[ प्रदीप सिंह ]: शतरंज का खेल जानने वालों को पता है कि इस खेल में प्यादा राजा के अलावा सब कुछ बन सकता है, पर राजा, वजीर, ऊंट, घोड़ा किसी भी स्थिति में प्यादा नहीं बन सकते। शतरंज और राजनीति में काफी समानता है। राहुल गांधी कह रहे हैं कि अब वह प्यादा यानी आम कार्यकर्ता बनना चाहते हैं। इससे यही लगता है कि राहुल गांधी को राजनीति की बारीकियों की न तो पहले समझ थी और न अब है। जब साल 2004 में उन्हें प्यादा यानी कार्यकर्ता बनना था तो वह राजा बनना चाहते थे। अब जब राजा बन गए तो कह रहे हैं प्यादा बनना है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर जवाबदेही से बचने के लिए उन्हें यही रास्ता नजर आ रहा है।

जिम्मेदारी और जवाबदेही

पूरी कांग्रेस पार्टी परेशान है। अध्यक्ष पद के दावेदार सहमे हुए हैं। जिम्मेदारी और जवाबदेही के पद पर आसीन राहुल गांधी को समझना कठिन था। अब बिना किसी जिम्मेदारी और जवाबदेही वाले राहुल गांधी से कैसे निभाएं? प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने राहुल गांधी के इस्तीफे के कदम को साहसिक बताया है। यदि यही साहस है तो फिर रणछोड़ दास की परिभाषा बदलनी पड़ेगी। राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे में कहा कि देश बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है। कठिनाई के समय मैदान छोड़ने वाले को साहसी कहने के लिए अंधभक्त होना जरूरी है।

कांग्रेस पार्टी रसातल की ओर

दरअसल राहुल गांधी को समझ में नहीं आ रहा है कि पार्टी जिस हालत में पहुंच गई है वहां से उसे कैसे निकालेें? उनके परिवार ने ही पार्टी को इस हालत में पहुंचाया है। नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी के समय क्या हुआ, इसे छोड़ देते हैं, क्योंकि उस पर बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है। कांग्रेस पार्टी रसातल की ओर जा रही है, इसके संकेत पार्टी को बार-बार मिल रहे थे। 1998 में पार्टी की बुरी हार और पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी ने एके एंटनी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। उसकी रिपोर्ट पर कार्यसमिति में घंटों बहस हुई, लेकिन कोई बदलाव नहीं हुआ। कमेटी 2014 (एंटनी) और 2016 (मोइली) में भी बनी। उसका क्या हुआ, किसी को पता नहीं। साल 2004 में गठबंधन के सहारे कांग्रेस सत्ता में आ गई और दस साल तक सत्ता में रही। इन दस वर्षों में सोनिया गांधी ने आजादी के आंदोलन की वारिस कांग्रेस को एक तरह के एनजीओ में बदल दिया।

सोनिया गांधी ने चलाई सरकार

कांग्रेस ने जिस राष्ट्रवाद को लेकर आजादी की लड़ाई लड़ी उसे छोड़कर ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह’ वालों के साथ खड़ी हो गई। सोनिया की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद केंद्रीय मंत्रिमंडल से ज्यादा ताकतवर हो गई। प्रधानमंत्री बने बिना सोनिया गांधी सरकार चलाती रहीं। दस साल के संप्रग शासन में जो बुरा हुआ उसकी जिम्मेदारी मनमोहन सिंह की और जो अच्छा हुआ उसका श्रेय सोनिया गांधी या राहुल गांधी को।

सरकार के भ्रष्टाचार पर राहुल मौन रहे

प्रेस कांफ्रेंस में अध्यादेश की प्रति फाड़ने वाले राहुल गांधी अपनी सरकार के भ्रष्टाचार के बारे में दस साल तक मौन साधे रहे, लेकिन मुगालते का आलम देखिए कि उन्हें लगा कि 2019 आते-आते वह भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के सूरमा बन जाएंगे। वह बेईमानों के भ्रष्टाचार पर चुप्पी साधे रहे और ईमानदार छवि वाले पीएम को हर सभा में चोर बताते रहे। उन्हें तब भी समझ में नहीं आया जब उनसे ज्यादा अनुभव रखने वाले उन्हीं की पार्टी के नेता बताते रहे कि इस नारे को आम लोगों का समर्थन नहीं मिल रहा है।

राहुल गांधी की कार्यशैली में खामी

गोस्वामी तुलसीदास बहुत पहले लिख गए हैं। ‘सचिव बैद गुरु तीन जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होहिं बेगिहीं नास।’ राहुल ने सचिव यानी सलाहकार ऐसे बनाए जो वही बोलते थे जो वह सुनना चाहते थे। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने उनसे कोई ऐसी बात कहना बंद कर दिया जो उन्हें पसंद न हो। सबका एक ही कहना था कि राहुल गांधी किसी को भी अपमानित कर सकते हैं। गुरु उनके ऐसे जिन्होंने उन्हें कांग्रेस की विचारधारा छोड़, मंदिर-मंदिर घुमाया और टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ बैठाया। राहुल गांधी को आने वाले दुर्दिन की बार-बार दस्तक मिल रही थी। पहली दस्तक तब मिली जब 2015 में हेमंत बिस्व सरमा ने कांग्रेस छोड़ी। देश को पता चल गया कि राहुल गांधी की कार्यशैली में खामी है। सिर्फ राहुल गांधी को पता नहीं चला।

गांधी परिवार की पार्टी

इंदिरा गांधी ने 1978 में कांग्रेस को अपने परिवार के वफादारों की पार्टी बनाने का जो सिलसिला शुरू किया था उसे राहुल गांधी ने अपनी बहन को महामंत्री बनाकर पूरा कर दिया। सोनिया राज में कांग्रेस में बड़े फैसले कार्यसमिति के बजाय दस जनपथ की डाइनिंग टेबल पर होने लगे। वहीं तय होता था कि कौन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बनेगा। तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों का फैसला वहीं हुआ। उस समय तक पार्टी में न होने के बावजूद प्रियंका सबसे अधिक सक्रिय थीं।

प्रियंका का साहसिक कदम उठाने से इंकार

ताजा स्थिति यह है कि डाइनिंग टेबल के सभी सदस्य अब कार्यसमिति में आ गए हैं। प्रियंका ने कार्यसमिति की बैठक में कहा कि ‘मेरा भाई अकेला लड़ रहा था।’आखिर उन्होंने अपने भाई से यह क्यों नहीं पूछा कि भाई तुमने ऐसा क्या कमाल किया कि पूरी पार्टी होते हुए तुम्हें अकेले लड़ना पड़ा? भाई अकेला लड़ रहा था तो बहन कहां थीं? पूर्वी उत्तर प्रदेश तो उनके ही हवाले था। वह बाजी पलटने वाली बताई जा रही थीं, लेकिन पार्टी उम्मीदवारों की जमानत भी नहीं बचा सकीं। उन्होंने भाई के इस्तीफे को साहसिक कदम बताया, लेकिन खुद ऐसा साहसिक कदम उठाने से इंकार किया।

राहुल गांधी का इस्तीफा एक नाटक

राहुल गांधी के प्रति पार्टी में विश्वास का आलम यह है कि ज्यादातर लोग इस्तीफे को पहले ही दिन से नाटक मान रहे हैं। अब नए अध्यक्ष की तलाश हो रही है। जो लोग तलाश कर रहे हैं उन्हें किसने अधिकृत किया? पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने ठीक ही कहा कि अच्छा होता कि राहुल इसकी व्यवस्था करते और कार्यसमिति उसे मंजूरी देती। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि नया अध्यक्ष युवा पीढ़ी से होना चाहिए, पर इन दोनों नेताओं की आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है।

अध्यक्ष कोई बने, बागडोर गांधी परिवार के पास होगी

जो नया अध्यक्ष खोज रहे हैं और जो किनारे बैठकर सब कुछ देख रहे हैं, उन सबको पता है कि अध्यक्ष कोई बने, पार्टी की बागडोर परिवार के पास ही होगी। जब सोनिया अध्यक्ष बनी थीं तो कम से कम तीन नेता-शरद पवार, जितेंद्र प्रसाद और राजेश पायलट ऐसे थे जिनमें चुनौती देने की हिम्मत थी। आज दूर-दूर तक ऐसा कोई नहीं है। कोई नहीं है जो राहुल गांधी से आंख मिलाकर बात कर सके।

पार्टी के प्रति वफादारी नहीं, परिवार के प्रति वफादारी

सोनिया गांधी ने जो कांग्रेस बनाई उसकी एक ही विचारधारा है-परिवार के प्रति वफादारी। पार्टी के प्रति वफादारी वाले जो थोड़े से बचे हैं उनके पीछे ‘सिद्धू प्रवृत्ति’ वाले वफादार लगा दिए जाते हैं। कांग्रेस के पास दो ही विकल्प हैं-वह राहुल गांधी के नेतृत्व में ही गिरते-पड़ते चलती रहे या फिर राहुल अध्यक्ष पद से ही नहीं, पार्टी से भी हट जाएं, क्योंकि परिवार जब तक पार्टी में है, पार्टी की कमान उसी के हाथ में रहेगी। इसलिए किसी और के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस का कुछ नहीं होने वाला।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैैं )