नई दिल्ली [ बैजयंत जय पांडा ]। इस साल गणतंत्र दिवस से पहला पखवाड़ा भारत की विदेश नीति को समर्पित रहा। राजधानी दिल्ली में 16 से 18 जनवरी के बीच तीसरे ‘रायसीना डायलॉग’ का आयोजन हुआ। सैकड़ों वैश्विक नीति-निर्माताओं, सरकारी अधिकारियों, कैबिनेट मंत्रियों, भारतीय अधिकारियों, अकादमिक जगत की हस्तियों, निजी क्षेत्र के दिग्गजों और मीडिया के नामचीन लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। इसका आयोजन ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) और विदेश मंत्रालय के संयुक्त तत्वाधान में होता है। इस बार इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया। अब यह भारतीय विदेश नीति का एक प्रमुख आयोजन बन गया है। इसके उद्घाटन सत्र का सार यही रहा कि भारत और इजरायल के बीच रिश्ते और घनिष्ठ होते जा रहे हैं। नेतन्याहू के भारतीय दौरे के बीच ही एक पड़ाव यह भी था। दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने की बाबत उन्होंने दोहराया कि मुकाबले में केवल मजबूत और दमदार प्रतिद्वंद्वी ही अपना अस्तित्व बचा पाता है और ऐसे में आपको मजबूत साथी के साथ ही गठजोड़ करना पड़ता है। जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभाली है तब से भारतीय विदेश नीति में आमूलचूल बदलाव देखने को मिला है। इजरायल के अस्तित्व में आने के बाद वहां का दौरा करने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। भारत इजरायल का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार है जहां दोनों देश अरबों डॉलर के रक्षा सौदों में लगे हैं। दोनों देशों ने परस्पर सामरिक एवं आर्थिक रिश्तों को मजबूती दी है।

अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते नए दौर में दाखिल

अमेरिका के साथ भी भारत के रिश्ते एक नए दौर में दाखिल हुए हैं। अक्टूबर, 2017 में भारतीय दौरे के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा था कि अमेरिका और भारत गहन सामरिक साझेदार के तौर पर उभरे हैं जहां रक्षा संबंधों, आतंक विरोधी अभियान के साथ-साथ ऊर्जा सहयोग में दोनों देशों के रिश्तों में और प्रगाढ़ता आई है। भारत और अमेरिका मालाबार नौसेना युद्धाभ्यास, रक्षा तकनीक एवं व्यापार पहल और आसान आवाजाही एवं ढुलाई के लिए लेमोओ जैसे समझौतों के जरिये काफी करीब आ चुके हैं। उस दौरान टिलरसन ने पाकिस्तान का भी जिक्र करते हुए कहा था कि जो देश अपनी सरकारी नीति में आतंक का इस्तेमाल करते हैं उन्हें मात खाने और बदनामी के अलावा कुछ और हासिल नहीं होगा।

 ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी मदद पर रोक लगा दी

वहीं इस साल के पहले दिन ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ट्वीट के जरिये पाकिस्तान को सन्न कर दिया। उन्होंने कहा कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान अमेरिका को बरगलाता आया है और इस आधार पर उन्होंने पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी मदद पर रोक लगा दी। उन्होंने कहा कि आतंक के खिलाफ संघर्ष में पाकिस्तान ने सिर्फ झूठ और फरेब का सहारा लिया है। ट्रंप ने कहा कि पंद्रह वर्षों के दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर की सहायता दी और उधर पाकिस्तान आतंकियों को सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराता रहा। पाकिस्तान द्वारा अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क पर उचित कार्रवाई में हिचक से यह जाहिर भी होता है।

चीन का मानना है कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान ने बहुत त्याग किया

आतंक को पोषित करने के चलते पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी भर्त्सना हो रही है। आइएसआइएस को हराने के लिए बने वैश्विक गठजोड़ का भी वह हिस्सा नहीं है। दिलचस्प बात यही है कि चीन का नजरिया अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से अलग है। बीजिंग का मानना है कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान ने बहुत त्याग किया है। चीन पाकिस्तान में 52 अरब डॉलर के भारी-भरकम निवेश से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीपीईसी का निर्माण कर रहा है जिसे चीन अपनी महत्वाकांक्षी वन बेल्ट, वन रोड परियोजना का अहम हिस्सा मानता है। वहीं मसूद अजहर जैसे दुर्दांत आतंकी पर प्रतिबंध लगाने की कोशिशों पर भी चीन संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर अड़ंगा डालता रहा है जो आतंकवाद को लेकर उसके रवैये की कलई खोलता है। चीन और पाकिस्तान की बढ़ती गलबहियों पर अमेरिका वक्त-बेवक्त आंखें तरेरता रहता है। जहां उसने पाकिस्तान को दी जाने वाली दो अरब डॉलर की सहायता बंद कर दी तो दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता पर भी कड़ी नजर रखता है।

आतंक की जड़ों ने शांति की फसल को लहलहाने नहीं दिया

शुरुआत में मोदी ने पाकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य करने की कोशिश भी की। इसी कड़ी में वह 2015 में अचानक पाकिस्तान भी गए, लेकिन पाकिस्तान की व्यवस्था में गहराई तक पैठ की हुई आतंक की जड़ों ने शांति की फसल को लहलहाने नहीं दिया और मोदी के दौरे के चंद रोज बाद ही पठानकोट एयरबेस पर हमला हो गया। फिर उड़ी हमले के साथ तो अति ही हो गई जिसके जवाब में भारत ने सीमा पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। अब हम इस आतंक पसंद पड़ोसी को लगातार मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं। जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है तो मुंबई में 26/11 हमले के बाद से हालात काफी सुधरे हैं। तटीय सुरक्षा प्राथमिकता सूची में आई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय तटीय सीमा पुलिस बल की योजना पर काम कर रहा है। साथ ही भारत 2018 तक पाकिस्तान से लगी सीमा पर बाड़ लगाने के साथ ही वहां अत्याधुनिक सीसीटीवी, थर्मल इमेजिंग, नाइट विजन डिवाइस और मॉनिटरिंग सेंसर की व्यवस्था करने जा रहा है। पूरब के साथ जुड़ने में भारत ने लंबी छलांग लगाई है। भारत-आसियान संबंध अपने शिखर पर हैं और यह हमारी विदेश नीति का अभिन्न अंग बन गए हैं। नई दिल्ली में जल्द ही भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के आयोजन से इसमें एक नए अध्याय की शुरुआत होगी। साथ ही आसियान के दस राष्ट्रप्रमुख ही इस बार गणतंत्र दिवस की शोभा भी बढ़ाएंगे। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।

बिम्सटेक दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच एक सेतु की तरह है

बहुस्तरीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग पर बंगाल की खाड़ी देशों की पहल यानी बिम्सटेक की भी अपनी अहमियत है। रायसीना डायलॉग में इससे जुड़े एक सत्र की मैंने अध्यक्षता भी की। बिम्सटेक दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच एक सेतु की तरह है। यह दक्षेस और आसियान के साथ मिलकर क्षेत्र में आतंक विरोधी अभियान में सार्थक भूमिका निभा सकता है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी बिम्सटेक को भारतीय विदेश नीति के बेहद अहम लक्ष्यों को हासिल करने का एक स्वाभाविक विकल्प बता चुकी हैं। इस बीच विदेश मंत्रालय ने कुख्यात लालफीताशाही को खत्म करते हुए ‘मदद’ पोर्टल के रूप में एक सराहनीय पहल भी की है। हमारा कार्यालय समय-समय पर इसके जरिये लोगों की मदद करता है। हाल में ही केंद्रपाड़ा के शशिकांत बिस्वाल को बचाने में यह मददगार रहा। बिस्वाल पश्चिम एशिया में एक कबूतरबाज एजेंट के चंगुल में फंसे हुए थे।

मोदी सरकार की कथनी और करनी पर भी सभी की नजरें लगी हैं
बीते दो हफ्तों में इस साल के लिए विदेश नीति की बुनियाद तैयार कर दी गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले महीनों में क्या होता है। चूंकि अगले आम चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं हैं तो सरकार की कथनी और करनी पर भी सभी की नजरें लगी होंगी। भू-राजनीतिक प्रभाव में प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर उभरने के लिए भारत को अपनी सामरिक ताकत और व्यापक आर्थिक क्षमताओं का निरंतर लाभ उठाते रहना चाहिए।


[ लेखक बीजू जनता दल के लोकसभा सदस्य हैं ]