़ते रहे। दैनिक जागरण भारत का ऐसा पहला प्रिंट मीडिया समूह बना, जिसे विदेशी निवेश प्राप्त हुआ। इसके कुछ ही महीनों बाद दैनिक जागरण को प्रकाशित करने वाली कंपनी जागरण प्रकाशन लिमिटेड स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुई और फिर जागरण निरंतर उन्नति के सोपान चढ़ता गया।

जब 75 साल पहले दैनिक जागरण का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था, तब देश के कुछ ही हिस्सों में टेलीफोन लाइनें थीं। छपाई की मशीनों पर हाथ से काम होता था। आज सूचना विस्फोट के दौर में दुनिया के किसी भी हिस्से की सूचनाएं पलक झपकते आम लोगों तक पहुंच रही हैं। भारत में मोबाइलधारकों की संख्या 100 करोड़ के पार पहुंच चुकी है तो इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले भी 50 करोड़ के आसपास हैं। प्रिंट मीडिया के लिए इस स्थिति ने गंभीर चुनौतियां पेश की हैं। हमने कालचक्र की बदलती गति को पहचाना और समय के साथ कदमताल करते हुए 1998 में हिंदी वेबसाइट शुरू की। वर्तमान में यह दुनिया में हिंदी की सबसे बड़ी वेबसाइट है। प्रिंट में भी तमाम तरह के बदलाव किए गए और आज हम उत्कृष्टता के शिखर पर लंबे समय से कायम हैं।

दैनिक जागरण को इस बात का बखूबी अहसास है कि सशक्त-समृद्ध राष्ट्र निर्माण की क्या चुनौतियां हैं, लेकिन चुनौतियां हैं तो संभावनाओं का सागर भी है। हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि भारत के समग्र विकास का सपना तभी पूरा होगा, जब सुसंस्कृत, सुशिक्षित और समरस समाज के निर्माण की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जाएं। ऐसे आदर्श समाज के लिए हमें बच्चों में संस्कारों के बीज प्राथमिकता के आधार पर बोना होगा, क्योंकि संस्कारों से ही व्यक्ति और समाज का निर्माण होता है। आज देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। जोश-जच्बे से भरे इस वर्ग की सकारात्मकता देश का कायाकल्प कर सकती है।

हमें यह समझना होगा कि राष्ट्र निर्माण सिर्फ नीति-नियंताओं का काम नहीं, बल्कि सामाजिक अभियान भी है। इसमें युवा शक्ति की भूमिका सर्वाधिक अहम है, लेकिन विकास पथ पर कोई देश तभी कुलांचे भर सकता है जब उसकी नई पीढ़ी के लिए सूचना व ज्ञान आधारित परिवेश का निर्माण हो और विश्वविद्यालयों में शोध-अनुसंधान के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। यह समय की मांग है कि आइआइटी जैसे तकनीकी संस्थानों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ विश्वविद्यालयों में शिक्षा का स्तर भी ऊंचा उठे। यह चिंता का सबब है कि हमारे विश्वविद्यालयों में युवाओं की ऐसी फौज भी तैयार हो रही है, जो शायद भविष्य की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में राष्ट्र की जरूरतों को पूरा कर पाने में सक्षम न हो पाए।

ज्ञान से भरे युवा ही देश की आर्थिक प्रगति के कारक बनते हैं। यह तथ्य सुखद अनुभूति कराता है कि भारत क्रय शक्ति क्षमता यानी पर्चेजिंग पावर पैरिटी के मानक पर विश्व में चौथे स्थान पर काबिज हो चुका है। देश आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। हालांकि हम इसकी अनदेखी भी नहीं कर सकते कि एक ओर दिल्ली, मुंबई की चकाचौंध भरी जीवन शैली है तो राष्ट्रीय राजधानी से चंद किलोमीटर दूर हरियाणा के मेवात को नीति आयोग ने देश का सर्वाधिक पिछड़ा जिला माना है। स्पष्ट है कि तेज गति से विकास और आर्थिक समानता को समानांतर प्राथमिकता देनी होगी।

जब दुनिया में भारत के आर्थिक विकास के उदाहरण दिए जा रहे हैं, तब हकीकत यह भी है कि हमारी लगभग 68 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हालत बहुत अच्छी नहीं है। ऊंची विकास दर हासिल करने की राह में यह एक बड़ा अवरोध है। ऐसे में यह तय है कि गांवों से शहरों की ओर पलायन का दौर फिलहाल थमने वाला नहीं है। इसलिए सरकारों के समक्ष शहरीकरण के योजना-प्रबंधन के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की भी चुनौती होगी।

ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रसार के कारण आज जब रोजगार का सवाल पूरी दुनिया में सिर उठा रहा है तब शहरों में पहुंच रही इस आबादी को रोजगार मुहैया कराने के लिए औद्योगिकीकरण को गति देने के साथ सेवा क्षेत्र में भी काम करना होगा। इस क्रम में यह ध्यान रहे कि उद्योग चलाना सरकारों का काम नहीं है और आज के इस युग में तो बिल्कुल भी नहीं। हमारी सोच है कि रोजगार सृजन केवल सरकार के बूते संभव भी नहीं है, बल्कि इसमें निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण है।

स्वदेशी और समाजवादी सोच औद्योगिकीकरण में बाधक नहीं बनने देनी चाहिए। इसी प्रकार अप्रासंगिक हो चुके कानूनों का साथ भी हमें धीरे-धीरे छोड़ना पड़ेगा। हमें यह समझना होगा कि पारंपरिक नियम-कानूनों के सहारे मेक इन इंडिया के सपने को साकार नहीं किया जा सकता। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर की उत्पादकता हासिल करना भी नामुमकिन है। कृषि क्षेत्र को लाभकारी बनाने की दिशा में कदम उठाना भी हमारी प्राथमिकता बननी चाहिए। गांवों में रोजगार और शिक्षा के साथ-साथ सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया करानी होंगी।

भारत के विकास में भ्रष्टाचार बड़ी बाधा बनकर खड़ा है। भ्रष्टाचार मुक्त देश ही विकास के नए प्रतिमान गढ़ सकता है। शासन-प्रशासन के स्तर पर सरकारी महकमों से भ्रष्ट आचार-व्यवहार को मिटाने के लाख दावे किए जाते हों, लेकिन नगर निकायों, तहसीलों और पंचायतों की कार्यसंस्कृति से जनता अब भी संतुष्ट नहीं है। प्रशासनिक तंत्र में भ्रष्टाचार के सफाये के लिए निगरानी व्यवस्था को दुरुस्त करना नितांत आवश्यक है। तभी सरकारी धन का रिसाव पूरी तरह रुक पाएगा। पारदर्शी प्रशासन के लिए नौकरशाही की ब्रिटिशकालीन कार्यसंस्कृति में आमूलचूल परिवर्तन लाना ही होगा।

तमाम समस्याओं के बाद भी आम लोगों का भविष्य के प्रति आशावान रहना इस बात का परिचायक है कि देश में लोकतंत्र लगातार सशक्त हो रहा है।

देश के समक्ष एक अन्य चुनौती विकास को केंद्र में लाते हुए स्वार्थपरक एवं विभेदकारी राजनीति को हतोत्साहित करने की भी है। क्या यह अच्छा नहीं होता कि हम समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़कर विभाजनकारी राजनीति को हाशिये पर ले जाते? समान नागरिक संहिता के संदर्भ में इस मिथ्या धारणा से कम से कम अब तो उबरा ही जाना चाहिए कि ऐसा करने का मतलब किसी एक पंथ की संहिता को अन्य पंथों के अनुयायियों पर थोपना है। इसका उद्देश्य तो एक ऐसी संहिता बनाना है, जो सबके हित में हो, सबको स्वीकार्य हो और सबमें एकता का भाव से भरे। समान नागरिक संहिता का निर्माण जहां राष्ट्रधर्म के पालन की दिशा में एक बड़ा कदम होगा वहीं वह वोट बैंक की राजनीति का मार्ग भी अवरुद्ध करेगा।

दैनिक जागरण ने परिवर्तन को आत्मसात किया है, लेकिन बदलाव के नाम पर अपने बुनियादी मूल्य और पत्रकारिता के मानक सिद्धांत नहीं छोड़े। हम यह दोहराना आवश्यक समझते हैं कि दैनिक जागरण भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन का हामी है। हम यह मानते हैं कि भारतीयता उस हिंदुत्व का पर्याय है, जिसका आधार वसुधैव कुटुंबकम है, जो सबके और यहां तक कि प्राणिमात्र के कल्याण की कामना करता है। सभ्यता-संस्कृति किसी भी राष्ट्र के अस्तित्व के लिए प्राणवायु होती हैं। भारत के संदर्भ में राम सनातन संस्कृति के पर्याय हैं, देश की अस्मिता और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं। वह रोम-रोम, कण-कण में बसते हैं। हम अपनी इस समृद्ध संस्कृति की विरासत पर गर्व का भाव रखते हैं।

दैनिक जागरण समरसता और सद्भाव से ओत-प्रोत ऐसी जागृति के लिए प्रतिबद्ध है जहां हर शख्स देश-दुनिया के च्वलंत मुद्दों पर संवेदनशील सोच रखे। आज विश्व के समक्ष गरीबी, जलवायु परिवर्तन, लैंगिक असमानता जैसी गंभीर चुनौतियां हैं। इसलिए दैनिक जागरण ने सुशिक्षित व स्वस्थ समाज, पर्यावरण व जल संरक्षण, नारी सशक्तीकरण, जनसंख्या नियोजन और गरीबी उन्मूलन जैसे सरोकारों को अपनी संपादकीय नीति का आधार बनाया है। दैनिक जागरण अपने उन सुधी पाठकों का आभार व्यक्त करता है, जिनका इस यात्रा में निरंतर स्नेह मिलता रहा। हम विज्ञापनदाताओं के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिनके आर्थिक संबल ने निडर पत्रकारिता की राह को निरंतर प्रशस्त किया।

समाचार पत्र वितरकों को भी धन्यवाद, जो गर्मी से लेकर हाड़ कंपाने वाली ठंड में भी पाठकों तक अखबार पहुंचाते हैं। ये वास्तव में कर्मयोगी हैं। दैनिक जागरण इस अवसर पर उनको भी याद करता है, जो इस शानदार और गौरवशाली यात्रा के हमराही बने। उनका भी स्मरण, जो कभी न कभी हमारे साथ जुड़े। हम भरोसा दिलाते हैं कि दैनिक जागरण भारतीय मूल्यों से अनुप्राणित रहते हुए समाज और राष्ट्र के साथ-साथ विश्व कल्याण के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहेगा।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक और सीईओ हैं ]