[ ब्रिगेडियर आरपी सिंह ]: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय सऊदी अरब दौरे पर हैं। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार इस दौरे के साथ ही उन्हें अंकारा भी जाना था, मगर अब ऐसा नहीं होगा। पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के कश्मीर पर बिगड़े बोल से कुपित पीएम मोदी ने अपना तुर्की दौरा रद कर दिया। एर्दोगन ने न केवल कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध किया, बल्कि चीन और मलेशिया के साथ मिलकर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को काली सूची में जाने से भी बचाया।

तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के कश्मीर पर बिगड़े बोल से कुपित पीएम मोदी का तुर्की दौरा रद

मानों इतना ही काफी नहीं था, एर्दोगन ने यह भी कहा कि वह आगे भी वैश्विक मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाते रहेंगे। मोदी के तुर्की दौरे का मकसद था दोनों देशों के रिश्तों को एक नया आयाम देना, लेकिन एर्दोगन की बदजुबानी ने इस मुहिम को परवान चढ़ने से पहले ही फुस्स कर दिया। इससे पहले तक भारत-तुर्की संबंधों में सब कुछ सही दिख रहा था। बीते पांच वर्षों में मोदी और एर्दोगन तीन बार मुलाकात कर चुके हैं ।

मोदी सरकार मलेशियाई प्रधानमंत्री से खफा

भारत सरकार मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद से भी खफा है। उन्होंने भी कश्मीर में भारत के कदम की आलोचना करते हुए उसे पाक के साथ मिलकर मसला सुलझाने की वकालत की। इससे नाराज सरकार मलेशिया से पाम ऑयल आयात बंद करके इंडोनेशिया, अर्जेंटीना या यूक्रेन जैसे किसी अन्य देश से मंगाने पर विचार कर रही है।

भारत के इतिहास में मिसाल मिलना मुश्किल

प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने कूटनीतिक, राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक, वाणिज्यिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक ताकत का इतना बखूबी इस्तेमाल किया है जिसकी स्वतंत्र भारत के इतिहास में मिसाल मिलनी मुश्किल है। शासन कला में व्यापार एवं वाणिज्य बेहद अहम पहलू होते हैं। तुर्की और मलेशिया के मसले को मोदी ने सही तरीके से संभाला। इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है। दोनों जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है और पड़ोसियों के साथ तनातनी के चलते सुरक्षा के मोर्चे पर भी हालात सही नहीं हैं। ऐसे परिदृश्य में भारत के साथ रिश्तों को तल्ख बनाना इन देशों के लिए कूटनीतिक रूप से समझदारी नहीं कही जा सकती।

तुर्की की भौगोलिक स्थिति

तुर्की का क्षेत्रफल, 7,83,562 वर्ग किलोमीटर है। इस लिहाज से वह भारत के तकरीबन पांचवें हिस्से के बराबर है, मगर वह चार प्रमुख चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों- बाल्कन, कॉकेशस, पश्चिम एशिया और फारस की खाड़ी के बीच स्थित है। एनाटोलियन प्रायद्वीप पर तुर्की काला सागर, भूमध्य सागर और एजियन सागर से घिरा है। एनाटोलिया ऐसा केंद्रीय बिंदु है जिसकी धुरी पर एशिया, यूरोप और अफ्रीका महाद्वीप मिलते हैं। वैश्वीकरण के अलावा इन क्षेत्रों में अमेरिकी सैन्य गतिविधियों और संघर्षरत देशों के साथ तुर्की की नजदीकी उसकी अहमियत और बढ़ा देती हैं।

मलेशिया की भौगोलिक स्थिति

3,28,550 वर्ग किलोमीटर में फैला मलेशिया भारत के लगभग दसवें हिस्से के बराबर है। यह दक्षिणपूर्व एशिया में मुख्यभूमि से लेकर द्वीप समूहों तक एक प्रमुख भू-रणनीतिक पट्टी के रूप में स्थित है। दक्षिणपूर्व एशिया के मलय प्रायद्वीप के दक्षिणी बिंदु पर मलेशिया प्रायद्वीप है जबकि पूर्वी मलेशिया बोर्नियो द्वीप पर है जहां से दक्षिण चीन सागर 600 किलोमीटर दूर है। इसके साथ लगे मलक्का स्ट्रेट के माध्यम से पूर्व और पश्चिम के बीच अधिकांश व्यापार होता है जिसके किनारे मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर के बीच विभाजित हैं। इन सभी के एक दूसरे से तल्ख रिश्ते हैं। एक उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत इन दोनों क्षेत्रों में एक अहम अंशभागी है। ऐसे में वह अपने आंतरिक मामलों पर तीखी टिप्पणियां नहीं पचा सकता।

1923 में खलीफा शासन की समाप्ति के बाद हुआ गणतंत्र घोषित

तुर्की के राष्ट्र निर्माता मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने अपने देश को आधुनिक बनाने के मकसद से 29 अक्टूबर 1923 को खलीफा शासन की समाप्ति का एलान कर तुर्की को गणतंत्र घोषित किया। इसके साथ ही वहां धर्मनिरपेक्षता, लैंगिक समानता और आधुनिकता का मार्ग प्रशस्त हुआ। तुर्की ने शरीया कानूनों को आधिकारिक दायरे से बाहर रखकर मुस्लिम बहुल देशों में अपने लिए एक अलग पहचान गढ़ी, लेकिन एर्दोगन अब उसी पहचान को मिटाने पर तुले हैं। हालांकि वहां अभी तक धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक ढांचा कायम है, लेकिन उनके राज में तुर्की के हालिया घटनाक्रम खतरनाक बदलावों की ओर संकेत करते हैं।

तुर्की के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर सवालिया निशान

तुर्की ने बीते 9 अक्टूबर को सीरिया में अपनी सैन्य तैनाती को ‘जिहाद’ करार दिया जिससे इस देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर सवालिया निशान लगते हैं। सरकारी धार्मिक मामलों के निदेशालय ने तुर्की की सभी 90,000 मस्जिदों को लाउडस्पीकरों से उस संदेश के प्रसारित करने का आदेश दिया जो इस्लाम की निंदा पर हिंसक होने के लिए उकसाने वाली कवायद है। तुर्की के समाज पर शरीया को थोपने के लिहाज से यह अहम पड़ाव है।

तुर्की में इस्लाम की आलोचना करना अपराध है

एर्दोगन सरकार ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित किया है। इस्लाम की निंदा या उसके उचित अनुपालन न होने पर कड़ाई की जा रही है। तुर्की राष्ट्रीय पुलिस नवंबर 2017 से धार्मिक टिप्पणियों की ऑनलाइन निगरानी कर रही है और उसे जहां भी इस्लाम पर कोई टिप्पणी खटकती है तो वह तुरंत कार्रवाई करती है। सार्वजनिक रूप से इस्लाम की आलोचना अपराध बन गई है। सोशल मीडिया में इस्लाम पर नकारात्मक टिप्पणियों या हास-परिहास को लेकर लोगों पर मुकदमें चलाए जा रहे हैं।

तुर्की ने सीरिया से लगी सीमा पर कुर्दों के खिलाफ हमला बोला

तुर्की ने इसी महीने की शुरुआत में सीरिया से लगी सीमा पर कुर्दों के खिलाफ हमला बोल दिया। तुर्किश वायु सेना ने सीमावर्ती इलाकों पर बम बरसाए। इसके चलते 1,30,000 लोग विस्थापन के लिए मजबूर हुए। वहीं सीरिया में करीब 70 नागरिकों की जान चली गई तो तुर्की में भी 20 लोग मारे गए। एर्दोगन की विदेश नीति को नियो-ऑटोमन नीति कहा जा रहा है। वहां सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान तुर्की-सीरिया सीमा पर सीरियन-कुर्दिश पीपल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स को ताकत हासिल करने से रोकने पर जोर दिया जा रहा है। इसमें बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। भारत को भी मानवाधिकारों के ऐसे उल्लंघन के मुद्दे को मुखरता से उठाने से नहीं हिचकना चाहिए।

भारतीय व्यापारियों का मलेशियाई पाम ऑयल के बहिष्कार का फैसला

मोदी सरकार मलेशिया को भी अपनी नाखुशी को लेकर सख्त संदेश देना चाहती है। इसी सिलसिले में राष्ट्रीय भावनाओं को समझते हुए भारतीय व्यापारियों ने मलेशियाई पाम ऑयल के अघोषित बहिष्कार का फैसला किया। बीते शुक्रवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मलेशियाई विदेश मंत्री सैफुद्दीन अब्दुल्ला को अपने सख्त रुख से अवगत कराया। भारत विश्व में खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक है। ऐसे में अगर वह दूसरे देशों से आयात की संभावनाएं टटोलेगा तो मलेशिया को इसका भारी खामियाजा भळ्गतना पड़ेगा।

भारत दोस्ताना रिश्तों को निभाने में एक कदम आगे चलने को तैयार

भारतीय कूटनीतिक तंत्र ने पूरी दुनिया को एक स्पष्ट संदेश दिया है कि दोस्ताना रिश्तों को निभाने में वह एक कदम आगे चलने को तैयार है, लेकिन अपने आंतरिक मामलों में किसी का दखल उसे बर्दाश्त नहीं होगा।

( लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं )