कश्मीर मामले में हर मोर्चे पर मात खाता पाक, सुरक्षा परिषद ने भी नहीं दिया पाक का साथ
भारत के विरुद्ध कश्मीर घाटी में माहौल खराब करने के लिए और भी नई तरकीबें निकाली जा सकती हैं। भारत को और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होगी।
[ विवेक काटजू ]: जम्मू-कश्मीर को लेकर इमरान खान की टिप्पणियों और पाकिस्तान की ओर से उठाए जाने वाले राजनयिक कदमों से लगता है कि पाकिस्तानी नेता अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। पाकिस्तान के राजनयिक भी हिंसात्मक रुख अपनाने पर आमादा हैं। जिस दिन से अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बदलने की घोषणा हळ्ई उसी दिन से पाकिस्तान एक के बाद एक गलतियां करता जा रहा है। इन गलतियों से उसे आज ही नहीं, बल्कि भविष्य में भी नुकसान उठाना पड़ेगा। भारत-पाक के बीच यह एक अलिखित परंपरा रही है कि व्यक्तिगत आक्रमण से परहेज किया जाता है। नीतियों और गतिविधियों पर जरूर सख्त रुख अपनाया जाता है, लेकिन कभी भी तीखे निजी हमले नहीं हुए।
पाकिस्तान को सबक लेना चाहिए
इमरान खान, उनके साथियों और पाकिस्तानी सेना ने इस उसूल को तिलांजलि दे दी है। उनके द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार की विचारधारा पर जो टिप्पणियां हो रही हैं उन्हें भारत की जनता आसानी से भूल नहीं पाएगी। मोदी भारत के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं। भारत की जनता ने उन पर भरोसा किया है। पाक चाहे या न चाहे उसे भाजपा और मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का ही सामना करना होगा। ऐसे में क्या यह उचित है कि पाकिस्तान ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करे जिससे द्विपक्षीय संबंध कभी सुधर न पाएं? राजनय की हमेशा यह मांग रहती है कि बड़े देशों के नेता नीतियों का खंडन तो करते हैं, लेकिन व्यक्तिगत आक्षेप का सहारा कभी नहीं लेते। मोदी ने धैर्य का प्रदर्शन करते हुए इस पूरे घटनाक्रम के बीच न तो इमरान खान पर और न ही पाकिस्तान सरकार के अन्य लोगों पर किसी तरह का निजी हमला किया। इससे पाकिस्तान को सबक लेना चाहिए।
पाकिस्तान ने व्यापारिक संबंध तोड़ दिए
पाकिस्तान ने पहले ही भारत के साथ संबंधों को और कमजोर कर दिया है। उसने व्यापारिक संबंध तोड़ दिए हैं। राजनयिक रिश्तों को कमतर करते हुए भारतीय उच्चायुक्त को स्वदेश लौटने का हुक्म दे दिया और अपने उच्चायुक्त को भारत न भेजने का निर्णय किया। इसके साथ-साथ पाकिस्तान सांस्कृतिक संबंध भी समाप्त करना चाहता है। भारतीय फिल्मों और टीवी प्रोग्र्राम और यहां तक कि कोई भी विज्ञापन जिसमें कोई भारतीय कलाकार हों, उन्हें दिखाने की पाकिस्तान में अनुमति नहीं रहेगी। ये सब कदम पाकिस्तान की नादानी ही दर्शाते हैं, क्योंकि औपचारिक व्यापार तो खत्म हो सकता है, लेकिन अनौपचारिक व्यापार तो चलता ही रहेगा, भले ही पाकिस्तान कितनी भी कोशिश क्यों न कर ले। इससे पाकिस्तान की पहले से चरमराई अर्थव्यवस्था का और बुरा हाल होना तय है। वहीं भारत को इससे कोई खास नुकसान नहीं होगा।
पाकिस्तान को सलाह
जहां तक सांस्कृतिक संबंधों की बात है, पाकिस्तान ने कई बार पहले भी भारत के सांस्कृतिक प्रभाव को रोकने की कोशिश की है, लेकिन उसमें वह नाकाम ही रहा है। पाकिस्तानी हुक्मरान भूल जाते हैं कि उनका देश दक्षिण एशिया का भाग है, अरब देशों या ईरान का नहीं। भारत ने दूरंदेशी दिखाते हुए पाक को यह सही सलाह दी कि वह ये सभी नकारात्मक कदम वापस ले, लेकिन शायद दशकों से भरी कटुता पाकिस्तान के नेताओं को तार्किक रूप से सोचने की गुंजाइश नहीं देती।
कश्मीर मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण
पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की भरपूर कोशिश कर रहा है। इसीलिए उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी की औपचारिक बैठक की मांग की और उसमें बोलने की विशेष अनुमति भी मांगी। उसने यह अनुरोध इसलिए किया, क्योंकि वह परिषद का सदस्य नहीं है। इस पर परिषद के सभापति ने पाक की अपील को ठुकरा दिया। फिर पाक के सदाबहार मित्र चीन ने सभापति से निवेदन किया कि बैठक में अनौपचारिक रूप से चर्चा आयोजित की जाए। यह चर्चा 16 अगस्त को हुई। इस दौरान भारत ने जम्मू-कश्मीर में जो संवैधानिक कदम उठाए उन्हें लेकर चीन को छोड़कर लगभग सभी सदस्यों ने माना कि यह भारत का आंतरिक मामला है।
कश्मीर मामले में चीन है पाक के साथ
चीन के अलावा करीब सभी देशों में सहमति रही कि जम्मू-कश्मीर का मुद्दा भारत-पाकिस्तान को द्विपक्षीय स्तर पर सुलझाना चाहिए। अमेरिका का यह मत अधिक महत्वपूर्ण था कि इस मामले में सुरक्षा परिषद की कोई भूमिका नहीं। चीन चाहता था कि चर्चा के बाद एक बयान जारी हो, लेकिन फ्रांस और कई अन्य देशों ने यह जारी नहीं होने दिया। चर्चा का यही निष्कर्ष निकला कि आगे भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जम्मू-कश्मीर के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती। यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि है।
कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चर्चा
यह सच है कि दशकों बाद जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चर्चा हुई, लेकिन आज के भारत को ऐसी चर्चा से घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि इससे भारत का अंतरराष्ट्रीय रुतबा जाहिर होने के साथ यह भी सिद्ध होता है आज के भारत से कोई पंगा नहीं लेना चाहता। यह आश्चर्यजनक था कि इस चर्चा में ब्रिटेन की भूमिका नकारात्मक रही। शायद वह अभी भी औपनिवेशिक मानसिकता से पीड़ित है और इसी कारण नए भारत को समझ नहीं पा रहा। ऐसा करके वह अपने हितों की अनदेखी ही कर रहा है। भारत सरकार ब्रिटेन के इस रुख को नजरअंदाज न करे।
कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन पाक को नहीं मिला
पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अपने देशवासियों को आगाह किया कि कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन को लेकर वे किसी मुगालते में न रहें। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उनकी यह आशंका सही साबित हुई, लेकिन क्या पाकिस्तान इससे सही सबक ले पाएगा? भारत या अंतरराष्ट्रीय समुदाय उससे ऐसी उम्मीद नहीं रख सकते। दरअसल जबसे पाकिस्तान बना तबसे ही भारत के साथ निरंतर शत्रुता उसकी विचारधारा का मुख्य स्तंभ बन गया है। पाकिस्तान के शासकों और प्रमुख रूप से उसकी सेना भारत विरोध की यही घुट्टी पाकिस्तान को पीढ़ी दर पीढ़ी पिलाते आ रही है।
कश्मीर को लेकर पाक पर कोई असर
भारत के हालिया कदमों से जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के औपचारिक दृष्टिकोण पर कोई असर नहीं पड़ा है। यह संभव नहीं कि जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकी में आने वाले वर्षों में कोई विशेष परिवर्तन होगा। चूंकि पाकिस्तान कश्मीर पर सार्थक रूप से सोच ही नहीं पाता इसलिए आगे चलकर भी वह नकारात्मक कदम ही उठाएगा। जाहिर है कि भारत को और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होगी। पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ अपनी तंजीमों को आतंकवाद की ओर और ज्यादा धकेल सकती हैं। इसके साथ-साथ भारत के विरुद्ध कश्मीर घाटी में माहौल खराब करने के लिए और भी नई तरकीबें निकाली जा सकती हैं। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को पूर्ण आश्वासन मिले कि उनकी पहचान से कोई खिलवाड़ नहीं होगा। इसके प्रयास किए जाने चाहिए कि वे अपनी पहचान और परंपराओं को पूर्ण रूप से कायम रख सकें।
( लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं )