[शंकर शरण]। बीते कुछ समय से पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर कश्मीर संबंधी जो बहस हो रही है उस पर हमें भी गौर करना चाहिए। विशेषकर इसलिए कि उससे सीख लेकर हम भारत-पाक समस्या और यहां हिंदू-मुस्लिम संबंधों की गुत्थियों को भी सुलझा सकते हैं।

लंबे समय से पाकिस्तानी लोग एक झूठ में जी रहे हैं अथवा यह कहें कि जीने पर मजबूर किए गए हैं। पाकिस्तानी जनता तीन बातों से चकित और क्षुब्ध है। पहली, कश्मीर को भारत में ‘मिला लेने’ से न तो कश्मीर में, न शेष भारतीय मुसलमानों में कोई आग लगी। दूसरी, यूरोप, अमेरिका और अरब देशों ने इस पर लगभग कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। तीसरी, संयुक्त राष्ट्र में भी कुछ न हुआ। उलटे कई मुस्लिम देशों ने भारत का मुखर-मौन समर्थन किया। 

मोदी को सम्मान मिलता देख पाकिस्तान हुआ अचंभित
इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन में अभूतपूर्व स्वागत हुआ। अमीरात सरकार ने तो अपना सबसे बड़ा सम्मान मोदी को दिया। यह सब देख पाकिस्तानी नेता और जनता अचंभित है। वे इसे झुठलाने, दुनिया को परमाणु युद्ध की आशंका से डराने और उससे कुछ करने’ की विनती के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे।

दरअसल पाकिस्तानी जनता को सत्ताधारियों, फौजी जनरलों और मुल्लाओं ने कुछ और समझा रखा था। अब वह जनता सच परखने की कोशिश कर रही है। यह सच है कि जिस अंधविश्वास में पाकिस्तानी जनता को रखा गया उससे स्वयं अग्रणी मुस्लिम देश दूर हो रहे हैं। वे जीवन और दर्शन को यथार्थत: ले रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम उम्मत की ताकत की खामख्याली टूटना और भारत का उन्नति करते जाना पाकिस्तानियों के लिए सचाई का सामना करने जैसा है।

व्यापारिक हितों की विवशता
उन्हें तो बताया गया था कि भारत पर इस्लामी राज था और फिर होगा तथा भारत का अंत निकट है। अब पाकिस्तानियों को उन्हीं के जानकार बता रहे हैं कि वह सब झूठ था तो वे हैरान-परेशान हैं। पाकिस्तान के साथ मुस्लिम देशों के न खड़े होने को इमरान खान ने ‘व्यापारिक हितों’ की विवशता कहकर हल्का करने की कोशिश की, लेकिन व्यापारिक हित तो सदैव थे। फिर धनी मुस्लिम देशों की यह ‘विवशता’ भी तो भारत की तुलनात्मक बढ़ती मजबूती का ही सुबूत है। पहले तो ऐसा नहीं हुआ था।

पाकिस्तानी जिन बातों से खासे खिन्न हैं उनमें मुख्य यह है कि उन्हें जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिए जाने के बाद ऐसे घटनाक्रम की आशा नहीं थी, क्योंकि उन्हें कई बुनियादी मुद्दों पर झूठी बातें रटाई गई हैं। उन्हें भारत, विश्व और मुस्लिम देशों की बाबत हमेशा झूठा या अतिरंजित इतिहास और वर्तमान पढ़ाया जाता रहा। वही झूठ अब उघड़ रहा है। उनमें पाकिस्तानी सेना को लेकर भी एक गुमान था, जो इस बार अलग तरह से टूट रहा है।

कश्मीरी मुसलमान की प्रतिक्रिया 
कुछ हद तक ये बातें भारतीय हिंदुओं और मुसलमानों के लिए भी अर्थ रखती हैं। इसका सुंदर उदाहरण श्रीनगर में एक कश्मीरी मुसलमान की प्रतिक्रिया है। किसी पत्रकार से बातचीत में वह बिफर पड़ा, ‘‘हुर्रियत वाले आरएसएस के एजेंट हैं। उन्होंने हमें अंधेरे में रखा। हमसे कहा कि आजादी के लिए लड़ो। ये अनुच्छेद 370 तो हमारा है ही। धोखेबाजों ने कभी बताया ही नहीं कि अनुच्छेद 370 बचाने के लिए लड़ो।’’

यह प्रतिक्रिया क्या दिखाती है? पहले तो यह कि यह अनुच्छेद भारत से अलगाव का आधार बनाया गया था। दूसरे, कश्मीरी मुसलमानों को इस अनुच्छेद, भारतीय जनता, सरकार एवं विश्व समुदाय के बारे में गलत तस्वीर दिखाई गई। यदि कश्मीरी मुसलमानों को सही बातें मालूम होतीं तो उनका रुख यथार्थवादी होता। यही हमारा सबक है। यथार्थ समझना-समझाना। भ्रमित लोगों में पाकिस्तानियों के साथ भारतीय हिंदू-मुसलमान भी हैं। राजनीति का यथार्थ शक्ति केंद्रित है। शक्ति हथियारों के साथ-साथ मनोबल और विचारों में भी होती है।

कश्मीरी मुसलमानों को भी भरा गया 
पाकिस्तानियों की तरह कश्मीरी मुसलमानों को भी बरगलाया गया। हमें सच्चे विचारों से मुकाबला करना चाहिए था, जो नहीं किया गया। यदि करते तो हालात अलग हो सकते थे। उसे आज भी सुधारा जा सकता है। सबक यह है कि शांति और सद्भाव भी केवल बराबरी में पैदा होता है। यदि पाकिस्तानी जनता में यह मतवादी भाव न भरा गया होता कि भारत हिंदू लोकाचारों वाला, गाय- पूजक, लड़ने से बचने वाला शांतिप्रेमी यानी कमजोर’ देश है तो वहां सेना को विशेष स्थान मिलना संभव न होता।

पाकिस्तानी जनता को सदैव बताया गया कि सेना को विशेष संसाधन देना इसलिए जरूरी है ताकि वह भारत को ठिकाने लगा सके। यदि उसे मालूम होता कि न तो भारत को हराना संभव है, न भारत ने उसे कोई कष्ट दिया है तो हालात अलग होते। इसके साथ ही पाकिस्तान में हजारों युवक कश्मीर में जिहाद के नाम पर मरने-मिटने को जेहादी संगठनों में शामिल न होते। जैसे कि चीन के उइगर मुसलमानों की ‘मदद’ हेतु वहां कोई जिहादी भर्ती नहीं हुई।

सेक्युलर-वामपंथी कमजोर होते गए 
भारतीय मुसलमानों में भी कई झूठ प्रचारित रहे हैं। यहां दशकों से कुछ बड़े मदरसों और सेक्युलर-वामपंथी, बौद्धिक तंत्र ने तरह-तरह के झूठ से उलझाए रखा। हिंदू सांप्रदायिकता’, ‘अल्पसंख्यक हित’ के नाम पर झूठ की खेती होती रही। अब देख सकते हैं कि जिस हद तक यहां उस झूठ का पर्दाफाश होता गया उस हद तक नेहरूवादी, सेक्युलर-वामपंथी कमजोर और अप्रासंगिक होते गए।

अभी मोदी ने जी-7 बैठक में ठीक ही ध्यान दिलाया कि ‘पाकिस्तान 1947 से पहले भारत का ही अंग था। इसलिए हम आपसी बातचीत से मसले सुलझा लेंगे।’ भारत के अंदर हिंदू-मुस्लिम संबंध और भारत-पाक संबंधों की गुत्थियां आपस में मिलती हैं।

मतवादी झूठ का बर्दाश्त 
कई गुत्थियां मतवादी झूठ को बर्दाश्त करने, बल्कि उसे आदर देने से बनी हैं। झूठ का पर्दाफाश होना कई सामाजिक समस्याओं के समाधान की कुंजी है। पाकिस्तानी, भारतीय जनता के बीच सच को बेलाग रखा जाना चाहिए। मतवादी अंधविश्वास को उसकी जगह दिखानी चाहिए।

मानवीय विवेक किसी भी मतवाद से ऊपर है, इस सचाई को सद्भाव के साथ, लेकिन दृढ़ता से रखना चाहिए। सभी धर्म और धर्मावलंबी समान आदर के पात्र हैं, इसे स्वीकार करके ही मुसलमानों का सच्चा विकास होगा। जो इसे समझ रहे हैं वे शांति से आगे बढ़ रहे हैं। जो मतवादी भ्रम में फंसे हैं वे ही परेशान हैं।


(लेखक राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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