कुमुद शर्मा। आज पूरी दुनिया कोविड-19 के विश्वव्यापी संकट से जूझ रही है। यह संघर्ष कितना लंबा चलेगा इसकी भविष्यवाणी करने में कोई भी वैज्ञानिक समर्थ नहीं है। तबाही का दूसरा चरण तब शुरू होगा जब कोविड-19 हार जाएगा। सामाजिक, आर्थिक एवं कूटनीति की एक नई विभीषिका सामने आएगी। दुनिया पहले जैसी नहीं रहेगी। राष्ट्रों की निष्ठाएं परिवर्तित हो जाएंगी। वैश्विक व्यापार में रूपांतरकारी संक्रमण होगा।

पीएम मोदी के मानवीय पक्ष की दूसरी तस्वीर : हमारे सामने मूल प्रश्न यह है कि कोरोना से इस युद्ध में भारत की स्थिति कैसी है। नि:संदेह विश्व के अनेक देशों की अपेक्षा भारत की स्थिति बेहतर है। इसका श्रेय भारत के प्रधानमंत्री को है। उनकी प्राथमिकताएं प्रारंभ से ही बिल्कुल स्पष्ट थीं। पहले लोगों की जान बचाना फिर आर्थिक पक्ष। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मानवीय पक्ष की दूसरी तस्वीर तब उभरी जब उन्होंने पाकिस्तान एवं चीन सहित ब्राजील, अमेरिका तथा दक्षिण पूर्व के पड़ोसी देशों को भारत की सेवाएं अर्पित करने की पेशकश की। सार्क देशों को भी मदद के लिए सर्वप्रथम उन्होंने ही अपनी ओर से पेशकश की।

राष्ट्र में एकजुटता का प्रदर्शन करवाना आसान काम नहीं था : मोदी की राजनीति का पैटर्न मानवीय है। कोरोना के विरुद्ध इस युद्ध में उन्होंने विश्व को यह संदेश दिया है कि राजनीति मात्र शासन संबंधी कौशल ही नहीं है, वरन मानवीय कार्य व्यापार का विज्ञान भी है। कथनी और करनी में अंतर न होने के कारण मोदी के आदेश को देश मानता है। समूचा विश्व इस बात का साक्षी बना है कि किस तरह भारत ने प्रधानमंत्री की अपीलों का अनुपालन किया, जबकि भारत की आबादी बहुत अधिक है। इसकी दूसरी जटिलता इस देश का बहुभाषी, बहुनस्ली, बहुधर्मी, बहुजातीय होना है। ऐसे परस्पर विरोधी मत-मतांतरों वाले भारत जैसे राष्ट्र में एकजुटता का प्रदर्शन करवाना आसान काम नहीं था।

समूचा देश पीएम मोदी के समर्थन में खड़ा : कोरोना के खिलाफ सरकार द्वारा छेड़े गए गंभीर अभियान में बेहद क्रूर बाधा पहुंचाने वाली तब्लीगी जमात ने कुछ गंभीर स्थिति उत्पन्न कर दी थी। हालांकि हमारे कोरोना योद्धाओं ने इस मामले को अब तक बेहद कामयाबी से निपटाने का काम किया है। इस बहुधार्मिक देश में लंबे समय तक सरकार में रहनेवाली कांग्रेस पर दृष्टिपात करें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन और कैसे लोग इस पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। पार्टी को गांधी परिवार और उसके निकट समझी जानेवाली एक टीम चला रही है। हताश कांग्रेस दम साधे आत्म-बलिदान की भावना से इस परिवार की मुखापेक्षी बनी हुई है। मात्र छह वर्ष की अल्प अवधि में राष्ट्रीय महत्व के जितने भी निर्णय मोदी सरकार ने लिए कांग्रेस ने उसका घोर विरोध किया। चाहे वह नोटबंदी हो, जीएसटी, जम्मू-कश्मीर में 370 की समाप्ति, मुस्लिम महिलाओं के हक में तीन तलाक की समाप्ति, राफेल सौदा एवं सीएए जैसे जितने भी युगीन महत्व के भविष्यगामी निर्णय हुए, कांग्रेस ने उनका विरोध किया। जबकि समूचा देश इनके समर्थन में खड़ा होकर वर्तमान नेतृत्व को सराह रहा था।

