Global Positioning System: कोरोना काल में बैंकों की भांति और उपयोगी साबित हुए डाकघर
बहरहाल घाटे में चल रहे डाकघरों को पिछले कुछ वर्षो से ई-कॉमर्स कंपनियों से अच्छी कमाई हो रही है
कपिल अग्रवाल। सरकार के लिए बोझ व जनता के लिए अनुपयोगी माने जा रहे और देश के समस्त डाकघरों की रौनक कोरोना काल में लौटती दिख रही है। बैंकों की भांति डाकघरों को तमाम नई सेवाओं व सुविधाओं से लैस कर दिया गया है। सरकार ने इन्हें उपयोगी व कमाऊ बनाने के रास्ते खोज लिए हैं। करीब 1,900 करोड़ रुपये की एक परियोजना के तहत सरकार ने सौर ऊर्जा से चलने वाली बायोमैटिक हैंड मशीनें डाकियों को मुहैया कराई हैं जिनसे वे अब घर-घर जाकर मनीऑर्डर से लेकर जमा, निकासी आदि तमाम सुविधाएं आम जनता को देने लगे हैं।
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) से लैस इन मशीनों से साधारण डाक, ई-मनीऑर्डर, स्पीड पोस्ट, बीमा प्रीमियम और अन्य ऐसे भुगतान जो बैंकों के माध्यम से किए जाते हैं समेत पैसा जमा करना व निकालना आदि आम जनता के लिए घर बैठे करना संभव हो चुका है। देश के समस्त डाकघरों को एकीकृत करने का काम शुरू हो चुका है और अब एक टोल फ्री नंबर द्वारा उक्त सेवाएं शुरू की जा रही हैं जिससे जनता घर बैठे अपने निकटतम डाकखाने से सभी प्रकार की सुविधाओं का लाभ उठा सके।
बैंकों का आधुनिकीकरण होने व कोरियर कंपनियों की अच्छी सेवाओं के चलते पिछले एक दशक से डाकखानों का महत्व व उपयोगिता लगभग खत्म होने लगी थी और एक समय इनको बंद करने की मांग उठने लगी थी। डाकघर बहुत ज्यादा घाटे में आ गए थे और इनके अस्तित्व पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। पर अब हालात कुछ बेहतर हुए हैं। हालांकि योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक उम्दा बुनियादी ढांचे का अभाव अभी भी कायम है और इसमें सुधार की उम्मीद फिलहाल कम ही प्रतीत हो रही है। सरकार ने डाकघरों में नेटवìकग व कंप्यूटरीकरण आदि का काम तो तेजी से आरंभ कर दिया है, किंतु प्रशिक्षण आदि व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया है। अभी तक डाकखानों में नोट गिनने और नकली नोटों की पहचान संबंधी मशीन भी नहीं लगाई गई है। बहरहाल नई हैंड मशीनों से न केवल डाक विभाग को, बल्कि आम जनता को भी घर बैठे तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं। गांवों के लिए तो यह विशेष रूप से वरदान साबित हो रही है।
पहले जहां डाकघर से मनीऑर्डर भेजना बहुत दुष्कर व झंझट वाला कार्य था, वहीं अब ये बेहद आसान व सुगम हो गए हैं। इस योजना से भारतीय डाक विभाग आधुनिक ही नहीं बनेगा, बल्कि छोटे शहरों और कस्बों में तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स कारोबार का फायदा भी उसे मिलेगा। अगर किसी सामान में कैश ऑन डिलीवरी यानी सामान पहुंचने के बाद ही रकम देने की शर्त है तो डाकिया मौके पर पैसा लेकर तत्काल ई-कॉमर्स कंपनियों के खाते में भेज देगा। इतना ही नहीं डाकिये की उस मशीन से किसी भी बैंक के खाते में जमा व निकासी की जा सकती है। इसके तहत डाकिये के साथ जो भी लेन-देन किया जाएगा, उसकी रसीद भी इस मशीन से फौरन निकल जाएगी। लेन-देन की जानकारी बीएसएनएल के मोबाइल नेटवर्क के जरिये डाक विभाग के मुख्य सर्वर पर फौरन भेज दी जाएगी।
हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वह यह कि समुचित प्रशिक्षण, उपकरण व व्यवस्था के अभाव में कामकाज की गति बेहद धीमी है और आम जनता को भारी परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है। डाकियों को ये नई मशीनें दे तो दी गई हैं, पर उन्हें इस बाबत प्रशिक्षित नहीं किया गया है। दूसरी तरफ कंप्यूटराइजेशन व एकीकरण का काम पूरा न होने से ये मशीनें कई जगहों पर नकारा भी साबित हो रही हैं। चूंकि किसी भी डाकिये को यह मालूम नहीं होता कि डीलिंग वाले डाकघर में कंप्यूटराइजेशन व एकीकरण का काम पूरा हो गया है अथवा नहीं इसलिए मशीनों में ट्रांजेक्शन फंसने से जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। तमाम डाकघरों में शिकायतों का अंबार लगता जा रहा है और जनता को सामान्य कामकाज निपटाने में भी कई प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।
इसमें अधिकांश योगदान ई-कॉमर्स कंपनियों का है। कोरोना से पहले ई-कॉमर्स से कैश ऑन डिलीवरी मद की कमाई चालू वित्त वर्ष के अंत तक 2,500 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया था, जो पिछले वित्त वर्ष के अंत तक मात्र 500 करोड़ रुपये ही था। अनुमान है कि अब विभाग की सेवाएं बेहतर होंगी और गड़बड़ी या सामान की चोरी की आशंका काफी हद तक खत्म हो जाएगी।
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