नई दिल्ली, हृदयनारायण दीक्षित। जीवन कर्म प्रधान है। सामान्य लोग निजी हित में काम करते हैं, लेकिन अनेक लोग अपनी जीवन ऊर्जा लोकहित में लगाते हैं। वे सामाजिक गतिविधि में हस्तक्षेप करते हैं। जन सामान्य को प्रेरित करते हैं। ऐसे लोग विरल होते हैं। उनके प्रशस्ति गायन होते हैं। सम्मान लोकमंगलकारी, अतिरिक्त कर्मनिष्ठा और कुशलता का पुरस्कार होते हैं। ऐसे सम्मान समाज में कर्म उत्साह भरते हैं। पुरस्कार-सम्मान लोकहित की गति तेज करते हैं। समाज उनसे प्रेरित होता है। अनुसरण करता है। सामाजिक जीवन की गुणवत्ता बदलती है, लेकिन ऐसे विशिष्ट कर्मयोगियों में से कुछेक को ही प्रशंसा-प्रशस्ति मिलती है। तमाम कर्मयोगी यश और कीर्ति गायन से वंचित रहते हैं। समाज उनके नाम और काम से अपरिचित रहता है। विशिष्ट प्रतिभा और अतिरिक्त कर्म कुशलता का सम्मान राष्ट्रीय दायित्व है। मोदी सरकार में ऐसे विरल महानुभावों को भी भारत रत्न और पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनके नाम के साथ उत्कृष्ट काम की चर्चा भी हो रही है।

भारत रत्न सम्मान विभूषित प्रणब मुखर्जी से विश्व सुपरिचित है। भूपेन हजारिका सुप्रतिष्ठित सांस्कृतिक साधना वाले महानुभाव थे। उन्हें पद्मश्री एवं पद्मभूषण सम्मान मिल चुका है। असम से बहुमुखी प्रतिभा के कवि, गीतकार, संगीतकार और गायक हजारिका वाकई भारत रत्न हैं। प्रणब दा की प्रतिभा अतुलनीय है। राष्ट्र दोनों भारत रत्नों के प्रति आदरभाव से युक्त है। दोनों की प्रतिष्ठा और चर्चा नई नहीं है, लेकिन नानाजी देशमुख स्वयं ही प्रसिद्धि से दूर रहे हैं। सिद्धि और प्रसिद्धि में उन्होंने सिद्धि को वरीयता दी। उन्होंने गरीबों-आमजनों की रिद्धि, सिद्धि, समृद्धि के लिए सारा जीवन स्वाहा कर दिया। वह राजनीतिक क्षेत्र में भी सक्रिय थे, लेकिन उनकी राजनीति परिवर्तनकामी थी। वह राष्ट्रवादी विचारधारा के कार्यकर्ता एवं प्रचारक थे, लेकिन 1974-75 के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में जयप्रकाश नारायण के साथ थे। वह विनोबा के भूदान आंदोलन में भी सक्रिय रहे। वर्ष 1977 में उप्र के बलरामपुर से सांसद चुने गए। केंद्र में मंत्री बनाए जाने के प्रस्ताव को उन्होंने अस्वीकार कर दिया। 1980 में उन्होंने राजनीति को अलविदा कह शेष जीवन रचनात्मक कार्यो में ही लगाया। गोंडा-बलरामपुर क्षेत्रों में उन्होंने गरीबों को संगठित किया। नानाजी गरीबों में स्वावलंबन एवं स्वदेशी का भाव जगा रहे थे।

प्रेरक कार्यो की प्रशंसा समाज की जीवन दृष्टि बदलती है। प्रणब दा पहले से ही प्रतिष्ठित हैं। भूपेन और नानाजी सर्वोच्च सम्मान के समय जीवित नहीं हैं। असली बात है-कर्म, कर्म का उद्देश्य और कर्मतप की निष्ठा। सम्मानित व्यक्ति का सम्मान से कोई बहुत लेना-देना नहीं होता। कर्म प्रतिष्ठा और सम्मान की इस परंपरा की वैदिक काल से रामायण, महाभारत होते हुए आधुनिक भारत में भी सामाजिक उपयोगिता है। ऋग्वेद के ऋषि जल की प्रशंसा करते हैं, उसे अमृत बताते हैं। वे देवताओं से कहते हैं कि देव भी जल की प्रशंसा करें। यहां काम की प्रशंसा है। भाव प्रवण राष्ट्र भी चाहता है कि भूपेन और नानाजी सहित सभी प्रतिष्ठित महानुभाव हमारा सम्मान भाव ग्रहण करें। हम वैसे ही कर्म करें जैसे उन्होंने-अग्रेजों पूर्वजों ने किए हैं।

भारत रत्न नानाजी भूले-बिसरे जैसे तपस्वी हो गए थे, लेकिन उनके द्वारा चलाए गए गरीबी निरोधक कार्यक्रम, न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, कृषि सुधार, कुटीर उद्योग, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा एवं ग्रामीण स्वास्थ्य आदि के अभियान किसी न किसी रूप में जीवंत तथा प्रेरक हैं। चित्रकूट का ग्रामोदय विश्वविद्यालय अनूठा है। नानाजी ने इसकी स्थापना की थी। चित्रकूट में उनके चलाए ढेर सारे प्रकल्प हैं। उन्हें भारत रत्न देकर राष्ट्र ने कर्म प्रतिष्ठा के वास्तविक मानक अपनाए हैं। पद्म पुरस्कारों में भी अनेक अचर्चित कर्म योद्धा हैं। 96 वर्षीय वल्लभभाई वश्रम ने बिना किसी आधुनिक प्रयोगशाला के ही ‘मधुवन गाजर’ का विकास किया। उन्होंने 1943 में गुजरात के लोगों का परिचय गाजर की गुणवत्ता से कराया था। वह 65 वर्षो से जैविक कृषि प्रचार में संलग्न हैं। उन्हें पद्मश्री मिला है। ओडिशा की 69 वर्षीय कमला पुजारी ने बीज प्रजाति संरक्षण का बड़ा काम किया है। उन्होंने जैविक खेती के लिए ग्रामीणों में व्यापक लोकमत बनाया है। उन्होंने एमएस स्वामीनाथन फाउंडेशन से प्राप्त प्रशिक्षण का सदुपयोग अपना करियर बनाने के बजाय ग्रामीणों के जागरण में किया है। इन्हें मिला पद्मश्री उनके उत्कृष्ट काम का ही सम्मान है।

राष्ट्रहित सर्वोपरि है, लेकिन व्यावहारिकता में निजी हित वरीय हो जाता है। डॉ. स्मिता एवं डॉ. रवींद्र महाराष्ट्र के मेलघाट जिले के उपेक्षित क्षेत्र में 30 साल से कोरकू जनजातियों के बीच सक्रिय हैं। वे गरीबों के बीच प्राथमिक चिकित्सा केंद्र चला रहे हैं। चिकित्सा सेवा की राशि सिर्फ दो रुपये है। उन्होंने 12 अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी विकसित कराए हैं। वे गरीबों के स्वास्थ्य सुधार में सक्रिय होने के अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस व्यवस्था को सुधारने में भी जुटे हैं। इन्हें मिला पद्मश्री प्रेरक है। पर्यावरण सुधारक 106 वर्षीय थिमाक्का को कर्नाटक में ‘वृक्षमाता’ कहा जाता है। उन्होंने 66 साल में हजारों पेड़ लगाने और उन्हें माता की तरह संरक्षित करने का काम किया है। इसी तरह 66 वर्षीय एम चिन्ना पिल्लई भी पद्मश्री सूची में हैं। उन्होंने अपने दम पर हजारों महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाए। बचत और साख की संस्थाएं बनीं। ऐसे स्वयंसेवी स्थानीय बैंकिंग समूह तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में सक्रिय हैं। पिल्लई ने महिलाओं के बीच सूदखोरों से मुक्ति एवं स्वावलंबन का अभियान चलाया है। उन्हें पद्मश्री मिलने से देश के अन्य क्षेत्र भी प्रेरित होंगे। दर्शन लाल जैन-हरियाणा, श्रीमती मुक्ता बेन, पंकज कुमार-गुजरात, डॉ. द्रोपदी सिक्किम, सैयद-महाराष्ट्र, कृषि क्षेत्र में बाराबंकी के रामशरन वर्मा आदि अनेक अचर्चित महानुभावों का विशिष्ट कामकाज पद्म सम्मान से चर्चा में आया है।

सभी पुरस्कृत महानुभाव सम्मानीय हैं। उनके उत्कृष्ट काम प्रेरक हैं। शोध, साहित्य सृजन, गीत-संगीत या मानविकी के अन्य क्षेत्रों की विशिष्टता में संसाधनों की भी महत्ता है। राजनीति के क्षेत्र में काम करते हुए संसदीय कौशल और मूल्य आधारित सार्वजनिक जीवन की महत्ता भी प्रेरक है, लेकिन राजनीति सहित ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों में काम करते हुए तमाम साधन भी उपलब्ध रहते हैं। उपेक्षित क्षेत्रों में पर्याप्त साधन नहीं होते। ऐसे में जीवन का सवरेत्तम काम प्रकट करना कठिन होता है। गरीबों में स्वावलंबन का भाव जगाना और उन्हें कर्म तप के लिए प्रेरित करना सबसे कठिन काम है। उन्हें स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति जागृत करना और भी दुष्कर है। ऐसे महानुभावों को प्राय: यश कीर्ति नहीं मिलती, बावजूद इसके वे अपना जीवन राष्ट्रहित में ही लगाए रखते हैं। तब उनका नाम नहीं काम ही बोलने लगता है। उनके काम प्रेरक हैं। उनके नाम भी प्रेरक हैं। काव्य सृजन, संगीत, शोध, सुख वृद्धि करते हैं। उपेक्षित क्षेत्रों के बीच किए गए काम समाज को दुखहीन करते हैं। ऐसे अनेक कामों को राष्ट्रीय स्वीकृति मिली है। इसी से समाज का रासायनिक रूपांतरण संभव है।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं)