कैप्टन अमरिंदर सिंह। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करने और करतारपुर कारिडोर को पुन: खोले जाने से यह प्रकाश पर्व विशेष बन गया। किसानों और कृषि सेक्टर के कल्याण की चिंता करने वाले सभी लोग इस एलान का जरूर स्वागत करेंगे। यह देश में पिछले कई महीनों से बने हुए अशांत माहौल को भी शांत करेगा, जिसे देखकर हम सब दुखी होते रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के निर्णय ने यह साबित कर दिया है कि वह जनमत की आवाज को सुनते हैं। कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए न तो उन्होंने कोई शर्त रखी और न ही कोई समय सीमा, बल्कि एक साथ खत्म करने का दृढ़ फैसला लिया। याद रखें प्रधानमंत्री ने खुद इसकी घोषणा की है। किसी दूसरे को यह जिम्मेदारी नहीं दी, जबकि वह किसी अन्य को भी इसकी घोषणा करने के लिए कह सकते थे या फिर संसद में इसे वापस लेने की बात कहलवा सकते थे। इससे साफ होता कि यह कदम उन्होंने बिना किसी राजनीतिक लाभ-हानि को ध्यान में रखकर उठाया है। इसे प्रधानमंत्री के झुकने या कमजोरी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। लोकतंत्र में लोगों की बातों को सुनने से बढ़कर और कुछ भी नहीं होता है। जो इसके आधार पर फैसला करता है वही असली नेता होता है।

कृषि कानूनों का जबसे विरोध शुरू हुआ था, तभी से समाज में एक प्रकार की कटुता बढ़ रही थी। यह देश के लिए सही नहीं था। देश के दुश्मन इसे अवसर के रूप में देखने लगे थे। पाकिस्तान जैसे देश भारत के खिलाफ अपने छद्म युद्ध को आगे बढ़ाने के लिए देशभक्त किसानों के कंधे का इस्तेमाल करने की रणनीति बना रहे थे। प्रधानमंत्री के इस एक कदम ने उनके कुटिल मंसूबों को ध्वस्त कर दिया है। व्यापक स्तर पर देखा जाए तो यह समय राजनीति करने का नहीं है, विशेष रूप से तब जब मामले किसानों से संबंधित हों। हमारे किसान ही हमारे देश के अन्नदाता हैं। इसलिए मैं सभी लोगों से यह आग्रह करता हूं कि अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए सिख आस्था का प्रयोग नहीं करें। इस संदर्भ में हमें पिछली सदी के नौवें दशक की यादों और उनसे मिले घावों को याद करना होगा। फिर भी यदि इस तरह के मामलों पर कोई राजनीति करता है तो जनता उसे सबक सिखाएगी।

प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार से कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की है, उस तथ्य को सिखों ने समझा है। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसी घोषणा एक विशेष दिन की गई। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में श्री गुरु नानक देव जी और श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की वाणी का उल्लेख किया। उनके संबोधन में क्षमाभाव की झलक दिखाई दी। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सिख समुदाय से वह बेहतर संपर्क कायम करने का प्रयास कर रहे हैं। इस घोषणा से महज कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री ने सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कारिडोर भी खोल दिया। पिछले वर्ष इस दिन वे दिल्ली में दो गुरुद्वारों में माथा टेकने गए थे। अफगानिस्तान से श्री गुरु ग्रंथ साहिब को वापस लाने की घटना से कौन सिख ऐसा होगा जिसने सुखानुभूति नहीं की होगी।

देश के सिख पक्के देशभक्त हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए पूरी ताकत से मुगलों और ब्रिटिश लोगों का मुकाबला किया। भारत में सिख राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री, सेना प्रमुख जैसे पदों पर रहे हैं। इनमें से अनेक प्रसिद्ध उद्योगपति-उद्यमी, अभिनेता और कलाकार रहे हैं। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने सिख युवाओं को प्रेम-सद्भावना और समझौते का संदेश दिया है। मैंने हमेशा से कहा है कि सीमावर्ती राज्य होने के नाते यह आवश्यक है कि पंजाब के मामलों में अत्यंत संवेदनशीलता प्रदर्शित की जानी चाहिए और मुङो खुशी है कि ठीक यही काम किया गया।

मुङो आशा है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जिहादी विचारधारा के कारण सिखों और हिंदुओं की दयनीय दशा का भी संज्ञान लिया जाएगा। हाल के समय में तमाम बातें की गई हैं, खासकर मेरी पूर्व की पार्टी की ओर से कि कुछ फैसलों का राजनीतिक असर क्या होगा। मैं ऐसे लोगों को आईना दिखाना चाहता हूं। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध 2019 में शुरू हुआ। इसके बाद दिल्ली के चुनाव हुए, जहां कांग्रेस को दूसरी बार शून्य मिला। इन्हीं लोगों ने कोविड लाकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों की वापसी को भी बड़ा राजनीतिक मसला बनाया था। बिहार वह राज्य है जहां ऐसे प्रवासी कामगारों की अच्छी-खासी संख्या है। वहां कांग्रेस का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि उसका सहयोगी दल राजद सत्ता में नहीं आ सका। इस साल मई में जब कोविड अपने चरम पर था, तब कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस केरल में सत्ता में नहीं आ सकी, जबकि इस राज्य का इतिहास रहा है कि यहां वामपंथी पार्टी और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती हैं। पुडुचेरी में कांग्रेस ने अपनी सत्ता गंवा दी, जबकि बंगाल और असम में उसका सफाया ही हो गया। इतने धक्कों के बाद इन मुद्दों पर अपना रवैया दुरुस्त करने के बजाय कांग्रेस ने पंजाब को अस्थिर करने में कोई कसर नहीं रखी। यह एकमात्र राज्य है, जहां कांग्रेस ने 2017 के बाद से हर चुनाव जीता है। अब कांग्रेस से उलट भाजपा को देखिए। दिल्ली में भाजपा ने अपनी स्थिति बरकरार रखी, बिहार में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और गठबंधन सरकार बनाई। बंगाल में अपनी स्थिति में जबरदस्त सुधार किया और पुडुचेरी में चुनाव जीत लिया। यह सब कृषि कानूनों के विरोध के दौरान हुआ। स्पष्ट है कि यह सही समय है, जब हमें हर फैसले से राजनीतिक मकसद जोड़ना बंद कर देना चाहिए।

जो लोग मुझे जानते हैं वे एक बात दावे के साथ कह सकते हैं कि मैं सीधे बल्ले से खेलता हूं। यही मैंने सेना में सीखा और अपनी आखिरी सांस तक इसका पालन करूंगा। 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार के बाद कांग्रेस छोड़ने वाला मैं पहला व्यक्ति था। सबसे पहले जिन लोगों ने कृषि कानूनों के मसले के शांतिपूर्ण समाधान और यहां तक कि इन्हें वापस लेने की बात की थी उनमें मैं भी शामिल था। राज्य की विधानसभा में भी यह बात कही गई थी और अब जब कृषि कानूनों की वापसी का एलान कर दिया गया है, तो राष्ट्र और अपने अंतरात्मा के प्रति मेरी यह जिम्मेदारी है कि मैं इस फैसले की सराहना करूं। प्रधानमंत्री मोदी ने जो कुछ किया है वह सिख समुदाय के भले के लिए किया है। यही पंजाब और इससे भी अहम देश के हित में है।

(लेखक पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री हैं)