[पुष्परंजन]। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत आगमन पर पूरी दुनिया की निगाह है। लेकिन पाकिस्तानी मीडिया और वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान की निगाहें खासतौर पर ट्रंप की यात्रा पर है। उन्हें लगता है कि कश्मीर पर यदि डोनाल्ड ट्रंप एक शब्द भी निकालते हैं तो वह पाकिस्तान की कूटनीतिक सफलता होगी। लेकिन मोटेरा स्टेडियम से पाकिस्तान को अतिवाद के सफाए में सहयोग की जो नसीहत ट्रंप ने दी है, उससे इस्लामाबाद में निराशा जरूर दिखनी है। इमरान खान की तकलीफ बढ़ने की दूसरी वजह भारत-अमेरिका सैन्य सहयोग है। रविवार को इमरान खान ‘कश्मीर महिला प्रतिरोध दिवस’ मना रहे थे। यह सब इसलिए हो रहा था, ताकि डोनाल्ड ट्रंप का ध्यान किसी बहाने कश्मीर पर केंद्रित कराया जा सके।

दूसरी ओर ट्रंप से हमारी नजदीकियों के बारे में बीते कई माह से व्यापक चर्चा जारी है। तो क्या डोनाल्ड ट्रंप भारत आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जो पाकिस्तान नहीं जाकर सीधे भारत आ रहे हैं? बराक ओबामा जब दूसरी बार 2015 में भारत आए थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाया था। तब भी ओबामा वापसी में कहीं नहीं गए थे। ज्वलंत सवाल यह है कि ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ के नारों से लबरेज जो कूटनीति प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं, डेमोक्रेट के जीतने के बाद उसका साइड इफेक्ट क्या भारत-अमेरिका संबंधों पर नहीं पड़ेगा? इस चिंताओं को हम विमर्श के दायरे से बाहर नहीं कर सकते।

भारत-अमेरिका संबंधों को हमें चार फलकों में बांटकर देखना चाहिए। पहला, विश्व राजनीति में भारत को अमेरिका किस रूप में मजबूती देता है? दूसरा, हमारे उभयपक्षीय संबंध व्यापार और सुरक्षा कितने सुदृढ़ होते हैं? तीसरा, पाकिस्तान के संदर्भ में अमेरिका को कैसे भारत के पाले में रखना है? और चौथा, चीन को काउंटर करने के लिए अमेरिका कैसे भारत का सहयोगी बनेगा? ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता वाले सवाल को हाशिए पर ही रखा है। मगर जी-20 जैसे फोरम पर भारत की अहमियत को बनाए रखा है। इंडो-पैसेफिक में भारत की भूमिका ट्रंप का एक बड़ा कूटनीतिक कार्ड रहा है, इससे हम इन्कार नहीं कर सकते।

29 फरवरी 2020 को तालिबान से समझौते पर अंतिम मुहर के बाद अमेरिकी-नाटो फौज की वापसी आरंभ हो जाएगी। अमेरिका चाह रहा है कि भारत अपनी भूमिका का विस्तार अफगानिस्तान में करे और वाशिंगटन की आंख-नाककान बने। अमेरिका इस इलाके में भारत से इंटेलिजेंस शेयरिंग चाहता है। मगर यह सब भी जोखिम भरा है। भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण तक अपनी भूमिका को सीमित कर रखा है, बावजूद इसके काबुल स्थित भारतीय दूतावास बराबर अतिवादियों के निशाने पर रहा है। उसकी वजह पाकिस्तान समर्थक अफगान आतंकी हैं। चाबहार से मध्य एशिया तक पहुंचने का जो मार्ग हम तैयार कर रहे हैं, वह अफगानिस्तान में शांति के बिना अधूरा सा है।

तालिबान की वापसी के बाद हालात और चुनौतीपूर्ण होंगे। वैसे अमेरिकी राष्ट्रपतियों के भारत आने की चर्चा करें तो जिम्मी कार्टर वर्ष 1978 में भारत आए थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में कभी पाक का रुख नहीं किया। बिल क्लिंटन ने मार्च 2000 में भारत समेत पाकिस्तान व बांग्लादेश की यात्रा की थी। जॉर्ज डब्ल्यू बुश 2006 में अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान की यात्रा पर आए थे। आइजन हावर से लेकर ओबामा तक अमेरिका के जो पांच राष्ट्रपति भारत आए, उनमें से दो- जिम्मी कार्टर और बराक ओबामा ने पाकिस्तान का रुख नहीं किया था। तो यह कहना भी एक तरह से अतिशयोक्ति है कि ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जो इस यात्रा में पाकिस्तान नहीं गए। (ईआरएस)

[वरिष्ठ पत्रकार]