[नित्यानंद राय]। ऑस्ट्रेलिया के वरिष्ठ राजनीति विज्ञानी प्रो. आरएस पारकर ने अपने एक बहुचर्चित लेख ‘जिम्मेदार सरकार के निहितार्थ’ (मीनिंग ऑफ रिस्पांसिबल गवर्नमेंट) में ‘जिम्मेदार नेतृत्व’ के चार जरूरी गुण बताए हैं : निश्चय, निष्ठा, निष्पक्षता और निरंतरता। साथ ही एक ‘जिम्मेदार सरकार’ की पहचान के लिए चार सवाल सुझाए हैं : सरकार के कार्यों के लिए कौन जिम्मेदार है? वह किन-किन कार्यों के लिए जिम्मेदार है? सरकार किसके प्रति जवाबदेह है? और सरकार अपनी जवाबदेही का निर्वाह किस रूप में कर रही है? पिछले पांच वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ‘जिम्मेदार नेतृत्व’ और ‘जिम्मेदार सरकार’ के इन सभी पैमानों पर खरी उतरी है। नरेंद्र मोदी के दृढ़ निश्चय, स्पष्ट नीति, साफ नीयत और निर्णयकारी नेतृत्व के परिणामस्वरूप एनडीए सरकार सभी धर्मों, वर्गों और समुदायों के गरीबों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में सफल हुई है। आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसद आरक्षण देने की ऐतिहासिक पहल को भी इसी के आईने में देखा जाना चाहिए।

मोदी सरकार द्वारा 124वें संविधान संशोधन की पहल सभी धर्मों और समुदायों के सामान्य श्रेणी में शामिल उन करोड़ों गरीब परिवारों के सशक्तीकरण के लिए है जो पीढ़ियों से निर्धनता का अभिशाप भोगने को अभिशप्त थे। खास बात यह भी है कि इसके लिए दलितों- आदिवासियों और पिछड़ों के मौजूदा 49.5 प्रतिशत आरक्षण से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है। सरकार ने आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण के अनुरूप शैक्षणिक संस्थानों में सीटों की संख्या 25 प्रतिशत तक बढ़ाने का फैसला किया है। इससे यह फैसला सभी धर्मों- वर्गों के युवाओं के लिए हितकर साबित हुआ है। इस ठोस पहल से निर्धन परिवारों के करोड़ों युवाओं में नई ऊर्जा का संचार हुआ है।

सामान्य श्रेणी के गरीबों के लिए आरक्षण की मांग कई दशकों से की जा रही थी। वर्ष 1990 में वीपी सिंह सरकार द्वारा अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान के बाद इस मांग ने जोर पकड़ा था। तब विभिन्न छात्र-युवा संगठनों ने राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन किया था। इससे देश में बने अविश्वास के माहौल को शांत करने के लिए 1991 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने गरीब सवर्णों को भी आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया था। जो लोग इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट की पीठ द्वारा खारिज कर दिए जाने की दुहाई दे रहे हैं वे यह नहीं बताते कि नरसिंह राव सरकार ने इसे ‘कार्यालयी ज्ञापन’ के जरिये लागू कर दिया था। इस प्रावधान के 1992 में खारिज हो जाने के बाद से सामान्य श्रेणी के गरीब खुद को ठगा सा महसूस कर रहे थे। फिर 2006 में यूपीए सरकार ने रिटायर्ड मेजर जनरल एसआर सिन्हा के नेतृत्व में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया।

आयोग ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी जिसमें आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान कर उनके कल्याण के लिए कदम उठाने की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट में 2001 की जनगणना और 2004-05 के एनएसएसओ सर्वेक्षण का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि सामान्य वर्ग के 18.2 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवन यापन कर रहे हैं। सामान्य वर्ग के 35.3 प्रतिशत जबकि ओबीसी के 39.1 प्रतिशत लोग भूमिहीन हैं। कुछ राज्यों में सामान्य श्रेणी और ओबीसी की निरक्षरता दर भी ‘लगभग समान’ है। लेकिन तत्कालीन मनमोहन सरकार ने राजनीतिक नुकसान के डर से उस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। अब मोदी सरकार ने सिन्हा कमेटी की सिफारिशों के आलोक में 124वें संविधान संशोधन की ठोस पहल कर

