गौरीशंकर राजहंस। India–Japan Relations जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी ने अपने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया है। जब तक नए प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं हो जाता, वे अपने पद पर बने रहेंगे। पिछले कुछ महीनों से उनका स्वास्थ्य तेजी से गिर रहा था। यदि भारत की बात होती तो यहां के नेता तो गंभीर बीमारी के बाद भी अपना कामकाज करते रहते। परंतु शिंजो एबी ने यही सोचा कि इस गंभीर बीमारी के कारण वे देश का काम सही ढंग से नहीं चला नहीं पा रहे हैं। इसलिए उन्होंने लाचार होकर त्यागपत्र दे दिया। अब बहुत शीघ्र जापान की सत्ताधारी पार्टी में नए नेता का चुनाव होगा, तब तक शिंजो एबी देश का कामकाज बिस्तर से ही देखते रहेंगे।

PM मोदी के निकटतम मित्रों में से एक शिंजो एबी: शिंजो एबी जापान के अत्यंत लोकप्रिय नेता रहे। वे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निकटतम मित्रों में से हैं। उन्होंने इस बात को महसूस किया था कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन जापान के साथ साथ भारत का भी बहुत बड़ा दुश्मन है। इसलिए उन्होंने यह प्रस्ताव रखा था कि जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया मिलकर चीन का मुकाबला करें। अपने इस प्रयास में शिंजो एबी को काफी हद तक सफलता भी मिल गई थी। शिंजो एबी ने अपने शासनकाल में जापान को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया था। यह अलग बात है कि कोरोना महामारी के कारण जब सारी दुनिया में मंदी छा गई, तब जापान में भी मंदी आ गई।

शिंजो एबी ने अपने देश को हर दृष्टिकोण से मजबूत करने के प्रयास किए: शिंजो एबी कई बार भारत आए। उनकी सबसे महत्वपूर्ण यात्र 2015 में हुई, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वह वाराणसी में गंगा आरती में बड़े मनोयोग से शामिल हुए थे। वर्ष 2014 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया और वे इस समारोह में आए भी थे। उनकी उस यात्र में उन्हें भारत में अद्वितीय सम्मान मिला। शिंजो एबी ने अपने देश को हर दृष्टिकोण से मजबूत करने के प्रयास किए। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराने के बाद उसे बहुत नुकसान हुआ। जापान को हर तरह से पंगु बनाने के लिए अमेरिका ने उस पर कई प्रकार की पाबंदियां लगाईं। शिंजो एबी ने अपने कार्यकाल में अमेरिका के तमाम प्रतिबंधों को नहीं माना और जापान को सामरिक तौर पर मजबूती प्रदान की। अमेरिका ने इसका कोई खास विरोध नहीं किया, क्योंकि वह भी यही चाहता था कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के क्षेत्र में चीन की बढ़त को रोका जाए।

शिंजो एबी ने भारत को हर दृष्टि से तकनीकी सहायता दी: जापान और चीन की दुश्मनी बहुत पुरानी है। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने चीन के बहुत बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया था। चीन उसी का बदला लेना चाहता है। भारत ने दोनों देशों को समझाया कि पुरानी बातों को याद रखने से कोई फायदा नहीं, परंतु चीन मानने को तैयार नहीं है। वह हर तरह से जापान के साथ पंगा लेने को तैयार है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, इसलिए जापान से मिलकर भारत चीन का मुकाबला करने को तैयार है। शिंजो एबी ने भारत को हर दृष्टि से तकनीकी सहायता दी और प्रयास किया कि तकनीक के मामले में भारत बहुत आगे बढ़ जाए। सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि शिंजो एबी मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन के लिए रेल लाइन बिछाने में वित्तीय व तकनीकी मदद मुहैया करा रहे हैं। इस करार के तहत जापान भारत को व्यापक कर्ज की रकम नाम मात्र के ब्याज पर दे रहा है। इससे भी बड़ी बात यह कि इस कर्ज की अदायगी की किस्तों को शुरू करने के लिए भी उसने आगामी एक दशक का समय दिया है।

शिंजो एबी के कार्यकाल में भारत में जापानी निवेश बहुत तेजी से बढ़ा। अभी भी यदि कोई व्यक्ति गुरुग्राम जाता है तो वह अपनी आंखों से देखता है कि सैकड़ों जापानी कंपनियां वहां सामान तैयार कर रही हैं। उनमें कारें, मोटरसाइकिल, वातानुकूलित यंत्र और अन्य कई महत्वपूर्ण तकनीकी सामान बनाए जा रहे हैं। इन जापानी कंपनियों ने हजारों भारतीय कामगारों को रोजी रोटी दी है।

बुद्ध के समर्थक : शिंजो एबी बौद्ध धर्म के बहुत बड़े समर्थक हैं। उन्हें पता है कि भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वहीं से बौद्ध धर्म सारे संसार में फैल गया। शिंजो एबी ने अपने देशवासियों से अपील की है कि वे भारत के बौद्ध धर्म के धाíमक स्थानों पर अवश्य जाएं। आजकल जापान के अधिकतर पर्यटक श्रीलंका और थाईलैंड जा रहे हैं। शिंजो एबी ने भारत-जापान दोस्ती की जो नींव रखी है, वह निस्संदेह फूलती-फलती रहेगी। शिंजो एबी दुर्भाग्यवश अपने स्वास्थ्य कारणों से जापान के प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे, परंतु उनके एहसान को हर भारतवासी वर्षो तक याद रखेगा।

[पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत]