[ डॉ. एके वर्मा ]: कांग्रेस के नेता और देश के पूर्व वित्त एवं गृह मंत्री पी चिदंबरम की गिरफ्तारी नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार पर तेज होते प्रहार का संकेत है। अपने प्रथम कार्यकाल से ही प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार के प्रति जीरो-टालरेंस की नीति अपनाई, लेकिन 72 वर्षों में भ्रष्टाचार ने गहरी जड़ें जमा ली हैं जो देश की अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह चाट रही हैैं। भ्रष्टाचार में प्रमुख संस्थाओं के अनेक उच्च पदाधिकारी संलिप्त मिले हैं। उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त होता रहा है इसलिए कौन किस पर हाथ डाले? जनता जानती है कि किसी सरकारी दफ्तर में काम कराने के लिए क्या करना पड़ता है? प्राय: तर्क दिया जाता है कि भ्रष्टाचार के लिए जनता भी उतनी ही दोषी है जितने सरकारी अधिकारी और कर्मचारी। सिद्धांतत: यह ठीक है, पर व्यवहार में?

भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम

कल्पना कीजिए कि 60-70 या ज्यादा वर्ष के पेंशनभोगी सरकारी दफ्तर या कोषागार के चक्कर लगा रहे हैं और संबंधित बाबू उन्हें रोज-रोज नई कमियां बता कर टहला रहा है। क्या वे प्रतिदिन आ सकते हैं? गांव के गरीब किसान, मजदूर, महिलाएं किसी दफ्तर में इस टेबल से उस टेबल परेशान हो रहे हों और उनसे अपेक्षा की जाए कि वे बार-बार आएं? मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो मुहिम चलाई है उसके तहत वह राजनीतिक, आर्थिक, प्रशासनिक और सामाजिक भ्रष्टाचार पर एक साथ प्रहार कर रही है, पर आज भ्रष्टाचार का स्वरूप व्यापक और जटिल हो गया है। ऐसी संस्थाएं जिन पर भ्रष्टाचार के निवारण के लिए जनता आश्रित है वे ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।

आदिकाल से भ्रष्टाचार की समस्या

आदिकाल से ही भ्रष्टाचार की समस्या रही है। कौटिल्य ने सरकारी अधिकारियों में भ्रष्टाचार के बारे में कहा था कि जिस प्रकार मछली के लिए पानी का सेवन न करना संभव नहीं, उसी प्रकार सरकारी कर्मचारी भी उस पैसे का सेवन किए बिना नहीं रह सकते जो उनके हाथों से गुजरता है, लेकिन इस प्रवृत्ति पर लगाम तो लगानी ही पड़ेगी और जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, किसी को राजनीतिक नफा-नुकसान की चिंता किए बिना पहल करनी पड़ेगी। साफ-सुथरा प्रशासन शुरू से ही मोदी सरकार की ‘यूएसपी’ रही है। उन्होंने भ्रष्टाचार पर प्रहार के लिए टॉप-डाउन-मॉडल अपनाया है। उन्होंने सर्वप्रथम स्वयं अपने आचरण से एक भ्रष्टाचार-विहीन राजनीतिज्ञ का प्रतिमान पेश किया।

मोदी सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं

मोदी सरकार की नीतियों से कोई सहमत या असहमत हो सकता है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि उन पर या उनकी सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी छवि बेदाग रही, लेकिन उनकी सरकार के कई मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त थे।

राफेल सौदे में भ्रष्टाचार को जनता ने नकारा

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल सौदे में भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार को फंसाने की कोशिश की, लेकिन जनता ने उस झूठ को नकार दिया। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रियों पर भी नकेल कसी और समय-समय पर उन्हें आगाह किया कि भ्रष्टाचार का कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मामला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यही रणनीति उन्होंने शीर्ष-नौकरशाही के प्रति भी अपनाई। एक ओर अफसरों को प्रधानमंत्री से सीधे संपर्क करने का अधिकार दिया तो दूसरी ओर उनकी व्यक्तिगत निगरानी भी की। इसकी ‘हवा’ तेजी से शीर्ष अधिकारियों में फैल गई और उनमें भय समा गया कि उनका भ्रष्टाचार मोदी से छिपा नहीं रह पाएगा।

भ्रष्ट अधिकारी जबरन सेवा मुक्त किए गए

जो अधिकारी भ्रष्टाचार से फिर भी बाज नहीं आए उन्हें सरकार ने जबरन सेवा मुक्त कर दिया। अभी सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज के अधीक्षक स्तर के 22 अधिकारी और जून 2019 में भारतीय राजस्व सेवा के 27 अधिकारी सेंट्रल सिविल सर्विस रूल्स, 1972 के अंतर्गत भ्रष्टाचार के कारण हटाए गए। विगत पांच वर्षों में लगभग ऐसे 300 से अधिक अधिकारी हटाए जा चुके हैं।

‘सुधरो, काम करो और बदलो’ अन्यथा बाहर का रास्ता देखो

मोदी सरकार का फरमान है-रिफॉर्म, परफॉर्म एंड ट्रांसफॉर्म अर्थात ‘सुधरो, काम करो और बदलो’ अन्यथा बाहर का रास्ता देखो, लेकिन जनता के पैसे से खिलवाड़ मत करो। किसी सरकार में ऐसी मजबूती संभवत: पहली बार दिखाई दे रही है। यह कोई अचानक उठाया गया कदम नहीं है। मोदी सरकार ने शुरूसे ही इसके संकेत दिए थे। काला-धन घोषित करने की योजना, विमुद्रीकरण, टैक्स चोरी रोकने के लिए जीएसटी लाना, बिचौलियों को खत्म करने के लिए सब्सिडी को सीधे खाते में ट्रांसफर करने आदि जैसे अनेक कदम मोदी सरकार की इस मुद्दे पर गंभीरता को रेखांकित करते हैैं।

‘भ्रष्टाचार-सूचकांक’ में भारत की स्थिति चीन से बेहतर

इसके कारण ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा तैयार ‘भ्रष्टाचार-सूचकांक’ 2018 में भारत की स्थिति चीन से बेहतर हो गई। 180 देशों की सूची में चीन 87वें स्थान पर चला गया वहीं भारत 78वें स्थान पर पहुंच गया, लेकिन अभी सुधार की बहुत गुंजाइश है। शायद इसीलिए चिदंबरम के विरुद्ध भी कदम उठाने से सरकार हिचकी नहीं। यह कांग्रेस के शीर्ष नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार में लिप्त होने का अनोखा केस है। यह बात और है कि जब भी कोई छोटा-बड़ा नेता कानून के शिकंजे में फंसता है तो वह उसका ठीकरा राजनीतिक विद्वेष पर फोड़ देता है। सोनिया और राहुल गांधी भी भ्रष्टाचार के शिकंजे में हैं। यह है मोदी का टॉप-डाउन-मॉडल। जब टॉप अर्थात शीर्ष राजनीतिज्ञों और अधिकारियों पर लगाम लगेगी तो ‘बॉटम’ अर्थात नीचे वाले अपने आप ठीक हो जाएंगे, लेकिन ऐसी रणनीति तो केंद्र सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों के लिए है और जनता का ज्यादा काम राज्य सरकार के दफ्तरों में अधिकारियों से पड़ता है।

पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार

राज्यों में प्रधानमंत्री की नहीं वरन मुख्यमंत्रियों की चलती है। संभवत: मोदी की रणनीति में राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए भी संदेश छिपा है, पर क्या राज्यों के मुख्यमंत्री भी मोदी जैसे साफ-सुथरे हो सकेंगे? क्या वे भी अपने विधायकों और अधिकारियों पर लगाम लगा सकेंगे? अब तो पंचायत स्तर पर भी भ्रष्टाचार है। पंचायतों को करोड़ों रुपये विकास के लिए केंद्र्र और राज्य से मिलते हैं जिसे ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर पर सरपंच, ब्लॉक-प्रमुख और जिला-पंचायत अध्यक्ष सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उड़ा रहे हैं।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध स्वयं को सिपाही बनाना पड़ेगा

भ्रष्टाचार का फैलाव बहुत है। उसमें गहराई भी बहुत है। इसके विरुद्ध अन्ना हजारे जैसे जन आंदोलन मात्र से काम नहीं चलेगा, प्राइमरी-कक्षा से ही इसके विरुद्ध बच्चों में संस्कार और मूल्य डालने पड़ेंगे। पैसे का लालच तो अंतहीन है, पर यदि हम देश, समाज, परिवार के साथ एकसूत्र में गुंथे हुए आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध स्वयं को सिपाही बनाना पड़ेगा और इसकी अगुआई करने वाले सरकारी, गैर-सरकारी संगठनों एवं जनआंदोलनों का साथ देना पड़ेगा।

( लेखक सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक हैैं )