‘सबका साथ सबका विकास’ के प्रति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है। साथ ही साबित किया है कि भारतीय राजनीति में अटकाने, लटकाने और भटकाने का दौर अब समाप्त हो गया है।

गरीबों के कल्याण के लिए मोदी सरकार ने पिछले पांच वर्षों में कई बड़े कदम उठाए हैं। यूपीए सरकार के जमाने में 11 राज्यों के 32 करोड़ लोगों को ही ‘अन्न सुरक्षा योजना’ का लाभ मिल रहा था, मोदी सरकार ने इसे सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया। अब 80 करोड़ लोगों को इसका लाभ मिल रहा है। गरीब परिवारों को दो रुपये प्रति किलो की दर से गेहूं और तीन रुपये प्रति किलो की दर से चावल दिया जा रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार 22 से 27 रुपये प्रति किलो तक अपनी ओर से दे रही है। भ्रष्टाचार मुक्त शासन के वादे के अनुरूप डीबीटी के माध्यम से 431 योजनाओं के चार लाख करोड़ रुपये सीधे गरीबों के खाते में पहुंच रहे हैं। इसके लिए ‘जन-धन योजना’ के तहत 32 करोड़ गरीबों के बैंक खाते खोले गए। ‘मनरेगा’ पर खर्च 2014 में 27 हजार करोड़ रुपये से बढ़ा कर 2018 में 54 हजार करोड़ रुपये किया गया है। इसकी न्यूनतम मजदूरी में 42 फीसद की वृद्धि के ऐतिहासिक फैसले से 60 लाख मजदूरों को सीधे तौर पर लाभ मिला है।

‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ के तहत गरीबों को आवास के लिए पहले 70 हजार रुपये मिलते थे, जिसे इस सरकार ने डेढ़ लाख रुपये कर दिया है। ‘आयुष्मान भारत योजना’ के तहत 50 करोड़ लोगों को आरोग्य का लाभ मिला है। विभिन्न छात्रवृत्तियों में 50 फीसद की वृद्धि की गई है। 27 लाख आंगनबाड़ी कर्मचारियों और डेढ़ लाख आशा कर्मियों के पारिश्रमिक में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। यह सूची काफी लंबी है और इसमें अब आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण भी जुड़ गया है।

‘भूराबाल साफ करो’ नारे के साथ जातीय नफरत की राजनीति करने वाले राष्ट्रीय जनता दल को यह पहल नागवार गुजरी है। संसद में संविधान संशोधन विधेयक को मिले अपार बहुमत के बीच इस दल का चेहरा बेनकाब हो गया है। लेकिन समाज को बांट कर कोई भी देश विकास के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता। हमें नहीं भूलना चाहिए कि पिछड़े वर्गों के लिए संवैधानिक आयोग बनाने का सपना भी मोदी सरकार ने ही पूरा किया है। सरकार ने ओबीसी समुदाय के कल्याण के लिए बजट में 41 प्रतिशत की वृद्धि की है। दलित और आदिवासी योजनाओं का अलग बजट 95,000 करोड़ रुपये का किया गया है। मोदी सरकार ने बाबा साहब आंबेडकर की जन्म भूमि, शिक्षा भूमि, कर्म भूमि, दीक्षा भूमि और महापरिनिर्वाण भूमि का पंचतीर्थों के रूप में विकास कर भव्य स्मारक बनाए हैं। आंबेडकर इंटरनेशनल संस्थान की शुरुआत भी इसी सरकार ने की है।

आजादी के बाद बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान निर्माण के जरिये दलितों और आदिवासियों को सम्मान से जीने का हक दिया था, सात दशक बाद नरेंद्र मोदी ने 124वें संविधान संशोधन के जरिये उपेक्षा का दंश झेल रहे सामान्य श्रेणी के करोड़ों गरीब परिवारों को भी विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की सराहनीय पहल की है। इससे इन परिवारों की युवा प्रतिभाओं को आगे बढ़ने और हुनर दिखाने के लिए अधिक अवसर प्राप्त होंगे। मुझे विश्वास है कि एक ‘जिम्मेदार नेतृत्व’ का यह ‘साहसिक फैसला’ देश के विकास में मील का पत्थर साबित होगा।

[अध्यक्ष, बिहार भाजपा]