वैजयंत जय पांडा। Lockdown 2.0: कोरोना के अप्रत्याशित संकट से निपटने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी तन्मयता के साथ जुटे हुए हैं। वह न केवल इससे उपजी स्वास्थ्य आपदा को मात देने के लिए तत्परता से रणनीति बना रहे हैं, बल्कि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन जैसे कड़े कदम उठाने से भी नहीं हिचके। अच्छी बात यह है कि देश की जनता भी उनके संदेश को पूर्णता के साथ आत्मसात करते हुए शारीरिक दूरी और अन्य दिशानिर्देशों का पालन कर रही है।

वहीं जब भी कोरोना वॉरियर्स के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना हो या ऐसे कठिन वक्त में एकजुटता दर्शानी थी तो जनता पूरे मनोयोग से इसका प्रदर्शन करने में जुटी भी। इस बीच लॉकडाउन के दौरान उपजने वाले अवसाद, एकाकीपन और दूसरे कई दुष्प्रभावों से बचाने के लिए भी प्रधानमंत्री अपने संदशों से सकारात्मकता का भाव भर रहे हैं। चूंकि तमाम प्रयासों के बावजूद कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 महामारी का अभी तक कोई उपचार नहीं तलाशा जा सका है तो लॉकडाउन और शारीरिक दूरी ही इससे बचाव की इकलौती प्रभावी रणनीति है।

हालांकि कुछ सकारात्मक बातें भी हैं जैसे जिस संक्रमण ने दुनिया भर में 22 लाख से अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है उसमें बचने की गुंजाइश 80 से 85 प्रतिशत तक है। प्रभावी इलाज तलाशने की दिशा में भी प्रगति हो रही है। जहां तक तैयारियों की बात है तो भारत ने जनवरी से ही इसके लिए कमर कस ली थी जब कई देश इसे गंभीरता से नहीं ले रहे थे। भारत ने तभी इसके लिए एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समूह गठित कर लिया था। इसके बाद से ही पूरा सरकारी अमला हरकत में आ गया था। चीन से आने वाली उड़ानें प्रतिबंधित कर दी गईं। विदेश से आने वाले यात्रियों की हवाई अड्डे पर जांच के साथ ही उन्हें क्वारंटाइन किया जाने लगा। ऐसे तमाम एहतियाती कदमों का दायरा बढ़ता चला गया। हालात के हिसाब से ये तौर-तरीके बहुत कारगर रहे।

इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री ने मार्च में 21 दिवसीय लॉकडाउन का एलान किया। टीवी पर उनके इस संबोधन को करीब 20 करोड़ लोगों ने देखा जिसने दर्शक संख्या का एक अलग रिकॉर्ड बनाया। यह इस महामारी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की सजगता और जनता के बीच उनकी गहरी पैठ को दर्शाता है। देशविदेश में तमाम जानकारों और संस्थाओं ने भारत की इस रणनीति की प्रशंसा की। लॉकडाउन की अवधि के आखिरी दिन 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने इसकी मियाद तीन मई तक बढ़ा दी। ऐसा लॉकडाउन बहुत अप्रत्याशित है, क्योंकि कुछ अनिवार्य सेवाओं को छोड़ दें तो इससे 130 करोड़ की आबादी एक तरह से घरों में कैद हो गई है। इसके असर भी सामने आ रहे हैं। कई छोटे-छोटे देशों के मुकाबले भारत में कोरोना का कहर अपेक्षाकृत सीमित है।

ऐसे किसी भी व्यापक कदम का जनता की भागीदारी के बिना कामयाब होना मुश्किल होता। इसके सुबूत जनता कफ्र्यू के दिन शाम पांच बजे ताली-थाली बजाने से लेकर पांच अप्रैल को रात नौ बजे दीया-मोमबत्ती जलाने के साथ मिल भी गए। भारत के इतिहास में ऐसे तमाम जनांदोलन हुए हैं, लेकिन उनकी प्रकृति मुख्य रूप से राजनीतिक रही है। अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर पहले भी देश की जनता इस कदर एकजुट हुई है। ऐसे आंदोलन अपने नेता की मंशा के विपरीत कुर्छ ंहसक भी हुए हैं। वहीं कोरोना के खिलाफ जंग में कुछ अपवाद छोड़ दिए जाएं तो करोडों भारतीयों ने कमाल की मिसाल कायम की है।

यह कवायद रेखांकित करती है कि भारत में लोकतंत्र भलीभांति काम कर रहा है लोगों का अपनी चुनी हुई सरकार में पूरा भरोसा है। चीन जैसे अधिनायकवादी देश में शारीरिक दूरी के नियमों को सख्ती से लागू किया गया, लेकिन यह लोगों के अधिकारों की परवाह किए बिना ही हुआ। चीन इस वायरस को लेकर समय से सूचनाएं साझा न करने का भी दोषी है। उल्टे संक्रमण के शुरुआती दौर में चीन सरकार ने दमनपूर्वक कार्रवाई कर लीपापोती का काम किया। दूसरी ओर लोकतंत्र में मानवीय जीवन को इस प्रकार प्रभावित किए बिना ही कोई कारगर तरीका तलाश लिया जाता है। हालांकि लोकतंत्र में निर्णय प्रक्रिया कुछ सुस्त होती है और नीतियों का क्रियान्वयन भी कम प्रभावी होता है। ऐसे में दुनिया का सबसे बड़ा और विविधतापूर्ण लोकतंत्र भारत भी इन पहलुओं से अछूता नहीं है। ऐसे मुश्किल वक्त में लोकतंत्र में और निर्णायक नेतृत्व की दरकार होती है जिसका लोगों को समझाने में कोई सानी न हो।

ऐसा जनता में व्यापक लोकप्रियता और संचार के अत्यंत प्रभावी तरीके से ही संभव है और यही प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी खूबियों में से एक है। चाहे चुनाव में अपने लिए वोट मांगना हो या फिर स्वच्छ भारत अभियान जैसे आंदोलन को सफल बनाना, उसके लिए प्रधानमंत्री देश भर से अपने लिए भारी समर्थन जुटाने में सफल रहे हैं। सामाजिक कर्तव्यों के लिए प्रधानमंत्री की तत्परता उन्हें जनसमर्थन जुटाने में बहुत सहायक बनती है। ऐसी कई मिसालें हैं। जैसे जब उन्होंने संसाधन संपन्न लोगों से गैस सब्सिडी छोड़ने का आह्वान किया तो करोड़ों लोगों ने ऐसा किया।

प्रधानमंत्री मोदी की जनता में व्यापक पैठ इस महामारी से उबारने में बहुत मददगार होगी। उनके प्रेरक शब्दों को कारगर नीतियों के अनुपालन के साथ सार्थक बनाया जाना चाहिए। इससे उन लोगों को भी सुधारा जा सकता है जो अभी भी कायदे-कानून तोड़ रहे हैं। यह लड़ाई अभी लंबी चलनी है। हमारे सामने केवल स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौती ही नहीं है। हमें विपुल संसाधन भी चाहिए होंगे। ऐसे में करोड़ों लोगों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए मोदी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक पूरी मुस्तैदी से हरसंभव प्रयास में जुटे हैं। इसी दिशा में किए गए राजकोषीय और मौद्रिक नीति एलान हमारी अर्थव्यवस्था को सहारा देंगे। मुझे विश्वास है कि हम इस आपदा से उबर जाएंगे।

[राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा]