[ अवधेश कुमार ]: पिछले कुछ समय से सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू के संबंध लगातार बहस और विवाद का विषय बने हुए हैं। विवाद का एक बड़ा पहलू यह भी है कि नेहरू के अंदर पटेल को लेकर असम्मान और द्वेष का भाव था। इस समय नारायणी बसु द्वारा लिखी किताब वीपी मेनन को लेकर विवाद है। इसमें बताया गया है कि नेहरूजी की पहली मंत्रिपरिषद की सूची में पटेल का नाम नहीं था। विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा इसका उल्लेख करने के साथ ही नेहरूजी के समर्थक टूट पड़े और कांग्रेस पार्टी इसका खंडन करने में जुट गई।

जयराम रमेश ने कहा- पटेल नेहरू के बाद कैबिनेट में नंबर दो थे

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने 14 अगस्त 1947 का एक पत्र ट्वीट करते हुए कहा कि पटेल नेहरू के बाद कैबिनेट में नंबर दो थे। दरअसल हम किसी व्यक्ति के बारे में धारणा बना लेते हैं कि वह इतना महान है या था कि उसमें कोई दोष हो ही नहीं सकता। महान मनुष्यों में भी मानवजनित दोष होते हैं और नेहरूजी अपवाद नहीं थे। पटेल से उनके गहरे मतभेद के इतने तथ्य हैं कि उन पर मोटी-मोटी पुस्तकें लिखी जा सकतीं हैं। जयराम रमेश ने जो प्रमाण दिए वे भी सच हैं, किंतु वे बाद के हैं।

गांधी जी के हस्तक्षेप के बाद सरदार पटेल को नेहरू मंत्रिमंडल में जगह मिली थी 

नेहरू को मंत्रिमंडल का गठन करने और उसके सदस्यों की सूची भेजने के लिए कहा गया तो उन्होंने अपनी प्रथम सूची में सरदार पटेल को स्थान नहीं दिया था। उनके हाथों से लिखी यह सूची उपलब्ध है। बात गांधी जी तक पहुंची और फिर पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। यह ध्यान रहे कि गांधी जी का सम्मान करते हुए सरदार पटेल ने 1946 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया था, जबकि 15 प्रांतों की कांग्रेस समितियों में से 12 ने उनके नाम का अनुमोदन कर दिया था।

पटेल आसानी से पीएम बन सकते थे

वह आसानी से प्रधानमंत्री बन सकते थे। अनेक नेताओं ने पटेल के अपना दावा छोड़ने के रवैये पर असंतोष प्रकट किया था। मध्य प्रांत के तत्कालीन गृहमंत्री डीपी मिश्र ने पटेल को पत्र लिखकर कहा, ‘आपके कारण ही कांग्रेसी नेताओं ने चुपचाप सब कळ्छ स्वीकार कर लिया।’

नेहरू ने गांधीजी से कहा- या तो पटेल को अपना पद छोड़ना होगा, नहीं तो मैं स्वयं त्यागपत्र दे दूंगा

पटेल ने 16 जनवरी 1948 को गांधीजी को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि उन्हें पद से मुक्त कर दिया जाए। इससे पूर्व 6 जनवरी 1948 को नेहरू ने गांधीजी को लिखे पत्र में कहा कि या तो पटेल को अपना पद छोड़ना होगा, नहीं तो मैं स्वयं त्यागपत्र दे दूंगा। नेहरू द्वारा उठाए गए मामलों पर पटेल ने गांधी जी को फिर पत्र लिखकर कहा कि नेहरू की नीतियों को स्वीकार कर लिया जाए तो देश में प्रधानमंत्री की भूमिका एक तानाशाह की हो जाएगी।

गांधी जी की हत्या के बाद नेहरू और पटेल ने मतभेद दूर कर काम करने का निर्णय किया

गांधी जी की हत्या के बाद की स्थितियों में दोनों ने मतभेद दूर कर काम करने का निर्णय किया। 3 फरवरी 1948 को नेहरू ने सरदार पटेल को लिखा कि बापू के निधन के बाद अब सब कुछ बदल गया है। पुराने विवादों और मतभेदों का अब कोई महत्व नहीं रहा और मुझे लगता है कि हमें एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिए। पटेल ने इसका उत्तर दिया, हमें आपसी बातचीत के लिए समय निकालना होगा ताकि हम मतभेदों को दूर कर सकें। क्या इसके बाद भी कुछ कहने की आवश्यकता है?

जब सरदार का निधन हुआ तो उनकी स्मृतियों को मिटाने का बड़ा अभियान शुरू हुआ

वीपी मेनन वाली पुस्तक में ही मेनन के हवाले से लिखा गया है कि जब सरदार का निधन हुआ तो उनकी स्मृतियों को मिटाने का बड़ा अभियान शुरू हुआ। सरदार पटेल सोसाइटी के संस्थापक एस निजलिंगप्पा ने अपनी जीवनी ‘माइ लाइफ एंड पॉलिटिक्स’ में लिखा है कि मैं बार-बार अनुरोध करता रहा कि इस सोसायटी को उचित स्तर की इमारत दी जाए, लेकिन इस दिशा में कुछ नहीं किया गया। नेहरूजी के इर्द-गिर्द कुछ ऐसे नेता इकट्ठे थे जो पटेल के खिलाफ उनके कान भरते थे और गांधी जी तक शिकायतें पहुंचाई जातीं थी।

गांधी जी ने पटेल को कहा- तुम्हारे खिलाफ कई शिकायतें सुनने को मिली हैं

गांधी जी को पटेल के खिलाफ इतनी शिकायतें मिलीं कि कुछ समय के लिए वह भी प्रभावित हो गए। उन्होंने पटेल को लिखा, मुझे तुम्हारे खिलाफ कई शिकायतें सुनने को मिली हैं। लोग तो कह रहे हैं कि तुम किसी भी स्थिति में पद पर बने रहना चाहते हो। पटेल ने 7 जनवरी 1947 को गांधीजी को लिखे जवाब में कहा कि नेहरू ने उन्हें पद छोड़ने के लिए दबाव डालते हुए धमकी दी थी जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि इससे कांग्रेस की गरिमा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता। आरोपों के संदर्भ में पटेल ने गांधीजी को बताया कि ये अफवाहें मृदुला द्वारा ही फैलाई गई होंगी जिन्होंने मुझे बदनाम करने को अपना शौक बना लिया है।

नेहरू ने अपने मंत्रियों और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे पटेल के दाह संस्कार में न जाएं

पटेल की मृत्यु के प्रसंग की चर्चा से उन लोगों का मुंह बंद हो जाएगा जो यह मानने को तैयार नहीं कि नेहरूजी के अंदर उनको लेकर गहरी वितृष्णा थी। 15 दिसंबर 1950 को सरदार की मृत्यु हुई। मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने अपनी पुस्तक पिलग्रिमेज टू फ्रीडम वाल्यूम-2 के पृष्ठ संख्या 289-290 पर लिखा है कि नेहरू ने अपने मंत्रियों और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे दाह संस्कार में न जाएं। उस समय बंबई के पास माथेरन में था। एनवी गाडगिल, सत्यनारायण सिन्हा और वीपी मेनन ने निर्देशों पर ध्यान न देते हुए अंतिम संस्कार में भाग लिया। वरिष्ठ पत्रकार दुर्गा दास ने, जिनके नेहरू, पटेल और आजाद से संबंध थे, अपनी पुस्तक इंडिया फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर के पृष्ठ 305 पर लिखा है कि राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सलाह को अपने लिए बाध्यकारी नहीं माना।

यह सच है कि स्वयं नेहरू पटेल के अंतिम संस्कार में शामिल हुए

यह सच है कि स्वयं नेहरू पटेल के अंतिम संस्कार में शामिल हुए, पर उन्होंने अन्य लोगों को रोकने की कोशिश की, जिसमें वह विफल रहे। वास्तव में इस देश में इतिहास के ऐसे तथ्यों को दबाकर रखा गया है जिससे नेहरूजी को महापुरुष मानने पर किसी तरह का प्रश्न खड़ा किया गया हो, किंतु सच यही है कि नेहरू पटेल को अच्छी नजर से नहीं देखते थे, अन्यथा अंतिम संस्कार में जाने से लोगों को रोकना और उनकी स्मृति में कुछ भी बड़ा न करने का कोई कारण नहीं हो सकता।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं )