लखनऊ, सद्गुरु शरण। अयोध्या में परमहंस राममंगल दास वार्ड के पार्षद हाजी असद अहमद का आवास। मोहल्ले के 50-60 लोग जमा हैं और राम मंदिर के भूमि पूजन की खुशी में उनसे लड्डू खिलाने का आग्रह कर रहे हैं। उल्लसित हाजी अपने एक कार्यकर्ता को लड्डू लाने के लिए भेजते हैं। हाजी प्रेमपूर्वक सबको खिला रहे हैं। स्नेह, सद्भाव और समझदारी का यह दृश्य उसी अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन के बाद का है जिसके नाम पर दशकों से देश भर में हिंदुओं-मुसलमानों को भरमाया जाता रहा। यह अलग बात है कि खुद अयोध्या कभी भ्रमित नहीं हुई।

पिछली सदी के आखिरी दशक में जब मंदिर-मस्जिद का विवाद चरम पर था, उस वक्त भी यहां के हिंदुओं-मुसलमानों ने कभी धैर्य नहीं खोया। उनके रिश्ते हमेशा सद्भावपूर्ण रहे। एक-दूसरे के धर्म के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने में अयोध्या के हिंदू-मुसलमान नजीर स्थापित कर रहे हैं। राम मंदिर के भूमि पूजन पर अयोध्या के मुसलमानों की प्रतिक्रिया उन संगठनों के मुंह पर तमाचा है जो मंदिर-मस्जिद के नाम पर धंधा करने के आदी हो चुके हैं।

हाजी के लड्डू खाने लोगों को तो उनके दरवाजे आना पड़ा, पर रामप्रसाद बिस्मिल वार्ड के पार्षद मोहम्मद सलमान ने तो खुद 800 घरों तक जाकर लड्डू बांटे। पार्षदों फरीद और सादिक ने भी कई दिन लड्डू बांटकर पूरी अयोध्या के साथ राम मंदिर के भूमि पूजन की खुशी मनाई। मोहम्मद सलमान कहते हैं, राम अयोध्या की पहचान हैं। उनके मंदिर का भूमि पूजन सबके लिए खुशी का क्षण है।

अयोध्या और राम मंदिर के प्रति हाजी असद अहमद, मोहम्मद सलमान, फरीद और सादिक की सद्भावना एकतरफा नहीं है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने जब भूमि पूजन समारोह के निमंत्रण बांटने शुरू किए, तब पहला निमंत्रण मोहम्मद इकबाल अंसारी को भेजा गया। अंसारी जन्मभूमि विवाद में बाबरी मस्जिद के पक्षकार हुआ करते थे, पर गत वर्ष नवंबर में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने पर उन्होंने इसे न सिर्फ खुद श्रद्धापूर्वक स्वीकार किया, बल्कि पूरे मुस्लिम समाज से भी बड़ी सोच दिखाने की अपील की। अयोध्या का यह संदेश पूरे देश में विस्तार लेता नजर आता है, जब मुस्लिम वर्ग के लोग राम मंदिर के भूमि पूजन के बाद विविध तरीकों से खुशी जताते दिखते हैं।

गत वर्ष नौ नवंबर को जब सर्वोच्च न्यायालय ने जन्मभूमि विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाया तो बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी समेत पूरे देश ने इसका जबर्दस्त स्वागत किया, पर कुछ व्यक्ति, संगठन और सियासी दल मांग उजड़ जाने जैसे भाव में दुखी नजर आए। ऐसे तत्वों के बारे में इकबाल अंसारी ने कहा कि सिर्फ वे लोग दुखी हैं जो मंदिर-मस्जिद के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे थे। चंद लोगों के चेहरों पर कुछ वैसी ही मायूसी राम मंदिर के भूमि पूजन पर भी नजर आई। ये वही दल और संगठन हैं जिन्होंने मुस्लिम वर्ग को पिछले कई दशकों से डराकर अपना वोटबैंक बना रखा था। उन्हें तीन तलाक, कश्मीर, परिवार नियोजन और तरह-तरह के अन्य भय दिखाकर राजनीतिक तौर पर बंधक बनाकर रखा गया था। वक्त के साथ सियासत का चेहरा बदला और सोच भी।

अब राम मंदिर के भूमि पूजन की खुशी में मुस्लिम समाज लड्डू बांट रहा है तो भूमि पूजन का पहला निमंत्रण इकबाल के घर और पहला प्रसाद अनुसूचित समाज के महावीर के घर पहुंच रहा है। राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं आस्था के सवालों पर सभी पंथ-वर्गो में शानदार समझदारी दिख रही है। रामलला के मंदिर निर्माण के जरिये समाज और संस्कृति में बदलाव दिखने लगा है। सियासत संतों का सम्मान कर रही है तो सामाजिक वर्ग एक-दूसरे का। जब जन्मभूमि विवाद चरम पर था और अदालत में इसकी सुनवाई चल रही थी, उस वक्त इसके दोनों पक्षकार रामचंद्रदास परमहंस और हाशिम अंसारी (इकबाल अंसारी के पिताजी) की दोस्ती के किस्से भी सुनने को मिलते थे।

जानकार बताते हैं कि लखनऊ में मुकदमे की सुनवाई के दिन दोनों एक ही टैक्सी से जाते थे और कोर्ट के बाहर टैक्सी का किराया खुद चुकाने के सवाल पर दोनों में मैत्रीपूर्ण मीठी तकरार होती थी। अयोध्या में भी दोनों कई बार एक ही रिक्शे पर तफरीह करते दिख जाते थे। अयोध्या अपनी इस विरासत के प्रति आज भी संवेदनशील है, पर उस सियासत का क्या किया जाए जो समाज का रुख देखकर अपनी करतूतों पर शर्मिंदा तो है, पर सुधरने को तैयार नहीं?

[स्थानीय संपादक, लखनऊ]