हरियाणा, अनुराग अग्रवाल। दशकों से चर्चित रही एसवाइएल नहर निर्माण के संबंध में गौसिया खान सबीन का यह शेर हरियाणा पर फिट बैठ रहा है: उन को बहुत गुरूर था अपनी जफाओं पर, हम भी वहीं अड़े रहे अपनी वफा के साथ। हरियाणा और पंजाब के बीच पिछले 44 वर्षो से विवाद का कारण बनी एसवाइएल यानी सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण का समय नजदीक आता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट हालांकि वर्ष 2016 में ही हरियाणा के हक में नहर निर्माण का फैसला सुना चुका है, लेकिन पंजाब के नकारात्मक रवैये की वजह से न तो नहर बन पा रही है और न ही हरियाणा को उसके हिस्से का पानी मिल रहा है।

प्रदेश के हर राजनीतिक दल ने नहर निर्माण के लिए अपने-अपने ढंग से प्रयास किए, लेकिन इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि इन 44 वर्षो में इस सूखी नहर में अपनी राजनीतिक नाव चलाकर नौ मुख्यमंत्रियों ने 17 बार अपनी सरकारें भी बनाईं। लंबे अरसे बाद यह पहला मौका आया है, जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार नहर निर्माण के लिए न केवल गंभीर प्रयास करती दिखाई दे रही है, बल्कि अपने हिस्से का पानी भी छोड़ने को तैयार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो माह पहले केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह हरियाणा व पंजाब को आपस में बैठाकर बातचीत के जरिये कोई समाधान निकाले। यदि दोनों राज्य इस मामले पर आपसी सहमति कायम नहीं कर पाएंगे तो सुप्रीम कोर्ट खुद आदेश जारी करेगा, क्योंकि हरियाणा के हक में पहले ही फैसला सुनाया जा चुका है। अब सिर्फ डिक्री को लागू करने की बात है, जिस पर पंजाब ने पेच फंसा रखा है। पहले तो पंजाब बातचीत के लिए तैयार नहीं हुआ था, लेकिन जब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पहल की तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह वचरुअल वार्ता की टेबल पर आने को तैयार हुए। केंद्र सरकार की ओर से मध्यस्थ की भूमिका केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत व राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया ने निभाई।

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का नजरिया भी बैठक में चौंकाने वाला नहीं था। उन्होंने बड़े ही नरम लहजे में यह दोहाराया कि पंजाब के पास देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है और उसे यमुना से अपने हिस्से का पानी चाहिए। इसके जवाब में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जो दलीलें दीं, उससे पंजाब को आखिरकार यही कहना पड़ा कि पहले वह अपने प्रदेश के तमाम राजनीतिक दलों को भरोसे में लेंगे, उसके बाद किसी नतीजे पर पहुंचेंगे। हालांकि कैप्टन के इस जवाब को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जा सकता, क्योंकि हरियाणा के साथ तमाम जल समझौते रद करने का 2004 का फैसला उन्हीं की कांग्रेस सरकार का था। इसलिए अब उनसे बहुत ज्यादा सकारात्मक रुख की उम्मीद नहीं की जा सकती। आखिरकार उन्हें भी अपने प्रदेश को जवाब देना है, लेकिन यही बात हरियाणा के संदर्भ में भी लागू होती है। मनोहर लाल को भी एसवाइएल नहर बनाने का अपने प्रदेश की जनता से किया वादा निभाना है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जिस तरह एसवाइएल नहर के निर्माण के लिए अपनी कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक तैयारी पूरी कर रखी है, उसे देखकर लग रहा है कि हरियाणा किसी भी मोर्चे पर न तो पीछे हटने वाला है और न ही नहर निर्माण के साथ-साथ अपने हिस्से के पानी पर दावेदारी कम करने वाला है।

साढ़े चार दशक के लंबे अंतराल के बाद हरियाणा को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एसवाइएल नहर के निर्माण तथा उसमें पानी आने की आस जगी है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को मनोहर लाल ने बातों ही बातों में ऐसे तमाम संकेत दिए जिनका मतलब साफ है कि हरियाणा किसी सूरत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत एसवाइएल नहर पर किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है। यानी उसे नहर भी चाहिए और उसमें पूरा पानी भी।

मनोहर लाल ने वार्ता की टेबल पर दो टूक कह दिया कि एसवाइएल का निर्माण और पानी की उपलब्धता दो अलग-अलग मुद्दे हैं और एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं। नहर में पानी तभी आएगा, जब नहर बनकर तैयार होगी। इसलिए पहले नहर बननी चाहिए। उसमें पानी की बात बाद में हो सकती है। वर्ष 1981 के समझौते के अनुसार पानी की वर्तमान उपलब्धता के आधार पर राज्यों को पानी का आवंटन किया जाना है। इसका मतलब साफ है कि यदि नहर बन जाती है तो यह हरियाणा की सबसे बड़ी जीत होगी।

[स्टेट ब्यूरो चीफ, हरियाणा]