आशुतोष भटनागर। गुलाम कश्मीर के मुजफ्फराबाद में मुठ्ठी भर लोगों को संबोधित करते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अत्याचार जब सीमा पार कर लेता है, तो लोग जलालत भरी जिंदगी से बेहतर मौत को मानने लगते हैं। यही स्थिति आतंकवाद को जन्म देती है। इमरान खान भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद दुनिया भर में चलाये गये विफल अभियान के बाद गुलाम कश्मीर के लोगों को संबोधित करके सहानुभूति बटोरने का ढकोसला कर रहे थे। यह टिप्पणी करते हुए इमरान खान का इशारा जम्मू कश्मीर की ओर था, लेकिन यह स्थिति वही है कि जब आप किसी की ओर एक अंगुली दिखाते हैं तो तीन अंगुलियां अपनी ओर संकेत कर रही होती हैं।

आतंक के पर्याय के रूप में पाकिस्तान की पहचान 

अब पूरे विश्व में आतंक के पर्याय के रूप में पाकिस्तान को पहचाना जाने लगा है। जम्मू कश्मीर के एक बड़े भू-भाग पर कब्जा करने के बाद भी विश्व शक्तियों के संरक्षण के कारण वह सदैव भारत को आंखें दिखाता रहा। अपनी कमजोर इच्छाशक्ति के कारण भारत अपनी ही भूमि पर अपना अधिकार जताने में हमेशा संकोच करता रहा। स्वतंत्र भारत के प्रति विश्व ताकतों की दृष्टि और कश्मीर को लेकर उनकी राय लगातार बदलती रही है। स्वतंत्रता के समय और उसके पश्चात जहां पश्चिमी देश चाहते थे कि जम्मू कश्मीर पाकिस्तान में जाये, वहीं बाद में उन्होंने जम्मू कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित करने की कोशिश की।

पाकिस्तान का पलड़ा हमेशा भारी रहता था

पिछली सदी के आखिरी के तीन दशकों के दौरान स्वयंभू मध्यस्थों की राय थी कि वर्तमान नियंत्रण रेखा को औपचारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय सीमा स्वीकार कर लिया जाय। भारत में गठबंधन की राजनीति और मजबूर नेतृत्व इन महाशक्तियों के इशारों पर अपनी प्रतिक्रियाएं देता था और इसके चलते पाकिस्तान का पलड़ा हमेशा भारी रहता था।

बिगड़ैल बच्चे के रूप में पाकिस्तान मनमानी करता रहा 

संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य होने के बावजूद धीरे-धीरे भारत का स्थान सिकुड़ता गया और नवजात राष्ट्र पाकिस्तान उसी गति से वैश्विक मंचों पर अपनी पकड़ मजबूत करता गया। चार दशकों तक ब्रिटेन और अमेरिका जैसी महाशक्तियों के बिगड़ैल बच्चे के रूप में पाकिस्तान मनमानी करता रहा और उसके अपराधों को ढकने का काम यह महाशक्तियां अपने हितपूर्ति के लिए करती रहीं।

पश्चिमी देश नजरअंदाज करते रहे

परिणामस्वरूप पाकिस्तान के राजनेताओं और उसकी सेना का यह भ्रम प्रगाढ़ हो गया कि उससे भारत डरता है और विश्व महाशक्तियां हमेशा आंख मूंदकर उनका साथ देंगी। पहले भी दुनिया की हर आतंकी घटना के पीछे कहीं न कहीं पाकिस्तान का हाथ पाया जाता था किंतु दक्षिण एशिया में उसके महत्व को देखते हुए उसके इन अपराधों को पश्चिमी देश नजरअंदाज करते रहे। 11 सितंबर को अमेरिका पर हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के प्रभाव की कथा लिखी जाने लगी।

मोदी सरकार ने भारत को गंभीरता से लेने के लिए विश्व को मजबूर किया

इसी समय भारत में भी राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन हुआ। नवगठित मोदी सरकार ने लंबित राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर एक ओर विश्व जनमत तैयार किया तो दूसरी ओर आर्थिक विकास का एक नया क्षितिज स्पर्श किया, जिसने इन शक्तियों को मजबूर किया कि वह भारत को गंभीरता से लें।

भारत को नजर अंदाज करना संभव नहीं

समय के साथ-साथ पाकिस्तान की क्षमता छीजती गयी वहीं भारत विकास के पायदान पार करता गया। आज वह स्वयं महाशक्तियों के उस क्लब में शामिल हो चुका जहां उसे नजर अंदाज करना किसी के लिये संभव नहीं है। इसे स्वीकार कर अपने स्वभाव को बदलने की जो कोशिश इन परिस्थितियों में पाकिस्तान को करनी चाहिये थी वह उसकी सेना की कार्यप्रणाली के चलते प्राय: असंभव है।

पाकिस्तान के प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं थी

भारत ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाया तो पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी। संवैधानिक और व्यावहारिक रूप में पाकिस्तान के लिये इस निर्णय पर प्रतिक्रिया की कोई आवश्यकता नहीं थी। किंतु उसने यह समझने में कोई चूक नहीं की, कि न केवल जम्मू कश्मीर बल्कि पाकिस्तान के नागरिकों के बीच भी इस मुद्दे पर जो भ्रम का मायाजाल रचा गया था वह मोदी सरकार के इस एक फैसले से तार-तार हो गया है।

पाकिस्तान की सरकार और सेना विचलित

इसीलिये आज पाकिस्तान की सरकार और वहां की सेना विचलित है। दुनिया भर में समर्थन जुटाने के लिये वह दौड़-भाग कर रहे हैं किंतु सफलता हाथ नहीं लग रही। इमरान खान कह रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र में वे पूरी दुनिया को अपने समर्थन में ले आएंगें। लेकिन यह दिवास्वप्न ही रहने वाला है। वे जितनी जल्दी वैश्विक परिदृश्य को समझ जायेंगे उतना ही यह उनके लिये अच्छा होगा।

हकीकत को स्वीकार करे पाकिस्तान

दुनिया में ताकतों की धुरी बदल चुकी है। पाकिस्तान को अब इस हकीकत को स्वीकार करते हुए भारत के खिलाफ दुष्प्रचार का खेल बंद कर देना चाहिए। इस पिछलग्गू देश की बात दुनिया के दूसरे कान से बाहर निकल जा रही है। भारत को लोग सुन रहे हैं।

(लेखक- जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक हैं)