[डॉ. जयंतीलाल भंडारी]। हाल ही में सात सितंबर को मुंबई में तीन नई मेट्रोलाइन की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यदि हम वर्ष 2024 तक देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं तो हमें अपने शहरों को 21वीं सदी के वैश्विक शहरों के मुताबिक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे और रहने योग्य अनुकूलताओं से सुसज्जित करना होगा।

हमें अपने शहरों को वैश्विक जरूरतों के मुताबिक विकसित करना होगा। इससे दुनिया में हमारी धमक बढ़ेगी। इन तमाम पहलुओं के बीच जब हम अपने शहरों की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि हमारे शहर बुनियादी ढांचे और जीवन अनुकूलताओं के मद्देनजर दुनिया के शहरों से बहुत पीछे हैं। हमारे बड़े शहरों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है।

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट
बीते चार सितंबर को इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआइयू) द्वारा प्रकाशित जीवन अनुकूलता सूचकांक (लिवेबिलिटी इंडेक्स) में कहा गया है कि नई दिल्ली और मुंबई जीवन की विभिन्न अनुकूलताओं और रहने की बेहतर परिस्थितियों के मामले में पहले की तुलना में पीछे हो गए हैं। दुनिया भर के 140 शहरों के सर्वेक्षण में नई दिल्ली छह स्थान फिसलकर 118वें तथा मुंबई दो स्थान फिसलकर 119वें पायदान पर रहा। जिन पैमानों पर विवेचना की गई, उनमें स्थिरता, संस्कृति, परिवेश, स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी ढांचा और शिक्षा क्षेत्र को शामिल किया गया था।

वैश्विक शहरों की जरूरत 
ईआइयू के मुताबिक सांस्कृतिक क्षेत्र के अंक में गिरावट के कारण मुंबई रैंकिंग में दो स्थान फिसल गया। वहीं सांस्कृतिक, पर्यावरण स्कोर और अपराध दर में वृद्धि के कारण स्थिरता स्कोर में गिरावट से नई दिल्ली की स्थिति इस सूचकांक में कमजोर हुई है। इस सूची में ऑस्ट्रिया का वियना लगातार दूसरी बार पहले स्थान पर रहा। ऐसे समय जब भारत में तेजी से विकसित होते नए शहरों का परिदृश्य दिख रहा है, तब इनमें नए वैश्विक शहरों की जरूरत के मुताबिक विकास के मापदंडों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। विश्व के प्रतिष्ठित थिंकटैंक ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स द्वारा दुनिया के 780 बड़े और मझोले शहरों की बदलती आर्थिक तस्वीर और आबादी की बदलती प्रवृत्ति को लेकर पिछले दिनों प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2019 से 2035 तक दुनिया के शहरीकरण में काफी बदलाव देखने में आएगा।

वैश्विक शहरों की रफ्तार
रिपोर्ट कहती है कि इस वक्त दुनिया के अधिकांश विकसित शहर जैसे न्यूयॉर्क, टोक्यो, लंदन, लॉस एंजिलिस, बीजिंग, पेरिस, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि अपना दबदबा बनाए रखेंगे। किंतु तेजी से विकसित होते हुए नए वैश्विक शहरों की रफ्तार के मामले में शीर्ष के 20 शहरों में पहले 17 शहर भारत के होंगे और उनमें भी सबसे पहले दस शहर भारत के ही होंगे। इन पहले 10 शहरों में सूरत, आगरा, बंगलुरु, हैदराबाद, नागपुर, राजकोट, तिरुचिरापल्ली, चेन्नई और विजयवाड़ा वास्तव में चमकीले वैश्विक शहरों के रूप में दिखाई देंगे। इसमें दोराय नहीं कि भारत के शहरों में उद्योग-कारोबार का जो विकास हो रहा है, उससे भारत दुनिया के आर्थिक परिदृश्य पर तेजी से उभरता दिख रहा है।

आर्थिक विशेषज्ञों की राय
कुछ आर्थिक विशेषज्ञों की यह भी राय है कि शहरों के कारण ही भारत की वैश्विक काराबोर, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, वैश्विक नवाचार के मामले में विशेष पहचान बनी है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारतीय शहरों में सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नवाचार तथा नई प्रौद्योगिकी के लिए दुनिया की कंपनियां तेजी से कदम बढ़ा रही हैं। अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां नई प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय आइटी प्रतिभाओं के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने के लिए भारतीय शहरों में अपने ग्लोबल इनहाउस सेंटर (जीआइसी) तेजी से बढ़ाते हुए दिखाई दे रही हैं।

विश्वस्तरीय रोजगार के अवसर 
उल्लेखनीय है कि हमारी प्रतिभाएं शहरों में इसलिए रहना चाहती हैं, क्योंकि वहां विश्वस्तरीय रोजगार अवसर सृजित हो रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लेसमेंट सेंटर बनता जा रहा है। भारत के शहरों से विकसित देशों के लिए आउटसोर्सिंग का प्रवाह तेज होता जा रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि यहां व्यावसायिक कार्यस्थल पश्चिमी देशों के मुकाबले काफी कम दरों पर उपलब्ध हैं। यह सही है कि देश में बढ़ते औद्योगीकरण और कारोबारी विकास के कारण भी शहरीकरण की रफ्तार बढ़ रही है। पर क्या उसी अनुपात में सुविधाएं भी बढ़ रही हैं? नहीं। शहरों की बड़ी आबादी मूलभूत चिकित्सा सेवा से भी वंचित है। सड़क, बिजली, पानी के मोर्चे पर भी समस्याएं बढ़ी हैं। बड़ी संख्या में बच्चे उपयुक्त शिक्षा से वंचित हैं।

शहरों के विकास का रोडमैप बनाना
जरूरी है कि शहर सुनियोजित रूप से विकसित हों। शहर आधुनिक बुनियादी सुविधाओं, यातायात व संचार साधनों से सुसज्जित हों। शहरों में विकास की बुनियादी संरचना, मानव संसाधन के बेहतर उपयोग, जीवन की मूलभूत सुविधाओं तथा सुरक्षा संबंधी इंतजाम के लिए सुनियोजित प्रयास जरूरी हैं। हमें नई जरूरतों के मुताबिक शहरों के विकास का रोडमैप बनाना होगा। नए शहरों में सड़कों का उपयुक्त मॉडल अपनाया जाए। नए शहरों को तत्परता से निर्मित करने के लिए सरकार द्वारा आसान कर्ज के साथ-साथ निजी क्षेत्र से निवेश के सार्थक प्रयास किए जाएं। नए शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल उपयुक्त होगा। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मद्देनजर हमें अपने शहरों की चिंता करनी ही होगी।

वैश्विक जरूरतों की पूर्ति करने वाले शहरों के विकास की दृष्टि से भारत के लिए यह अच्छा संयोग है कि अभी देश में ज्यादातर शहरी ढांचे का निर्माण बाकी है और शहरीकरण की चुनौतियों के मद्देनजर देश के पास शहरी मॉडल को परिवर्तित करने और बेहतर सोच के साथ शहरों के विकास का पर्याप्त समय मौजूद है। ऐसे में हमें वियना, मेलबर्न, सिडनी, टोक्यो जैसे वैश्विक गुणवत्तापूर्ण शहरों से सीख लेनी होगी।

शहरों को बेहतर रहन-सहन के लायक बनाने के लिए शासन-प्रशासन के साथ-साथ सभी वर्गों के लोगों को एकजुट प्रयास करने होंगे। बेहतर शहरीकरण के साथ निश्चित रूप से हम अधिक विदेशी पूंजी निवेश आकर्षित कर पाएंगे, अधिक प्रतिभाओं का लाभ ले पाएंगे। हम आशा करें कि केंद्र और राज्य सरकारें हमारे शहरों को सुनियोजित ढंग से बेहतर सोच के साथ संवारेंगी, ताकि ये शहर राष्ट्रीय और वैश्विक जरूरतों की पूर्ति के अनुरूप लाभप्रद दिखाई दें और हमारे लोगों के लिए आर्थिकसामाजिक खुशहाली का जरिया भी बनें।
[वरिष्ठ अर्थशास्त्री]