नई दिल्ली [रिजवान अंसारी]। बीते दिनों ऐसे तमाम उदाहरण हमारे सामने आए हैं जिनसे यह पता चलता है कि कोरोना वायरस के बारे में लोगों में अब तक समग्र जानकारी का अभाव है। जब कोरोना वायरस की हकीकत से लोग वाकिफ नहीं हैं, तब इससे बचाव के उपायों के बारे में लोगों को कितना पता होगा? फिर उन सुरक्षा उपायों की क्या उपयोगिता है जिसे सरकार दिन-रात बताने में जुटी है? शायद हम इस दिशा में अब तक सोच ही नहीं पाए हैं कि जागरूकता का अभाव कैसे हमारी मेहनत पर पानी फेर सकता है।

आज रोजाना दस हजार तक कोरोना मामले आने में हमारी इस लापरवाही का अहम योगदान हो सकता है। जागरूकता का स्तर इससे भी समझ सकते हैं कि कैसे कई राज्यों में लोग कोरोना की पूजा करने लगे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और असम में महिलाओं ने कोरोना को देवी का रूप मानकर उसकी पूजा शुरू कर दी है। वे मानती हैं कि कोरोना माता नाराज हैं जो पूजा करने के बाद वापस चली जाएंगी।

ऐसे समय में जब पूरे देश को वैज्ञानिक सोच की जरूरत है, तब इसे दैवीय आपदा का नाम देकर समाज में अंधविश्वास फैलाया जा रहा है। सवाल यह भी है कि जब सरकार और पूरा प्रशासनिक अमला इस आपदा को खत्म करने में जुटा हुआ है और टीवी, समाचार पत्र एवं रेडियो के जरिये जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, तब लोगों तक सटीक जानकारी क्यों नहीं पहुंच रही है। क्या मात्र जागरूकता अभियान चला देना भर पर्याप्त है? हम इस बात का मूल्यांकन करना क्यों जरूरी नहीं समझते कि हमारा यह अभियान कारगर है या नहीं और अगर है तो कितना।

मिसाल के तौर पर देखें तो केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास कई गरीबी उन्मूलन व कल्याणकारी योजनाएं हैं। इनकी संख्या को देख कर हम कह सकते हैं कि अगर इन योजनाओं को ठीक से लागू किया जाता तो भारत में गरीबी बहुत कम होती। लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हो सका है। दरअसल इन योजनाओं के बारे में लाभाíथयों में जागरूकता की कमी होती है। उन्हें पता ही नहीं कि योजना किस बारे में है? इसका लाभ लेने के आवेदन फॉर्म कहां से खरीदना है? अगला कदम क्या है? प्राधिकरण को कितने समय में जवाब देना चाहिए? अगर प्राधिकरण जवाब नहीं देता है तो क्या करना चाहिए?

वास्तव में इन सवालों के जवाब लाभार्थियों के लिए दशकों से एक रहस्य बने हुए हैं। विडंबना यह है कि कई योजनाएं केवल कागज तक सीमित रहती हैं और अधिकारी पैसे डकार जाते हैं। अगर इस पर काम किया जाए तो अभियानों को सफल बनाना कठिन कार्य नहीं है। मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल के दौरान व्यापक पैमाने पर बैंकों में जनधन खाता खोलने के प्रति लोगों को जागरूक किया और वह अभियान काफी हद तक सफल भी रहा। 

हर घर शौचालय का मामला अभियान भी सफल रहा।इस मामले में हमारी बड़ी कमी यह है कि हम यह मूल्यांकन नहीं करते कि हमारे जागरूकता अभियान का माध्यम कैसा होना चाहिए। वर्तमान महामारी के संदर्भ में जागरूकता का प्रसार करने के लिए हमें टीवी और समाचार पत्र से आगे जाना होगा।

कोरोना विज्ञान से जुड़ा मामला है, इसलिए सिर्फ इन माध्यमों से प्रचार-प्रसार कर देना भर काफी नहीं है। निरक्षरता और अधिकांश जनता में वैज्ञानिक सोच का अभाव कोरोना हेतु चलाए जा रहे जागरूकता अभियान की सफलता में रुकावट है। हमें समझना होगा कि यह एक रोग है और सबके लिए नया है। इसकी भयावहता की सूचना जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। हर पंचायत में लगभग पांच हजार आबादी होती है।

ऐसे में दस लोगों की एक टीम इतने लोगों तक अपनी पहुंच आसानी से बना सकती है। सिविल सोसायटी को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए आगे आने की जरूरत है। अगर हर क्षेत्र में यह काम शुरू हो जाए तो करोड़ों लोगों को इस दुष्चक्र में फंसने से बचाया जा सकता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)