नई दिल्ली [ शिव कुमार राय ] राजनीति में उतरे नेता जब युवा थे तो हर कहीं अपने ऐसे भाषण के लिए मशहूर थे, ‘‘हम यहां राजनीति करने नहीं आए हैं। हमें अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए। हमारा समुदाय प्रगति की दौड़ में बहुत पिछड़ गया है। हम युवा लोग हैं। अपने समुदाय को उसका वाजिब हक दिला कर रहेंगे।’’ धीरे-धीरे वे धाकड़ नेता बनते गए। लोग उनके बारे में चर्चा करने लगे कि अब जाके कोई देश, समाज और समुदाय के हितों की बात करने वाला है जो किसी से नहीं डरता। सरकार ने भी माहौल की नजाकत भांपी। तुरंत दूत दौड़ाए गए और पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया। सत्ताधारी दल में शामिल होते ही कहा जाने लगा कि नेता हो तो ऐसा हो। सरकार को भी झुका देने की ताकत रखता है। धीरे-धीरे नेताजी के घर की रौनक बदलने लगी और कुछ समय बाद तो उनका घर ही बदल गया। वह बदलने के साथ बड़ा भी गया।

आदमी बढ़ेगा तो समुदाय भी बढ़ेगा, देश भी बढ़ेगा

कहां नेताजी का भारी-भरकम व्यक्तित्व अब दो कमरों के पुश्तैनी मकान में समा पाता इसलिए उनका पहले बड़ा, फिर काफी बड़ा मकान हो गया। नहीं-नहीं करते भी उनका सारा घर तमाम तरह के संसाधनों से भर गया। उनको कुछ नहीं चाहिए था, मगर समाज की उन्होंने इतनी सेवा की तो समाज का भी तो कुछ कर्तव्य बनता है उनके लिए कुछ करने का। लोग घर को भरे पड़े हैं तो नेताजी भी क्या करें? आखिर समर्थकों को नाराज भी तो नहीं कर सकते। और समुदाय की चिंता? देश का गौरव? देखो भाई, आखिर समुदाय और देश काहे से बनता है? आदमी से ही न। तो आदमी बढ़ेगा तो समुदाय भी बढ़ेगा, देश भी बढ़ेगा और नेता जी बढ़ रहे हैं। खूब बढ़ रहे हैं। वही क्यूं? चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई-भतीजे, साले-सरहज आदि सब बढ़ रहे हैं। जाति-बिरादरी का कोई भी आदमी आवे, खाली हाथ नहीं जाता। ये सब लोग भी तो समाज के अंग ही हैं ना। देश इनसे ही तो मिलकर बना है। क्या ये लोग समाज को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं? देश को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं?

नेताजी ने अपना खून-पसीना एक कर दिया देश और समाज की भलाई के लिए

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन पंचों ने एक दिन नेता जी को घेर लिया। कहने लगे, ‘सब लोग तो कह रहे हैं कि आप अपनी बातों से मुकर गए हैं। आपका नैतिक पतन हो गया है। आप भी और नेताओं जैसे हो गए हैं।’ नेताजी का दर्द जैसे गले तक भरा पड़ा था। तुरंत छलकने लगा। बोले, ‘देखो सब लोग हमारी प्रगति से जलते हैं। हमने अपना खून-पसीना एक कर दिया देश और समाज की भलाई के लिए। सौ किलो से ज्यादा वजन हो गया। ठीक से चला भी नहीं जाता। डायबिटीज और हार्ट का रोग अलग से हो गया। यह किसी को दिखाई नहीं पड़ता। जनता की इस कदर कोई चिंता करता है भला? ऊपर से विपक्षी सरकारों के आने पर तमाम एजेंसियों की जांच-पड़ताल की समस्या अलग। ढंग से सो भी नहीं पाते। और नैतिकता के पतन की क्या बात है? नैतिकता का कोई नामलेवा भी है?

राजनीति करने नहीं आए

बताओ चुनाव में सबसे पैसे लेकर भी वोट अपनी मर्जी से देते हैं। है कहीं कोई नैतिकता? फिर हमहीं पर सारा दोष काहे भाई? फलाने का लड़का पी-पा के हंगामा कर रहा था है, थाने में बंद है। चलो, उसको छुड़ाओ। काहे भाई इतने नैतिक हो तो पड़े रहने दो लड़के को जेल में। सारी अकल ठिकाने में आ जाएगी। मगर नहीं भाई कुछ सेटिंग करो, कुछ जुगाड़ करो। अब सेटिंग, जुगाड़ क्या मुफ्त में होता है?’ पंच इतने से ही भला कहां मानने वाले थे। उन्होंने दूसरा राग छेड़ा, ‘मगर आपने तो कहा था कि हम यहां राजनीति करने नहीं आए हैं। हमें अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए।’ नेताजी तुरंत देशज में आ गए, ‘हां, भाई कहा था। तो का जान ले लेबो? अरे, राजनीति में ई सब कहे पड़त है। वरना, अगर हम ई कही कि हमका सब चाही, हम पूरा देश लूट लेबै तो हमका कौन सुनेगा और कौन चुनेगा?’ भाई लोग फिर भी न माने, सवाल फिर से उछाल दिया, ‘तो इसका मतलब सब झूठ ही झूठ है और राजनीति में सच नाम की कोई चीज आएगी ही नहीं?’

सच का बोलबाला हमेशा रहा है और हमेशा रहेगा

नेताजी थोड़ी देर मौन रहकर बोले, ‘नहीं-नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं है। सच का बोलबाला हमेशा रहा है और हमेशा रहेगा। आज भी सब लोग अपना काम सही से करने लगें, कोई अपने भाई-भतीजे के लिए उल्टी-सीधी सिफारिश न करे तो नेता को भला कौन पूछेगा? कोई लड़का क्लर्की के भी काबिल नहीं है, लेकिन उसके घरवाले उसको अफसर बनाने पर आमादा हैं। अब अगर लोग इस सच को स्वीकार कर लें और अपने बेटे-बेटी को उसकी योग्यता के अनुसार खुद रोजगार ढूंढ़ने के लिए प्रेरित करने लगें तो काहे जुगाड़-सेटिंग की जरूरत पड़े। लोग नेता के आगे नतमस्तक होते ही तभी हैं जब गलत को सही कराने की जरूरत पड़ती है। लोग न करें ऐसा तो नेताजी भी समझ जाएंगे कि भाई, ऐसे भले समाज में रहना है तो सच में ढंग के काम करने पड़ेंगे।’ ऐसी दार्शनिक बातें सुनकर तो पंचों का चेहरा ही उतर गया। वे सोच नहीं पा रहे कि अब क्या करें? पहले समाज बदलने का काम करें या फिर नेता?

[ हास्य-व्यंग्य ]