शांति इंसान के लिए सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण है। आज लोगों के पास भौतिक सुविधाएं बहुत हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें मन की शांति नहीं है। धन-दौलत से संसाधन खरीदे जा सकते हैं, लेकिन शांति नहीं खरीदी जा सकती है। शांति बाजार में बिकने वाली वस्तु नहीं है। केवल मुख से चुप रहने से शांति नहीं मिलती, बल्कि सच्ची सुख-शांति तो तभी है जब व्यक्ति का मन चुप रहे। अशांति का कारण ही व्यक्ति का मन है। वे मन से अशांत हैं और जब तक उनका मन शांत नहीं होगा तब तक उनका जीवन सुखी नहीं हो सकता है। मन को नियंत्रित करने पर ही उन्हें शांति मिलेगी। संत कबीरदास कहते हैं कि हाथ में माला फेरने और जीभ से भजन करने से ईश्वर का सच्चा सुमिरन नहीं होता है, यदि मनुष्य का मन ही एकाग्र न हो।

अब सवाल यह है कि मनुष्य का मन एकाग्र कैसे हो? महात्मा गांधी का कहना था कि मैं शांति पुरुष हूं, लेकिन मैं किसी वस्तु की कीमत पर शांति नहीं चाहता। मैं ऐसी शांति चाहता हूं, जो आपको कब्र में नहीं तलाशनी पड़े। शांति के लिए मनुष्य को अपने जीवन को महात्मा गांधी की तरह नियमित और अनुशासित करना पड़ता है। जो व्यक्ति नियम और अनुशासन से चलता है उसका मन कभी अशांत नहीं होगा, बल्कि वह स्वयं प्रफुल्लित रहेगा और अपने आसपास के लोगों को भी सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करेगा।

एक व्यक्ति की घड़ी खो गई। वह खोजते-खोजते परेशान हो गया, लेकिन उसे कहीं घड़ी नहीं मिली। एक बच्चे ने उन्हें इस तरह परेशान देखा तो उसने बड़े इत्मीनान से कहा, आप चिंता न करें, मैं दो मिनट में आपकी घड़ी खोज दूंगा। बच्चे की इस बात पर उन सच्जन को गुस्सा आया, फिर उन्होंने सोचा कि देखते हैं बच्चा क्या करता है। खैर जिस कमरे में घड़ी खोई थी, बच्चे ने उसे खाली करने का निर्देश जारी कर दिया। इसके बाद बच्चा उस कमरे में गया और कुछ ही मिनट में घड़ी खोज लाया। उस बच्चे ने कहा, मैंने कुछ नहीं किया। बस मैं कमरे में गया और चुपचाप बैठ गया, घड़ी की आवाज पर ध्यान केंंद्रित करने लगा, कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाई दी, जिससे मैंने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और अलमारी के पीछे गिरी घड़ी खोज निकाली।

[ आचार्य विनोद कुमार ओझा ]