मुसलमानों की धार्मिक समानता : सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून पर मुसलमानों को भड़काने से पूर्व इसी कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में मुसलमानों के लिए सच्चर कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जिन्ना की शब्दावली को दोहराया जिससे देश का विभाजन हुआ था। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट की भाषा एवं शब्दावली भारत के संविधान एवं उसके राष्ट्रीय आंदोलन की मूल भावना के विरुद्ध थी जो मुसलमानों की सामुदायिक भावना को भड़काकर सांप्रदायिकता का ज्वार उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी बनी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और जिन्ना की शब्दावली में अभूतपूर्व समानता है। आरिफ मोहम्मद खां ने अपनी पुस्तक ‘टेक्स्ट एंड कन्टेक्सट’ में इसका विवरण दिया है। वर्ष 1936 में जिन्ना ने कहा था कि मुसलमानों की धार्मिक समानता, चाहे वे किसी भी प्रांत या नस्ल के हों, न केवल समान सांप्रदायिक हितों को पैदा करती है, बल्कि वह दूसरे धर्मों के हितों के विरुद्ध बैरमूलक भी है। इसलिए मुस्लिम जमात अलग राष्ट्र है जिसका अपना एक देश होना चाहिए। ठीक यही बात सच्चर कमेटी ने मुसलमानों के संदर्भ में दोहराई। उसके अनुसार धार्मिक समानता (मुस्लिमों की) में सांप्रदायिक हित दूसरे धर्मों की अपेक्षा भिन्न और स्पष्ट हैं। उन्होंने इसका एक नाम दिया सोशियो रिलीजियस कैटेगरी। आगे उनकी रिपोर्ट कहती है कि मुसलमानों की ‘अस्मिता, सुरक्षा एवं बराबरी का दर्जा’ जैसे तीनों मुद्दे एक दूसरे से संबद्ध हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सच्चर कमेटी की दृष्टि में संविधान एवं लोकतंत्र महत्वपूर्ण नहीं हैं। सच्चर कमेटी की ये बातें देश को एक अलगाववाद की ओर धकेलती हैं।

मोदी ने भारत को इन भयानक स्थितियों से उबारा है। जिस समय उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा था, उस दौर में कई विपक्षी दलों की व्यक्तिवादी, सांप्रदायिक, संकीर्ण एवं भ्रष्टाचार से युक्त राजनीति से संविधान की दीवारें जर्जर हो गई थीं। मोदी ने देश को भ्रष्टाचार, जर्जर राष्ट्रीय सुरक्षा, दिशाहीन विदेश नीति एवं कमजोर मनोबल से उबारा। देशवासियों में राष्ट्रीय स्वाभिमान जगाया। आखिर क्या अंतर है नरेंद्र मोदी और कुछ विपक्ष के नेताओं में? राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके समर्थन के ग्राफ में वृद्धि क्यों हो रही है? इसे सहजता से समझा जा सकता है। मोदी अपने राष्ट्र और संविधान के प्रति दृढ़ आस्था और निष्ठा रखनेवाले नेता हैं। वह संविधान और अदालतों में आस्था रखने के कारण संसदीय बहस का सामना करते हैं। उच्च स्तर के स्वच्छ नैतिक आदर्शों वाली प्रशासनिक व्यवस्था न केवल पसंद करते हैं, बल्कि स्वयं उसका अनुपालन भी करते हैं। वह राष्ट्र की समस्याओं को समाधान के लिए राजनीतिक यात्राओं में परिवर्तित कर देते हैं तथा उनके निर्णयों में आकस्मिकता होती है।

[प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]