नई दिल्ली [ एनके सिंह ]। मोदी सरकार ने अपने आखिरी पूर्ण बजट में शहरी मध्यम एवं उच्च वर्ग की अपेक्षाओं को लगभग नजरअंदाज करते हुए ग्रामीण भारत पर अपना दांव लगाया है। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात चुनाव के बाद यह अहसास हुआ कि किसानों को नाराज कर वह आगामी आम चुनाव की वैतरणी पार नहीं कर पाएंगे। इसकी एक झलक राजस्थान में दो लोकसभा एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजों से भी मिली। भाजपा की ये तीनों सीटें कांग्रेस ने छीन लीं। अगर उपचुनाव परिणाम बजट के दिन नहीं आए होते तो शायद देश उन्हीं पर चर्चा कर रहा होता। जो भी हो, आम बजट पर दो तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैैं। शहरी माध्यम एवं उच्च वर्ग जहां निराशा जता रहा है वहीं ग्रामीण भारत को एक आस नजर आ रही है।

कृषि के लिए क्रांतिकारी बजट तभी साबित हो सकता है जब किए गए वायदे निभाए जाएं

बजट के गहन विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि उसमें जो घोषणाएं की गई हैं वे ग्रामीण भारत के लिए पिछले कई दशकों से अपेक्षित थीं। कृषि के लिए यह क्रांतिकारी बजट साबित हो सकता है, लेकिन तभी जब जो वायदे किए गए हैैं उन्हें सही से पूरा किया जाए। किसानों के उत्पाद की उचित मूल्य पर खरीद की सरकारी प्रतिबद्धता और 10 करोड़ गरीब परिवारों यानी करीब 50 करोड़ लोगों को पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा सामाजिक सुरक्षा की दिशा में पहली जरूरत थी। कहना न होगा कि इन 10 करोड़ गरीब परिवारों में किसान, मजदूर और निम्न आय वर्ग का बड़ा तबका शामिल होगा, लेकिन यहां एक पेंच है। सरकार ने किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने का जो वायदा इस बजट में किया है वह खरीफ की फसल से लागू होगा और इस साल खरीफ की उपज की खरीददारी लगभग खत्म हो चुकी है। लिहाजा यह योजना अगली खरीफ से ही लागू हो सकेगी यानी आगामी नवंबर के आसपास। अगर मोदी सरकार समय से पहले चुनाव कराती है तो फिर वह अपना वायदा कब पूरा करेगी? जो सरकार की मंशा में विश्वास रखते हैं उनके अनुसार कोई भी सरकार जो चुनाव जीतना चाहती है वह किसानों को नाराज करने का जोखिम मोल नहीं ले सकती।

रबी फसल की खरीददारी पर किसानों के साथ वायदाखिलाफी मोदी सरकार को महंगी पड़ सकती है

अगर सरकार आगामी रबी की फसल के दौरान भी अपने वायदे को पूरा करती है तो एक अनुमान के तहत इस पर कुल खर्च लगभग 60 हजार करोड़ रुपये आएगा। चुनाव पूर्व ऐसा खर्च किसी सरकार के लिए कोई बहुत मुश्किल काम नहीं होना चाहिए। रबी की फसल की खरीददारी आगामी अप्रैल माह से शुरू होनी है और कोई भी वायदाखिलाफी सरकार को बेहद महंगी पड़ सकती है। हालात ऐसे हैैं कि मोदी सरकार किसानों की अनदेखी शायद ही कर पाए।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि बीते चार सालों में किसानों की वास्तविक आय नहीं बढ़ी

यह उल्लेखनीय है कि बजट से पहले सामने आए आर्थिक सर्वेक्षण में साफ तौर पर कहा गया है कि बीते चार सालों से किसानों की वास्तविक आय नहीं बढ़ी है। अच्छा होता कि सरकार को इसका भान पहले ही हो गया होता। पहली बार किसानों के उत्पाद के लिए लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने का संकल्प कृषि और किसानों की बेहतरी की दिशा में एक बड़ा कदम है।

2014 के लोक सभा चुनाव में किसानों के लिए की गईं घोषणापत्र से मोदी मुकर गए

ध्यान रहे कि ऐसा वायदा 2014 के चुनाव के घोषणापत्र में भी किया गया था, लेकिन अगले ही वर्ष सरकार इससे मुकर गई और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में सरकारी पक्ष ने अपनी असमर्थता जता दी। जाहिर है कि विपक्षी दलों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया और किसान भी संशकित हुए। अगर मोदी सरकार 2014 में ही किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने को तैयार हो गई होती तो शायद उसे किसानों की नाराजगी का सामना नहीं करना पड़ता। यही नहीं तब किसानों की बेचैनी इतनी अधिक नहीं बढ़ी होती और शायद उद्योग जगत को मंदी जैसी हालत से भी दो-चार नहीं होना पड़ता। चूंकि सरकार एक बार वायदाखिलाफी कर चुकी है इसलिए उसे इस बार बहुत सतर्कता बरतनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य वास्तव में मिले।

किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने की योजना इसी रबी की फसल से लागू होना चाहिए

चूंकि अगले वर्ष आम चुनाव प्रस्तावित हैैं इसलिए सरकार को कुछ ऐसे जतन करने ही होंगे जिससे इसी अप्रैल से शुरू होने वाले रबी की फसल की खरीददारी के दौरान लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने की योजना लागू हो सके। अगर ऐसा हुआ तो किसानों को पहली बार खेती मुनाफे का सौैदा महसूस होगी। किसानों की फसल का लागत मूल्य तय करने का काम कृषि मूल्य एवं लागत आयोग करता है और वह इसे दो पैमाने के तहत करता है। इन्हें ए-2 और सी-2 नाम से जाना जाता है। स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के अनुसार सी-2 पैमाने पर लागत में किसान और उसके परिवार का श्रम और जमीन की कीमत भी शामिल होती है। अगर यह मान लिया जाए कि सरकार दूसरे प्रावधान यानी ए-2, जिसमें किसान का श्रम और जमीन की कीमत शामिल नहीं होती, के तहत करती है तो भी यह किसानों के लिए एक बड़ी राहत होगी। उदाहरण के तौर पर धान की कीमत सी-2 आधारित फॉर्मूले के अनुसार 1426 रुपये प्रति क्विंटल है और अगर इस पर 50 प्रतिशत बढ़ाकर समर्थन मूल्य तय किया जाए तो धान का समर्थन मूल्य लगभग 2139 रुपये प्रति क्विंटल होगा। इतना ज्यादा मूल्य किसानों को आज तक नहीं मिला। इस गणना को अगर आगामी रबी और खासकर गेहूं की फसल पर लागू किया गया तो गेहूं का समर्थन मूल्य करीब 1900 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा। उत्तर भारत मे बड़े पैमाने पर गेहूं की खेती करने वाले किसानों के लिए यह मूल्य एक तरह से वरदान साबित होगा। देखना है कि ऐसा होता है या नहीं?

ग्रामीणों की बेचैनी को भांप चुके मोदी ने किसानों और गरीबों के लिए अपना पिटारा खोला

प्रधानमंत्री ने जिस तरह बजट के बाद यह स्पष्ट किया लगभग 14.5 लाख करोड़ रुपये ग्रामीण भारत के कल्याण पर खर्च किए जाएंगे उससे साफ है कि वह ग्रामीण इलाके के लोगों की बेचैनी को भांप चुके हैैं। दरअसल सरकार के सामने आगे कुआं-पीछे खाई वाली स्थिति थी। अगर वह मध्यम और उच्च वर्ग को खुश करने के लिए आयकर और कॉरपोरेट कर में अपेक्षित छूट देती तो राजस्व कम आता। कल्याणकारी योजनाओं के लिए खर्च करने का मतलब होता राजस्व घाटे में भारी बढ़ोतरी जो किसी भी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता। दूसरी ओर अगर सरकार किसानों और गरीबों के लिए अपना पिटारा न खोलती तो वे निराश-हताश तो होते ही, नाराज भी होते। मोदी सरकार ने दूसरा विकल्प चुना। इसी के तहत उसने स्वास्थ्य बीमा योजना का प्रावधान रखा। अगर किसी गरीब का पांच लाख रुपये तक का इलाज सरकार की किसी योजना से मुफ्त होने लगे तो यह भारत में सामाजिक सुरक्षा का सबसे बड़ा कदम कहा जाएगा।

किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना दाम देना, स्वास्थ्य बीमा योजना को पूरा करना एक चुनौती है

जिस तरह सरकार किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना दाम देने के मामले में हीलाहवाली नहीं कर सकती उसी तरह स्वास्थ्य बीमा योजना के मामले में भी कोई कोताही नहीं बरत सकती। इन दोनों वायदों को पूरा करना किसी चुनौती से कम नहीं, क्योंकि इसके लिए पूरा तंत्र बनाने और उसके काम की गहन निगरानी करने की भी जरूरत पड़ेगी। सरकार के सामने इस जरूरत को पूरा करने के अलावा अन्य कोई उपाय नहीं।

[ लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैैं ]