[ पुष्पेंद्र सिंह ]: केंद्र सरकार भले ही अर्थव्यवस्था में तेजी के कुछ लक्षण दिखने का दावा करे, परंतु सच्चाई यही है कि फिलहाल अर्थव्यवस्था सुस्ती की मार से बेजार है। ऐसी स्थिति में तमाम अर्थशास्त्री मानते हैं कि मांग बढ़ाकर इस मंदी को मात दी जा सकती है। चूंकि खपत का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण उपभोग पर निर्भर है तो उसमें निवेश बढ़ाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। इसमें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि यानी पीएम-किसान जैसी योजना निर्णायक साबित हो सकती हैै।

प्रत्येक किसान परिवार को प्रति वर्ष 6,000 रुपये नकद धनराशि देने का प्रावधान

2019 के आम चुनाव से पहले मोदी सरकार ने इस सराहनीय योजना की शुरुआत की थी। इस योजना में प्रत्येक किसान परिवार को प्रति वर्ष तीन बराबर किश्तों में कुल 6,000 रुपये नकद धनराशि देने का प्रावधान किया गया था। वित्त वर्ष 2018-19 के अंतिम चार महीने चली इस योजना के लिए 20,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी। वर्ष 2019-20 में इस योजना के तहत 75,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया गया, परंतु संशोधित अनुमान के अनुसार इसमें से केवल 54,370 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए। पात्र किसानों का धीमी गति से सत्यापन होना इसकी वजह रही।

पीएम-किसान योजना में नौ करोड़ किसान पंजीकृत

पीएम-किसान योजना की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इस योजना में कुल लक्षित लगभग 14 करोड़ किसानों में से अब तक लगभग नौ करोड़ किसानों का ही पंजीकरण हो पाया है। इन नौ करोड़ पंजीकृत किसानों में से लगभग 8.4 करोड़ किसानों को कम से कम एक किश्त मिल गई है, परंतु अब तक बंटी चारों किश्तें केवल 3.1 करोड़ किसानों को ही मिली हैं। किसानों के सत्यापन एवं उनके खातों को आधार से जोड़ने का कार्य अभी चल ही रहा है।

पीएम-किसान योजना के तहत बंगाल में एक भी किसान का नहीं हुआ पंजीकरण

इस योजना में लाभार्थियों की पहचान और पंजीकरण राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, परंतु बंगाल जैसे कुछ राज्यों ने राजनीतिक कारणों से इस योजना में अभी तक अपने एक भी किसान का पंजीकरण नहीं करवाया है, जो वहां के किसानों के साथ एक तरह का अन्याय है। इस योजना में लाभार्थियों के खाते में सीधे नकद राशि हस्तांतरण होने से राशि की बंदरबांट नहीं होती। सब्सिडी केवल पात्रों तक ही सीमित रहती है।

खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए योजना की राशि को चाहते हुए भी नहीं बढ़ सकी

हालांकि खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए हाल में पेश हुए बजट में इस योजना के अंतर्गत दी जाने वाली राशि को 6,000 रुपये से बढ़ाकर 24,000 रुपये प्रति किसान प्रति वर्ष किया जाना चाहिए था। इस राशि को 24,000 रुपये करने से राजकोष पर लगभग दो लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता। यदि इसको वहन करने की केंद्र सरकार की क्षमता नहीं है तो इसमें से आधी धनराशि को राज्य सरकारें वहन कर सकती हैं। कई राज्य सरकारें इससे मिलती-जुलती नकद हस्तांतरण की योजनाएं चला रही हैं, जिन्हें इसमें सम्मिलित किया जा सकता है।

प्रत्येक किसान को 24,000 रुपये मिलने से ग्रामीण क्षेत्रों में क्रय-शक्ति बढ़ने से मांग बढ़ती

प्रत्येक किसान को 24,000 रुपये मिलने से ग्रामीण क्षेत्रों में तत्काल क्रय-शक्ति बढ़ती और खर्च बढ़ने से मांग बढ़ती। मांग बढ़ने से बिक्री बढ़ती, उत्पादन बढ़ता तो रोजगार भी बढ़ता जिससे सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों मदों में और ज्यादा टैक्स मिलता। ग्रामीण क्षेत्रों में इस धन के अतिरिक्त प्रवाह का अर्थव्यवस्था पर एक गुणक प्रभाव भी पड़ता जिससे अर्थव्यवस्था और तीव्र गति से बढ़ती। इस प्रकार से पीएम-किसान पर खर्च की गई अतिरिक्त धनराशि बढ़े हुए टैक्स के रूप में सरकार के पास वापस आ जाती। इससे राजकोषीय घाटा और बढ़ने की आशंका भी नहीं होती, परंतु आगामी वित्त वर्ष के लिए भी पीएम-किसान योजना का बजट केवल 75,000 करोड़ रुपये ही रखा गया है।

यदि पीएम-किसान योजना का बजट आवंटन बढ़ जाता तो अर्थव्यवस्था में मांग तत्काल बढ़ती

पिछले साल घरेलू कंपनियों पर कॉरपोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत करने से सरकार पर लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ा जो आगामी वर्षों में बढ़ता जाएगा। सरकार को आशा थी कि आयकर कम करने से कंपनियां निवेश बढ़ाएंगी, परंतु ऐसा नहीं हुआ। यदि यह पैसा पीएम-किसान योजना का बजट आवंटन बढ़ाकर किसानों को उपलब्ध करा दिया जाता तो अर्थव्यवस्था में मांग तत्काल बढ़ती। इससे औद्योगिक उत्पादन बढ़ता तथा नए निवेश की संभावनाएं और रोजगार दोनों बढ़ते। आशा है सरकार बजट पारित करते समय इस बिंदु पर अवश्य गौर करेगी और पीएम-किसान योजना का बजट आवंटन बढ़ाने पर विचार करेगी।

मंद होती अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में धन का प्रवाह बढ़ाना चाहिए

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने भी कहा है कि मंद होती अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में धन का प्रवाह बढ़ाना चाहिए। बजट आवंटन बढ़ाने के अलावा पीएम-किसान योजना में सबसे बड़ा सुधार यह करना होगा कि इसके तहत अगले एक वर्ष में सभी किसानों का पंजीकरण एवं सत्यापन पूरा कर लिया जाए।

पात्र किसानों को एक दिसंबर, 2018 से सभी किश्तों का भुगतान किया जाना चाहिए

दूसरा, सत्यापन उपरांत जो भी किसान पात्र पाया जाए उसे एक दिसंबर, 2018 से वितरित सभी किश्तों का भुगतान किया जाए। तीसरा, इस योजना के अंतर्गत आवंटित धनराशि का यदि समय पर वितरण न हो सके तो अवितरित धनराशि को अगले साल के बजट में जोड़ दिया जाए यानी उसे ‘कैरी फॉरवर्ड’ किया जाए। बची हुई इस धनराशि को किसानों को सत्यापन उपरांत पुन: वितरित कर दिया जाए।

योजना की धनराशि को प्रत्येक वर्ष बढ़ाया जाए

चौथा, इस योजना की धनराशि को मुद्रास्फीति की दर में कम से कम पांच प्रतिशत जोड़कर प्रत्येक वर्ष बढ़ाया जाए। इससे इस योजना की राशि का आर्थिक मूल्य सम्मानजनक बना रहेगा।

चीन ने की अपने किसानों को 232 अरब डॉलर की मदद

वर्ष 2016 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन यानी ओईसीडी के सदस्य देशों ने सकारात्मक कृषि नीतियों के माध्यम से अपने किसानों को औसतन 235 अरब डॉलर (आज के मूल्यों में लगभग 17 लाख करोड़ रुपये) और चीन ने 232 अरब डॉलर की मदद की तो क्या हम अपने किसानों को दो-तीन लाख करोड़ रुपये भी नहीं दे सकते।

पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना ग्रामीण आर्थिक सशक्तीकरण से ही संभव

मंदी से निकलकर पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना ग्रामीण भारत में बसने वाली 70 प्रतिशत आबादी के आर्थिक सशक्तीकरण से ही संभव है।

( लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं )