[ डॉ. एके वर्मा ]: बीते दिनों लोकसभा में कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने प्रधानमंत्री के लिए जैसी अभद्र भाषा का प्रयोग किया और इसके पहले चुनावों में राहुल गांधी ने जिस तरह उन्हें ‘चोर’ कहा वह राजनीति में भाषाई अशिष्टता की पराकाष्ठा है। इस अशिष्टता से सभी परिचित हैैं। यह भी सर्वविदित है कि सांसदों और विधायकों द्वारा किस प्रकार अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की उपेक्षा की जाती है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि देश की सभी समस्याओं के लिए किस तरह राजनीति और राजनीतिज्ञों को दोष दिया जाता है।

ज्यादातर राजनीतिज्ञ भ्रष्ट, आपराधिक-प्रकृति के होते हैैं

लोगों का मानना है कि ज्यादातर राजनीतिज्ञ भ्रष्ट, आपराधिक-प्रकृति के होते हैैं और धनार्जन में लिप्त रहते हैं। इसके बावजूद चुनावों में जनता बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती है और वैसे ही लोगों को लोकसभा, विधानसभाओं, पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिए चुनती है। विडंबना यह कि हमें जनप्रतिनिधियों से शिकायत भी है और उन पर भरोसा भी। नि:संदेह जनता की आस्था लोकतंत्र में बनी हुई है, लेकिन उसे वैकल्पिक जन-प्रतिनिधियों की तलाश भी है। जब अच्छे लोगों से राजनीति में भाग लेने की बात की जाती है तो वे उसके गंदे स्वरूप का हवाला देकर उससे किनारा कर लेते हैं। जो लोग राजनीति की ओर रुख करते हैं वे या तो निराश होकर लौट आते हैं या फिर स्थानीय स्तर पर नेताओं की खींच-तान में उलझ कर रह जाते हैं।

राजनीति में आने की दिलचस्पी

इसमें दोराय नहीं कि लोगों को राजनीति में आने की दिलचस्पी है, लेकिन उन्हें यह पता नहीं कि राजनीति वास्तव में है क्या? उसमें आने का सही रास्ता क्या है? उसकी तैयारी कैसे की जाती है? कब उसमें प्रवेश करना चाहिए? दैनिक कार्यों के साथ कितना समय सक्रिय राजनीति में देना जरूरी है? छात्रों और युवाओं को समझ नहीं आता कि वे कैरियर और राजनीति में कैसे समन्वय स्थापित करें? यदि कोई युवा राजनीति में जाना चाहता है तो परिवार का समर्थन नहीं मिलता, क्योंकि उसे पढ़ाई और नौकरी के लिए एक बाधा के रूप में देखा जाता है। जब तक हम बीज नहीं बदलेंगे तो भावी राजनीतिज्ञों की फसल कैसे बदलेगी?

आलाकमान संस्कृति

स्वतंत्रता के पूर्व गांधीजी ने राजनीति की नई पौध तैयार की, लेकिन उसे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आगे नहीं बढ़ाया और पार्टी में ‘टॉप-डाउन’ मॉडल को जन्म दिया। परिणामस्वरूप कांग्रेस में आलाकमान संस्कृति चल निकली जिसका दंश पार्टी आज तक झेल रही है। कांग्रेस गांधी परिवार पर इतना आश्रित हो गई है कि ज्यादातर कांग्रेसी राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद भी उन्हें ही अध्यक्ष पद पर देखना चाहते हैैं।

राजनीतिज्ञों की नई पौध

1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण ने राजनीतिज्ञों की नई पौध तैयार की, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जून 1975 में आपातकाल लगा कर उसे कुचलने का प्रयास किया। 1977 में विभिन्न दलों के विलय के चलते जनता पार्टी की सरकार बनी जरूर, लेकिन घटक दलों के आपसी कलह से वह उस पौध को संभाल न सकी और इस तरह जुझारू राजनीतिज्ञों की फसल समय से पूर्व ही नष्ट हो गई। 2011 में अन्ना हजारे ने तीसरी बार नई पौध लगाने की कोशिश की और वैकल्पिक राजनीति का नया-मॉडल देने का प्रयास किया, लेकिन अरविंद केजरीवाल जैसे महत्वाकांक्षी लोगों के हाथों वह खत्म हो गई। अब चौथी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नव-राजनीति और नव-राजनीतिज्ञों की पौध तलाशी जा रही है।

नई राजनीति के लिए नए राजनीतिज्ञ आएंगे कहां से

ज्यादातर पार्टियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है कि नई राजनीति के लिए नए राजनीतिज्ञ आएंगे कहां से? जो लोग स्वेच्छा से राजनीति में आए उनकी दलों ने कभी चिंता नहीं की और न ही इसकी जरूरत समझी कि उन्हें समुचित प्रशिक्षण देकर बताया जाए कि राजनीति होती क्या है? हम राजनीति और राजनीतिज्ञों को कोसते हैं, लेकिन हमें पता नहीं कि राजनीति तो समाज में संघर्षों के समाधान की वह कुंजी है जिससे लोक-कल्याण सुनिश्चित किया जाता है।

युवा कांग्रेसियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम

एक पहल कांग्रेस ने 2005 में की थी। चित्रकूट और गोरखपुर में 500-600 युवा कांग्रेसियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम की व्यवस्था की गई थी। इनमें राहुल गांधी और मनमोहन सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों सहित युवा कांग्रेसी शामिल हुए। दोनों शिविरों में उन्हें प्रशिक्षित करने का मेरा अनुभव अच्छा रहा। मैंने पार्टी और नेतृत्व की गलतियों को इंगित करते हुए सुझाव दिया था कि कांग्रेस को अपने पुनरुत्थान के लिए 1885 में पार्टी की स्थापना के समय पारित प्रस्ताव पर अमल करना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने उन सुझावों को गंभीरता से नहीं लिया।

भाजपा को संघ के प्रशिक्षित कार्यकर्ता मिलते हैं

चूंकि भाजपा को संघ के माध्यम से प्रशिक्षित कार्यकर्ता मिलते रहते हैं इसलिए उसके पास राजनीतिज्ञों की सप्लाई लाइन अच्छी है, लेकिन कांग्रेस ने सेवा दल, वानर सेना और युवा कांग्रेस जैसी अपनी ही सप्लाई लाइन को काट दिया। देश में और किसी पार्टी ने ऐसी कोई सप्लाई लाइन बनाने के लिए न तो कभी कोई प्रयास किया, न ही उपलब्ध राजनीतिज्ञों के प्रशिक्षण के लिए कभी सोचा।

पार्टी का अर्थ है एक विचारधारा

पार्टी का अर्थ है एक विचारधारा के इर्द-गिर्द निष्ठावान लोगों का संगठन जो जनता से संवाद और सेवा का माध्यम बने, लेकिन अधिकतर पार्टियां केवल चुनाव को ही अपनी कर्मभूमि मानती हैं। चुनावों के बाद उन्हें समझ में नहीं आता कि किया क्या जाए, जबकि चुनाव तो राजनीति का ‘बाई-प्रोडक्ट’ है। वास्तविक राजनीति तो चुनाव के बाद ही की जाती है। यदि जीतें तो अपने क्षेत्र में अपनी पार्टी का एजेंडा लागू कराने का प्रयास करें और हारें तो राजनीतिक सक्रियता बरकरार रखते हुए सरकार और प्रशासन पर दबाव बनाएं कि निर्वाचन क्षेत्र को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले। यह भी देखें कि इन योजनाओं पर सही से अमल हो रहा है या नहीं? अमेठी में स्मृति ईरानी की विजय इसी मॉडल की राजनीति का ज्वलंत उदाहरण है।

दलीय स्तर पर नियमित प्रशिक्षण जरूरी

आज जनता बेहतर शासन के लिए सत्ताधारी दल बदलती है, लेकिन पार्टियों के पास जो लोग हैं उनमें से अधिकांश को राजनीति का ककहरा भी पता नहीं। इसीलिए दल और सत्ता परिवर्तन से कोई फर्क नहीं पड़ता। जब आइएएस और पीसीएस की कठिन परीक्षाओं में सफल होकर आने वाले प्रशासक को कठोर प्रशिक्षण दिया जाता है तो उन्हें निर्देशित करने वाले राजनीतिक प्रशासकों के लिए दलीय स्तर पर नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था क्यों नहीं है?

नव-राजनीति का श्रीगणेश

देश में इंजीनियर, डॉक्टर और व्यावसायिक प्रबंधन के लिए अनेक प्रशिक्षण संस्थान हैं, लेकिन जो उनके ऊपर बैठते है और जो राजनीतिक प्रबंधन कहते हैं कि उनके लिए कोई शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान क्यों नहीं? वक्त आ गया है कि देश में आइआइटी और आइआइएम के पैटर्न पर भारतीय राजनीतिक प्रबंधन संस्थानों की स्थापना की जाए जिसमें पंचायत से लेकर संसद तक की राजनीति के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पहलुओं का प्रशिक्षण दिया जाए ताकि योग्य, समर्पित और कुशल राजनीतिज्ञों की नई पौध और नई फसल तैयार की जा सके। इसका लाभ सभी दलों को मिलेगा और देश में राजनीतिज्ञों की एक नई फसल लहलहाएगी और वैचारिक, प्रक्रियात्मक एवं भाषाई नव-राजनीति का श्रीगणेश होगा।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक हैैं )