उत्तराखंड, कुशल कोठियाल। अब तक राज्य में सवा लाख के करीब प्रवासी पुहंच चुके हैं। सरकार सरसरी जांच एवं अन्य औपचारिकताओं के बाद उन्हें आगे अपने घरों की ओर जाने की सुविधाजनक, लेकिन खतरनाक इजाजत दे रही है। यही वजह है कि संस्थागत क्वारंटाइन की व्यवस्था होने के बावजूद प्रवासी सीधे अपने गांवों और शहरों की गलियों में पहुंच रहे हैं। कुछ पंचायतों ने बाहर से आने वालों के लिए स्कूल, पंचायत घरों में क्वारंटाइन की व्यवस्था की है तथा उसे शिद्दत के साथ लागू कर भी रहे हैं। कुल मिलाकर सरकार ने अपनी जिम्मेदारी पंचायतों पर सौंप दी है या थोप दी है।

पिछले दस दिनों में प्रदेश में कुल 90 से ज्यादा कोविड पॉजिटिव केस आए हैं, इनमें से अधिसंख्य प्रवासी ही हैं। यह आंकड़ा प्रदेशवासियों को डरा रहा है। ऊपर से सरकार की कोविड जांच की गति काफी सीमित एवं धीमी है। बाहर से आने वालों में से भी केवल संदिग्ध पाए जाने वालों के ही सैंपल लिए जा रहे हैं। अब स्थिति यह है कि देश के विभिन्न रेड जोन से सीधे गांव तथा शहरों में पहुंच रहे अपने ही अब अपनों को डरा रहे हैं। प्रवासियों से पूरी सहानुभूति रखने वाले लोग भी सरकार से सतर्क रहने की अपेक्षा कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश सरकार का कोविड के प्रति रवैया काफी उदार सा लग रहा है। दस दिन पहले तक प्रदेश की सत्ताधारी और विपक्ष की एकमात्र पार्टी कांग्रेस प्रवासियों को लाने की मांग जोर-शोर से कर रही थीं।

सत्ताधारी भाजपा एवं विपक्षी कांग्रेस ने प्रवासियों को घरों तक लाने का बाकायदा अभियान तक छेड़े हुए थे। घर वापसी का दौर चला तो दोनों ने ही श्रेय लेने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, लेकिन जैसे-जैसे इनमें से कोरोना केस आने लगे, उसी अनुपात में क्षेत्रीय लोगों में अनियोजित तथा अनियंत्रित घर वापसी पर नाराजगी दिखने लगी। नफा-नुकसान को देखने में माहिर कांग्रेस ने तुरंत मंच बदला और प्रवासियों की वापसी का श्रेय लेने के बजाय सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी। अब कांग्रेस नेता प्रवासियों की उचित जांच, संस्थागत क्वारंटाइन करने और उनके खातों में रुपये डालने की मांग पर खेलने लगे हैं। भाजपाई सत्ता में होने के कारण इस तरह पासा नहीं पलट पाए, बल्कि प्रवासियों के हित में संगठन स्तर पर योजना की घोषणा कर दी। अब प्रवासी भाजपाइयों को खोज रहे हैं और भाजपाई सरकारी योजना को ही अपना योगदान साबित करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

टूरिज्म में वेलनेस से उम्मीद : उत्तराखंड में कोरोना की मार सबसे ज्यादा पर्यटन पर पड़ी है। यात्र सीजन को पूरी तरह से कोरोना लील गया। जब पूरा देश स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है तो ऐसे में प्रदेश में वेलनेस टूरिज्म की संभावनाएं भी दिख रही हैं। प्रदेश की सरकार भी वेलनेस के क्षेत्र में वर्तमान ढांचे के उपयोग एवं नई संभावनाओं को तलाशने में जुट गई है। योग, ध्यान, प्राकृतिक चिकित्सा, जैविक भोजन जैसी गतिविधियों को टूरिज्म से जोड़ने पर गंभीरता से विचार हो रहा है। जिसका वर्तमान दौर में बाजार भी है और राज्य में अपार संभावनाएं भी। कोरोना जनित पाबंदियों के साथ पर्यटन के इस क्षेत्र में काम किया जा सकता है तथा हजारों लोगों को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जा सकते हैं। वैसे भी लॉकडाउन से पहले तक बड़ी संख्या में सैलानी वेलनेस टूरिज्म के लिए उत्तराखंड आते रहे हैं। खासकर ऋषिकेश तो वेलनेस सेंटर के बड़े हब के रूप में उभरा है। न सिर्फ ऋषिकेश, बल्कि इसके नजदीकी मुनिकीरेती, स्वर्गाश्रम, लक्ष्मणझूला, हरिद्वार के अलावा उत्तरकाशी, टिहरी समेत अन्य क्षेत्रों में काफी संख्या में योग-ध्यान केंद्र, स्पा केंद्र, पंचकर्म सेंटर खुले हैं। इसके साथ ही कई नामी होटलों ने अपने यहां स्पा-पंचकर्म की गतिविधियां शुरू की हैं और यह भी सैलानियों को खूब आकर्षित करती रही हैं। इनके अतिरिक्त वेलनेस के नए केंद्र भी विकसित किए जा सकते हैं, जिसकी हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भरपूर संभावना है।

स्थानीय संपादक, उत्तराखंड