मुकुल श्रीवास्तव। कोरोना काल बहुत से बदलाव का वाहक बना। ऐसे वक्त में जब कुछ समय के लिए देश लगभग रुक सा गया था, लोगों ने समय बिताने के लिए इंटरनेट पर नए नए तरीके तलाशे। ज्यादातर तस्वीरों और वीडियो से भरे रहने वाली सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इन दिनों आवाज यानी साउंड का भी जोर बढ़ा और स्ट्रीमिंग में भी एक विकल्प के तौर पर आवाज के जादू से भी लोग परिचित हुए। देश में लोगों ने संगीत सुनने के लिए रेडियो और टीवी पर परंपरागत रूप से भरोसा किया है। अब समय बदल रहा है। लोग संगीत स्ट्रीमिंग सेवाओं का उपयोग करने लगे हैं।

इंटरनेट पर ऑडियो फाइल को साझा करना पॉडकास्ट के नाम से जाना जाता है। पॉडकास्ट दो शब्दों के मिलन से बना है, जिसमें पहला है, प्लेयेबल ऑन डिमांड (पॉड) और दूसरा ब्रॉडकास्ट। एक शोध के अनुसार, वर्ष 2016 में अमेरिका में पॉडकास्ट (इंटरनेट पर ध्वनि के माध्यम से विचार या सूचना देना) के प्रयोगकर्ताओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे वर्ष 2020 तक पॉडकास्टिंग से होने वाली आमदनी 50 करोड़ डॉलर के करीब पहुंच जाएगी। पॉडकास्टिंग की शुरुआत हालांकि एक छोटे माध्यम के रूप में हुई थी, परंतु धीरे धीरे यह एक संपूर्ण डिजिटल उद्योग का स्वरूप धारण करता जा रहा है।

भारत में पॉडकास्टिंग के जड़ें न जमा पाने के कारण हैं, ध्वनि के रूप में सिर्फ फिल्मी गाने सुनने की परंपरा और श्रव्य की अन्य विधाओं से परिचित नहीं हो पाना। देश में आवाज के माध्यम के रूप में रेडियो ने टीवी के आगमन से पहले अपनी जड़ें जमा ली थीं, पर भारत में यह संगीत का पर्याय बनकर रह गया और टॉक रेडियो में बदल नहीं पाया है। तथ्य यह भी है कि सांस्कृतिक रूप से एक आम भारतीय का समाजीकरण सिर्फ फिल्मी गाने और क्रिकेट कमेंट्री सुनते हुए होता है जो पारंपरिक रेडियो से शुरू होकर निजी एफएम स्टेशन होते हुए इंटरनेट की दुनिया तक पहुंची है। अब यह परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। वर्तमान में, भारत के लगभग 50 करोड़ इंटरनेट यूजर्स में से केवल चार करोड़ ही पॉडकास्ट सुनते हैं। हालांकि यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2018 में, भारत में पॉडकास्ट के श्रोताओं में लगभग 60 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, जिस कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।

ऑनलाइन मंचों पर पहले से ही करीब 98 प्रतिशत एप स्क्रीन टाइम के लिए लड़ रहे हैं। स्वयं को सबसे बेहतर दिखाने की होड़ लगी है। ऑनलाइन म्यूजिक और पॉडकास्ट स्ट्रीमिंग बाजार काफी तेजी से बढ़ रहा है। मूल रूप से लक्षित मेट्रो शहरों के बाद देश में म्यूजिक स्ट्रीमिंग एप अब टियर टू और थ्री शहरों में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। दरअसल आंकड़े भी इस तथ्य को पूरा समर्थन देते हैं, जैसा कि पिछली दीपावली पर जारी रिपोर्टो में बताया गया कि बिहार में सबसे ज्यादा त्यौहार आधारित म्यूजिक स्ट्रीमिंग का चलन नजर आया और अब ऑडियो और म्यूजिक स्ट्रीमिंग की इस बढ़ते बाजार में अपनी हिस्सेदारी को भी जगह दिलाने के मकसद से मुंबई स्थित एक पॉडकास्ट स्टार्ट-अप ने भी क्षेत्रीय भाषाओं में पॉडकास्ट और लंबे समय के ऑडियो कंटेंट के साथ कदम रखा है।

यह स्टार्ट-अप एक पॉडकास्ट मंच है जो श्रोताओं को नए, उभरते और विविध ऑडियो कंटेंट की खोज करने और रचनाकारों के साथ जुड़ने की अनुमति देकर पारंपरिक रेडियो को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। आज यह कहना गलत नहीं होगा कि ऑडियो स्ट्रीमिंग भारत में पहले की तरह बढ़ रही है। वास्तव में, भारतीय ऑडियो सामग्री के लिए इतने भूखे हैं कि वे संगीत सुनने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो-स्ट्रीमिंग साइट यूट्यूब का उपयोग कर रहे हैं। जैसे-जैसे इंटरनेट और स्मार्टफोन की पैठ बढ़ती जा रही है, विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक ऑडियो सामग्री लेने वाले मिल जाएंगे।

हालांकि पॉडकास्ट शब्द भारत के लिए नया है, लेकिन देश पॉडकास्टिंग की अवधारणा से काफी परिचित है। रेडियो और समाचार प्रकाशकों जैसे पारंपरिक चैनलों ने भारत में पॉडकास्ट को सबसे पहले प्रोत्साहित किया। संगीत स्ट्रीमिंग सेवा गाना हाल ही में देश में 15 करोड़ से अधिक मासिक यूजर्स वाली पहली संगीत सेवा बन गई। जियो सावन के भारत में 10 करोड़ से अधिक सक्रिय यूजर्स हैं। वर्ष 2016 में रिलायंस के जियो सिम की शुरुआत के बाद मोबाइल डाटा की कीमतों में भारी गिरावट आई, जिससे यूजर्स इस एप को आसानी से प्राप्त करने लगे। अब हालत यह है कि भारत में ऑडियो बूम हर महीने 35 लाख की रफ्तार से बढ़ रहा है।

भारत में इसके तीन-चौथाई श्रोता 18 से 34 वर्ष आयु वर्ग में आते हैं। बच्चों के पॉडकास्ट भी अच्छा कंटेंट पेश कर रहे हैं। भक्ति श्रेणी में भगवद्गीता और रामायण व महाभारत जैसे महाकाव्य भी उपलब्ध हैं इसमें। भारत जैसे देश में ध्वनि व्यवसाय के लिए संभावनाएं कितनी हैं, इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि देश में भले ध्वनि समाचारों के लिए आकाशवाणी का एकाधिकार है, पर सरकार इसको निकट भविष्य में प्राइवेट रेडियो एफएम के साथ साझा करने के मूड में नहीं दिखती। ऐसे में रेडियो का विचार और मानवीय अभिरुचि विषयक कंटेंट का क्षेत्र व्यवसाय के रूप में खाली पड़ा है। पॉडकास्ट उस खालीपन को भर कर देश के ध्वनि उद्योग में क्रांति कर सकता है और रेडियो संचारकों को अपनी बात नए तरीके से कहने का विकल्प दे सकता है।

[प्रोफेसर, लखनऊ विश्वविद्यालय]