प्रो. निरंजन कुमार। लोकसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र का महापर्व है, पर इस बार का आम चुनाव सामान्य चुनाव नहीं है। यह जनता द्वारा अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ भी है। लगभग 97 करोड़ मतदाता अपना और देश का भाग्य तय करेंगे। इसमें 18 से 35 आयु वालों की संख्या 60 करोड़ से अधिक है और पहली बार वाले मतदाता बने युवा 1.8 करोड़ हैं। यह जानना दिलचस्प होगा कि खासतौर से 35 से कम आयु वाले युवाओं की क्या आकांक्षाएं हैं? ‘अमेरिकी ड्रीम’ की ही तरह आज भारतीय युवाओं का भी अपना एक ‘इंडियन ड्रीम’ है।

लोकतंत्र ‘जनता के द्वारा’ और ‘जनता की सरकार’ तो है, पर सबसे ऊपर यह ‘जनता के लिए सरकार’ है। यानी जनता के सपनों को पूरा करने के लिए सरकार है। मोबाइल फोन, इंटरनेट मीडिया आदि की वजह से आज का भारतीय युवा सूचनाओं से लैस और दुनिया में हो रहे सामाजिक-आर्थिक प्रगति से परिचित है। वह भी विकसित दुनिया खासतौर से संसार के रोल माडल कहलाने वाले देश अमेरिका के युवाओं के साथ कदमताल करना चाहता है।

1931 में जेम्स ट्रूस्लो एडम्स ने अपनी पुस्तक ‘द एपिक आफ अमेरिका’ में अमेरिकन ड्रीम की परिभाषा देते हुए कहा था, ‘चाहे किसी भी सामाजिक वर्ग या वंश-परिवार या परिस्थितियों से आए हों, हर अमेरिकी के लिए अपनी क्षमता के अनुरूप सफलता, समृद्धि और बेहतर जीवन के अवसर होने चाहिए।’ ‘अमेरिकी ड्रीम’ की ही तरह आज भारतीय युवा भी अपने लिए ऐसी राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था की कल्पना करता है, जहां आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से उसे ऊर्ध्व गतिशीलता का समुचित अवसर मिल सके।

वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और विकसित होते भारत में अपने लिए अवसर देख रहा है और तेजी से हो रहे आर्थिक-सामाजिक विकास में अपनी हिस्सेदारी भी चाहता है। देश के विभिन्न हिस्सों के विद्यार्थियों, श्रमिकों-कामगारों, आफिस-माल में काम करने वालों और निम्न मध्यम वर्ग एवं मध्य मध्यम वर्ग के लोगों में भारत के भविष्य को लेकर आशा का भाव है।

वे अपनी स्थिति से पूर्ण संतुष्ट तो नहीं हैं, लेकिन बेहतर भविष्य को लेकर आशान्वित हैं और इसीलिए जाति, क्षेत्र, मजहब आदि से परे हटकर भी सोच रहे हैं। इसका एक कारण तो यह है कि बीते दस वर्षों में 10वीं बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत आज पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और 2027 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है। दूसरा कारण देश का रोटी, कपड़ा और मकान के मुद्दों से बाहर निकल आना है।

ग्लोबल इकोनमी में उभरते नए भारत में युवा वर्ग अपनी पर्याप्त हिस्सेदारी देख रहा है। आज जहां मध्यम या निम्न मध्यम वर्ग के लिए अवसर हैं, वहीं गरीबों के लिए भी संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि पिछले दस वर्षों में महिलाओं के साथ इस वर्ग के लोगों की स्थिति में व्यापक परिवर्तन आया है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गरीबी दर वित्त वर्ष 2013-14 में 29.17 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत रह गई है।

इस वर्ग में ‘दो जून की रोटी’ की आस से आगे भी बेहतर जीवन अर्थात ‘इंडियन ड्रीम’ का भाव जागने लगा है, लेकिन प्राचीन सभ्यता वाले भारत का सपना अमेरिकी सपने से कुछ विशिष्ट है। अमेरिकी आकांक्षा केवल भौतिक उपलब्धि तक सीमित है। भारतीय आकांक्षा में प्राचीन विरासत और सांस्कृतिक उपलब्धि को लेकर भी सजगता है। वास्तव में ‘ग्रेट इंडियन ड्रीम’ का आर्थिक और राजनीतिक पक्ष तो है ही, एक सांस्कृतिक पक्ष भी है और इसीलिए अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और सनातन धर्म जैसे विषय भी चुनावी भाषणों में सुनाई दे रहे हैं।

आज का भारत सदियों की गुलामी के बाद अपनी विरासत के प्रति सजग है और वह उसे संजोए रखना चाहता है। इस ‘ग्रेट इंडियन ड्रीम’ को साकार करने के लिए युवा जब राजनीतिक नेतृत्व की तरफ देखता है तो उसके पास दो ही विकल्प हैं- एक तरफ भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए और दूसरी ओर कांग्रेस के नेतृत्व वाला आइएनडीआइए। दोनों ने अपने-अपने घोषणा पत्र पेश कर दिए हैं और उनके नेताओं की ओर से जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह के वादे भी किए जा रहे हैं।

जनता विभिन्न दलों के वादों की पड़ताल इस आधार पर भी कर रही है कि किसने सत्ता में रहते समय क्या किया और कौन अपने वादों को पूरा करने की क्षमता रखता है? चूंकि पक्ष-विपक्ष का नेतृत्व करने वाले दोनों ही गठबंधनों के दल सत्ता में रह चुके हैं, इसलिए लोगों को उनकी नीतियों और उन पर अमल कर सकने की क्षमता एवं प्रतिबद्धता का भी अनुभव है। भारतीय युवा की यह अपेक्षा है कि वह इसलिए अपने सपने को साकार करने से वंचित न रह जाए कि वह अमुक जाति या मजहब या क्षेत्र से नहीं है।

निःसंदेह रोजगार एक मुद्दा है, लेकिन यह हर कोई जानता है कि सरकारी नौकरियां सीमित हैं। किसी भी देश और यहां तक कि विकसित देशों तक में रोजगार सरकारी नौकरियों के सहारे पूरा नहीं होता। इसे आज के युवा भी समझते हैं और इसीलिए वे यह देख रहे हैं कि देश में कहां-किस तरह के उद्योग-धंधे विकसित हो रहे हैं? अब एक बड़ी संख्या में युवा नौकरी मांगने के बजाय नौकरी देने वाले बन रहे हैं या फिर बनना चाहते हैं। मतदाता और खासतौर से युवा वोटर किस आधार पर वोट करेंगे, इसकी एक झलक पहले चरण के मतदान में भले ही दिख जाए, लेकिन अंतिम परिणाम तो चार जून को ही पता चल सकेगा।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में सीनियर प्रोफेसर हैं)